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Showing posts from 2016

गुर्जर समाज की 27 पत्र-पत्रिकाएं

नंदलाल गुर्जर. गुर्जर समाज की देशभर से करीब 27 पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। हमने इन सबकी जानकारी एक जगह जुटाने की कोशिश की है। हमारा प्रयास इनके संबंध में पूरी जानकारी सही देने का रहा है, फिर भी यदि कोई कमी रह गई हो तो कृपया हमें सूचित करें। इस जानकारी को हमारे लिए जुटाया है बारहवीं के छात्र नंदलाल गुर्जर ने। भीलवाड़ा जिले की मांडलगढ़ तहसील के गांव थलखुर्द के रहने वाले इस किशोर में समाज के प्रति जानने की जबरदस्त जिज्ञासा है। इसने न केवल समाज की देश भर से प्रकाशित होने वाली समाज की पत्र-पत्रिकाओं का ब्यौरा जुटाया है बल्कि गुर्जर समाज के इतिहासकारों के संबंध में भी अच्छी खासी जानकारी एकत्रित की है। 1. गुर्जर महासभा संपादक -श्रीरामसरन भाटी, गुर्जर भवन कोटला, पहाडग़ंज, नई दिल्ली 2. गुर्जर निर्देशक संपादक-जगदीश सिंह गुर्जर, नर्मदा कॉप्लेक्स, ग्वालियर रोड, पोस्ट कत्थमिल, शिवपुरी (मध्यप्रदेश) 3. गुर्जर समाज संपादक- शिवशंकर गुर्जर, गुर्जर भवन, विजयपथ, तिलक नगर, जयपुर 4. गुर्जर टू डे संपादक-के.एस पोसवाल, 69/14, आर्य अस्पताल, पानी की टंकी के पास, रामनगर, करनाल, हरियाणा 5.

मारवाड़ का इतिहास history of marwar

मारवाड़ का इतिहास राजस्थान की  अरावली पर्वतमाला के पष्चिमी भाग को ‘मारवाड़‘ के नाम से जाना जाता है, जिसमें मुख्यतः जोधपुर, बीकानेर, जालौर, नागौर, पाली, एवं आसपास के क्षेत्र शामिल होते हैं । इस भू-विभित्र काल – खण्डों  में अलग – अलग लोगो का शासन रहा। यहा के इतिहास की विश्वसनीय जानकारी छठी शताब्दी से उपलब्ध होती है। यहा प्रमुख राजवंषों का संक्षिप्त-अध्ययन निम्र प्रकार है। गुर्जर – प्रतिहार:- 1.    उत्तरी – पष्चिमी भारत मे गुर्जर प्रतिहार वंष का षासन मुख्यतः आठवी से 10वीं सदी तक रहा। प्रारंभ मंे इनकी षक्ति का मुख्य केंद्र मारवाड़ था। उस समय राजपूताना का यह क्षेत्र गुर्जरात्रा (गुर्जर प्रदेष) कहलाता था। गुर्जर क्षेत्र के स्वामी होने  के कारण प्रतिहारों को गुर्जर-प्रतिहार कहा जाने लगा था। इसी कारण तत्कालीन मंदिर-स्थापत्य की प्रमुख कला षैली को गुर्जर-प्रतिहार शैली की संज्ञा दी गई है। 2.    आठवीं से दसवीं सी तक राजस्थान के गुर्जर-प्रतिहारों की तुलना में कोई प्रभावी  राजपुत वंष नही था। इनका आधिपत्य न केवल राजस्थान के पर्याप्त भू-भाग पर था बल्कि सुदूर ‘कन्नौज‘ नगर पर अधिकार

कर्नल जेम्स टोड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Inscription of Gurjar History by Rajput Historian James Tod

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कर्नल जेम्स टोड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Inscription of Gurjar History by Rajput Historian James Tod कर्नल जेम्स टोड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | INSCRIPTION OF GURJAR HISTORY BY RAJPUT HISTORIAN JAMES TOD  • कर्नल जेम्स टोड कहते है कि राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश अर्थात राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं। • प्राचीन काल से राजस्थान व गुजरात का नाम गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश, गुर्जराष्ट्र) था जो अंग्रेजी शासन मे गुर्जरदेश से बदलकर राजपूताना रखा गया।

पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Description of Gurjar inscription by Pandit Balkrishna God

