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Showing posts from July, 2016

gujjar girl bani thani

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The works of Umashankar infuse life into a fading art  THEY ARE miniature in style but magnificent in appeal. Umashankar's paintings seem to infuse life into a fading art. A revivalist of sorts, the self-taught artist besotted with the `Bani Thani' tale took to the miniature mode of expression. A Gujjar girl with a beautiful voice, Bani stole the heart of the prince of Kishangarh, who defied royal conventions to marry her. Naturally enough women with old world beauty — in traditional outfits and abundant jewellery occupy most of Umashankar's conventional canvases. And so does shringara rasa. Miniature art flourished between the 16th and 18th Century under the patronage of Moghul emperors Akbar, Jehangir and Shahjahan. But with the advent of Aurangzeb's reign, many gave up the art or took refuge in Rajput kingdoms. The k

Gujari Mahal hissar

Gujari Mahal, at Hissar in Haryana , was built by Feroze Shah Tughluq for his beloved Gujari Rani. Massive tapering walls thickly plastered in lime, with narrow gateways, represent the Tughlaq architectural style. According to legends, the Sultan fell in love with a Gujjar girl during a hunting expedition. He married the girl but she refused to go with the Sultan to Delhi . As she was determined to stay back, the Sultan constructed a palace for her at Hissar. Royal residence of the sultan Feroz Shah, Shahi Darwaza, Diwan-e-Aam, and Baradari with three tehkhanas, Hamam, Mosque and a pillar constitute the palace complex. It also has underground chambers. Steps are constructed to reach the 'baradari' (pavilion). Three developed arches on each side of the square structure form the baradari. Stone doorframes are used in all entrances except one. The roof is crowned with nine bays which are supported by a hemispherical dome. Paneling work in lime plaster is used f

Guhilot

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here are some proofs that shows that guhilot or gehlot is a clan of gurjars

sardar gujjar singh bhangi

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Gujjar Singh Bhangi was one of the triumvirate who ruled over Lahore for thirty years before its occupation by Ranjit Singh, was son of a cultivator of modest means, Nattha Singh. Strong and well built, Gujjar Singh received the vows of the Khalsa at the hands of his maternal grandfather Gurbakhsh Singh Roranvala, who presented him with a horse and recruited him a member of his band. As Gurbakhsh singh was growing old, he made Gujjar Singh head of his band. Soon the band was united to the force of Hari Singh, head of the Bhangi Misl of chiefship. Gujjar Singh set out on a career of conquest and plunder. In 1765, he along with Lahina singh ,adopted son of Gurbakhsh Singh, and Sobha Singh, an associate of Jai Singh Kanhaiya , captured Lahore, from the Afghans. As Lahina Singh was senior in relationship, being his maternal uncle, Gujjar Singh allowed Lahina Singh to take possession of the city and the fort, himself occupying eastern part of the city, then a jungle. Gujjar S

उमराव सिंह ने बैलों के स्थान पर अंग्रेजों से खेतों में हल चलवाया।

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दादरी-स्वतंत्रता दिवस दादरी के लोगों के लिए खास महत्व रखताहै। आजादी की पहली लड़ाई यानी 1857 की क्रांति मेंदादरी के लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। अंतिम मुगलबादशाह बहादुशाह जफर की योजना के मुताबिक दादरी केराजा राव उमराव सिंह की अगुआई में यहां के लोगों ने मई1857 में अंग्रेजों को दिल्ली की तरफ बढ़ने से रोक दियाथा। राव उमराव सिंह ने कई अंग्रेज सैनिकों को बंदीबनाकर दादरी के खेतों में उनसे हल चलवाया था। हालांकिबाद में अंग्रेजों ने दादरी पर आक्रमण कर राव उमराव सिंहको परिवार समेत बंदी बनाकर बुलंदशहर के काले आमपर फांसी दे दी थी। मेरठ से क्रांति की चिनगारी फूटने के बाद 12 मई 1857को मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर ने ब्रिटिश सैनिकों कोरोकने की जिम्मेदारी दादरी के राजा राव उमराव सिंह को सौंपी थी। राव उमराव सिंह , बल्लभगढ़ नरेश नाहरसिंह व मालागढ़ के नवाब बलीदाद खां ने हजारों ग्रामीणों , किसानों व सैनिकों को साथ लेकर अंग्रेजों के खिलाफमोर्चा संभाला। राव उमराव सिंह के भाई बिशन सिंह , कृष्ण सिंह भगवत सिंह आदि ने गदर में अहम भूमिकानिभाई थी। राव उमराव सिंह समेत सभी लोग दादरी क्षेत्र के नंगला नयन