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पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Description of Gurjar inscription by Pandit Balkrishna God पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण पं बालकृष्ण गौड लिखते है कि जिसको कहते है रजपूति इतिहास तेरहवीं सदी से पहले इसकी कही जिक्र तक नही है और कोई एक भी ऐसा शिलालेख दिखादो जिसमे रजपूत शब्द का नाम तक भी लिखा हो। लेकिन गुर्जर शब्द की भरमार है, अनेक शिलालेख तामपत्र है, अपार लेख है, काव्य, साहित्य, भग्न खन्डहरो मे गुर्जर संसकृति के सार गुंजते है ।अत: गुर्जर इतिहास को राजपूत इतिहास बनाने की ढेरो सफल-नाकाम कोशिशे कि गई। पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Description of Gurjar inscription by Pandit Balkrishna God  • कर्नल जेम्स टोड कहते है कि राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश अर्थात राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं। • प्राचीन काल से राजस्थान व गुर्जरात का नाम गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश, गुर्जराष्ट्र) था जो अंग्रेजी शासन मे गुर्जरदेश स

गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण | Gurjar Samrat Mihirkul hoon - The Great Emperor of Indian History

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गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण | Gurjar Samrat Mihirkul hoon - The Great Emperor of Indian History गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण  - गुर्जर हूण साम्राज्य के सबसे प्रतापी सम्राट Gurjar Samrat | Gurjar Hoon Empire | Mihirkul Hoon | Gujjar | Medieval History of India | Huna | Hun | Torman | Shiv Worshiper  Great Shiv Worshiper - Gurjar Samrat Mihirkul Hoon मध्य में, ४५० इसवी के लगभग, हूण गांधार इलाके के शासक थे, जब उन्होंने वहा से सारे सिन्धु घाटी प्रदेश को जीत लिया| कुछ समय बाद ही उन्होंने मारवाड और पश्चिमी राजस्थान के इलाके भी जीत लिए| ४९५ इसवी के लगभग हूणों ने तोरमाण के नेतृत्व में गुप्तो से पूर्वी मालवा छीन लिया| एरण, सागर जिले में वराह मूर्ति पर मिले तोरमाण के अभिलेख से इस बात की पुष्टि होती हैं| जैन ग्रन्थ कुवयमाल के अनुसार तोरमाण चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित पवैय्या नगरी से भारत पर शासन करता था| यह पवैय्या नगरी ग्वालियर के पास स्थित थी| तोरमाण के बाद उसका पुत्र मिहिरकुल हूणों का राजा बना| मिहिरकुल तोरमाण के सभी विजय अभियानों हमेशा उसके साथ रहता था| उसके शासन क

भोजेश्वर मंदिर | Bhojeshwar Mandir

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भोजेश्वर मंदिर | Bhojeshwar Mandir गुर्जर महाराजा भोज परमार का भोजेश्वर मंदिर  भोजेश्वर मंदिर | गुर्जर महाराजा | भोज परमार | परमार गुर्जर वंश | राजा भोज | भोजपुर | परमार वंश   भोजपुर शिव मंदिर | बेतवा नदी | पार्वती गुफा | गुर्जर प्रतिहार राजवंश भोजेश्वर मंदिर | राजा भोज भोजेश्वर मंदिर' मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर की दूरी पर रायसेन ज़िले की गोहरगंज तहसील में है l इस मंदिर को यदि उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भोजपुर गाँव में पहाड़ी पर यह विशाल शिव मंदिर स्थापित है। भोजपुर मंदिर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध  गुर्जर महाराजा भोज परमार  द्वारा की गई थी। अत: गुर्जर महाराजा भोज के नाम पर ही इस स्थान को  भोजपुर  और मंदिर को  भोजपुर मंदिर  या 'भोजेश्वर मंदिर' कहा गया। बेतवा नदी के किनारे बना उच्च कोटि की वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के मुख्य वास्तुविद और अन्य विद्वान वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ। मन्दिर की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर लम्बा है।भोजपुर के शिव म

गुर्जर सम्राट मिहिर भोज, भोजपुरी भाषा और भोजपुर (बिहार) के बीच का संबंध

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गुर्जर महाराजा भोज परमार | Gurjareshwar Raja Bhoj Parmar गुर्जर राजा भोज परमार  गुर्जरेश्वर | राजा भोज परमार | परमार वंश | भोज परमार । पंवार । भोजेश्वर मंदिर । महाराजा भोज परमार | इतिहास Raja Bhoj Parmar | राजा भोज परमार गुर्जर महाराजा भोज परमार मालवा के 'परमार' अथवा 'पवार वंश' का नौवाँ यशस्वी राजा था।परमार वंश  गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य  के अधीन गुर्जर वंश था।राजा भोज ने 1018-1060 ई. तक शासन किया। उसकी राजधानी  धार  थी। भोज परमार ने 'नवसाहसाक' अर्थात 'नव विक्रमादित्य' की पदवी धारण की थी। भोज ने बहुत-से युद्ध किए और पूर्णत: अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की, जिससे सिद्ध होता है कि उसमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उसके जीवन का अधिकांश समय युद्धक्षेत्र में बीता, तथापि उसने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी। राजा भोज ने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत-से मंदिर बनवाए, यद्यपि उनमें से अब बहुत कम का पता चलता है। भोज स्वयं एक विद्वान था और कहा जाता है कि उसने धर्म, खगोल विद्या, कला, कोश रचना, भवन निर्माण, काव्य, औषधशास

गुर्जर सम्राट मिहिर भोज, भोजपुरी भाषा और भोजपुर (बिहार) के बीच का संबंध

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गुर्जर सम्राट मिहिर भोज, भोजपुरी भाषा और भोजपुर (बिहार) के बीच का संबंध गुर्जर सम्राट मिहिर भोज, भोजपुरी भाषा और भोजपुर (बिहार) के बीच का संबंध उगता भारत ब्यूरो | इतिहास के पन्नो से | स्वर्णिम इतिहास | गुर्जर सम्राट मिहिर भोज | भोजपुरी भाषा और भोजपुर (बिहार) के बीच का संबंध | Gurjar Samrat Mihir Bhoj | गुर्जर सम्राट मिहिर भोज भोजपुर,बिहार जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, भोजपुरी भाषा बोलने वाला सांस्कृतिक क्षेत्र है। बिहार के अलावा पूर्वी उत्तर-प्रदेश का कुछ क्षेत्र भी इस सांसकृतिक पॉकेट का अभिन्न हिस्सा है।बिहार शायद एक अनोखा राज्य है जो अपने अलग-अलग सांस्कृतिक भू-भागों में अलग-अलग सांस्कृतिक धरोहरों के लिए विख्यात है। भोजपुरी क्षेत्र निष्कर्षत: लोक-संस्कृति प्रधान रहा है। भोजपुर क्षेत्र की सीमा को विद्वानों ने उत्तर में हिमालय पर्वतमाला की तराई, दक्षिण मध्यप्रान्त का जसपुर राज्य, पूर्व में मुजफ्फपुर की उत्तरी-पश्चिमी भाग और पश्चिम में बस्ती तक के विस्तार को माना है। इस प्रकार इसका क्षेत्रफल लगभग पच्चास वर्गमील है। पृथ्वीसिंह मेहता अपनी पुस्तक बिहार एक ऐतिहासिक दिग्दर्शन में लिखते है कि ग

चंदेल गुर्जर वंश | History of Chandel Gurjar Dynasty

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चंदेल गुर्जर वंश | History of Chandel Gurjar Dynasty चन्देल गुर्जर वंश का इतिहास चंदेल | चंदीला | चन्देल वंश । भारतीय वंश । Chandel Dynasty | Chandila, Chandel Clan | History  चन्देल गुर्जर वंश मध्यकालीन भारत का प्रसिद्ध गुर्जर राजवंश था। जिसने 08वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से यमुना और नर्मदा के बीच, बुंदेलखंड तथा उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी भाग पर राज किया। चंदेल वंश के शासकों का बुंदेलखंड के इतिहास में विशेष योगदान रहा है। उन्‍होंने लगभग 400 साल तक बुंदेलखंड पर शासन किया। चन्देल गुर्जर शासको न केवल महान विजेता तथा सफल शासक थे, अपितु कला के प्रसार तथा संरक्षण में भी उनका महत्‍वपूर्ण योगदान रहा। चंदेल गुर्जरो का शासनकाल आमतौर पर बुंदेलखंड के शांति और समृद्धि के काल के रूप में याद किया जाता है। चंदेलकालीन स्‍थापत्‍य कला ने समूचे विश्‍व को प्रभावित किया उस दौरान वास्तुकला तथा मूर्तिकला अपने उत्‍कर्ष पर थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं खजुराहो के मंदिर। खजुराहो का कंदरीय महादेव मंदिर Khujrao Temple of Chandel Gurjar Dynasty | खुजराहो का मंदिर • उत्