मजलिस जमींदार majlis jamidar

 अंग्रेजो के खिलाफ 1857 में हुई क्रांति के दौरान क्षेत्र के करीब 84 महान सपूतों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। उन शहीदों की याद मे जिले में पार्क, मुख्य मार्गो पर उनकी प्रतिमा लगाने व जिला मुख्यालय पर शिलालेख लगवाने की मांग को लेकर शहीद स्मृति संस्थान के तत्वावधान में बृहस्पतिवार को दादरी के जीटी रोड स्थित राव उमराव सिंह स्मारक से तिलपता, देवला, सूरजपुर होता हुए जिला मुख्यालय तक पदयात्रा निकाली गई। उपरोक्त  मांगों   से संबंधित एक ज्ञापन भी संस्थान ने मुख्यमंत्री के नाम जिलाधिकारी को सौंपा। बृहस्पतिवार को सुबह दस बजे  शहीद   स्मृति संस्थान के संयोजक राव संजय भाटी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में लोग दादरी के जीटी रोड स्थित राव उमराव  की   प्रतिमा स्थल पर एकत्रित हुए। पदयात्रा तिलपता, देवला और सूरजपुर स्थित होते हुए जिला मुख्यालय पहुंची। राव संजय भाटी ने बताया कि 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुई क्रांति में करीब 84 सपूतों ने अंग्रेजों को उखाड़ने के लिए लड़ाई लड़ी थी। परिणाम स्वरूप ब्रिटिश सरकार ने उस समय क्षेत्र के करीब 84 क्रांतिकारियों को बुलंदशहर के काला आम पर गुप्त रूप से मृत्युदंड दे दिया

मजलिस जमींदार (लुहारली)

शहीद स्मृति संस्थान के आवाह्नïन पर यहां 1857 की क्रांति की 155 वीं वर्षगांठ 10 मई के पावन अवसर पर पदयात्रा का आयोजन किया जा रहा है। संस्थान की ओर से राव संजय भाटी ने बताया कि प्रात:काल 7.&0 बजे दादरी चौराहे पर राव उमराव सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण कर पदयात्रा कलेक्टे्रट सूरजपुर गौतमबुद्घ नगर जाकर समाप्त होगी। उन्होंने बताया कि मई 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम में इस क्षेत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिससे 1857 की महान क्रांति जिसे अंग्रेजों ने गदर कहा गांव गांव में फेेल गयी थी। यहां के वीर ग्रामीणों ने जालिम अंग्रेजी राज को चुनौती दी थी तथा लगभग एक साल तक गुलामी का निशान ही मिटा दिया था। सन 1874 में बुलंदशहर के डिप्टी कलेक्टर कुंवर लक्षण सिंह ने 1857 की क्रांति को लिपिबद्घ किया वह लिखता है, दादरी रियासत के राव रोशन सिंह, राव उमराव सिंह, राव बिशन सिंह राव भगवंत सिंह आदि ने मिलकर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया था। अत: इस परिवार की सारी चल अचल संपत्ति सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी और राव रोशन सिंह तथा उनके पुत्रों व भाईयों को प्राण दण्ड दे दिया गया। इस जन

shibba singh gurjar

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शिब्बा सिंह गुर्जर - क्रान्तिवीर (1857) मेरठ से 13 मील दूर, दिल्ली जाने वाले राज मार्ग पर मोदीनगर से सटा हुआ एक गुमनाम गाँव है-सीकरी खुर्द। 1857 के स्वतन्त्रता  संग्राम में इस गाँव ने एक अत्यन्त सक्रिय भूमिका अदा की थी1। 10 मई 1857 को देशी सैनिक ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सरकार के विरूद्ध संघर्ष की शुरूआत कर दिल्ली कूच कर गये थे। जब मेरठ के क्रान्तिकारी सैनिक मौहिउद्दीनपुर होते हुए बेगमाबाद (वर्तमान मोदीनगर) पहुंचे तो सीकरी खुर्द के लोगों ने इनका भारी स्वागत-सत्कार किया। इस गाँव के करीब 750 गुर्जर नौजवान की टोली में शामिल हो गये और दिल्ली रवाना हो गये। अगले ही दिन इस जत्थे की दिल्ली के तत्कालीन खूनी दरवाजे पर अंग्रेजी फौज से मुठभेड़ हो गई जिसमें अनेक नौजवान गुर्जर क्रान्तिकारी शहीद हो गए। 1857 के इस स्वतन्त्रता समर के प्रति अपने उत्साह और समर्पण के कारण सीकरी खुर्द क्रान्तिकारियों का एक महत्वपूर्ण ठिकाना बन गया। गाँव के बीचोबीच स्थित एक किलेनुमा मिट्टी की दोमंजिला हवेली को क्रान्तिकारियों ने तहसील का स्वरूप प्रदान किया। यह हवेली सिब्बा सिंह गुर्जर की थी जो सम्भवतः क्रान्तिकारियों का नेता थ

dayaram khari gurjar

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•  दयाराम खारी गुर्जर (1857 की क्रांति) :दयाराम गुर्जर दिल्ली मे चन्द्रावल गांव के रहने वाला थे ।1857 ई0 क्रान्ति में दिल्ली के आसपास के गुर्जर अपनी ऐतिहासिक परम ्परा के अनुसार विदेशी हकूमत से टकराने के लिये उतावले हो गये थे । दिल्ली के चारों ओर बसे हुए तंवर, चपराने, कसाने, भाटी, विधुड़ी, अवाने खारी, बासटटे, लोहमोड़, बैसौये तथा डेढ़िये वंशों के गुर्जर संगठित होकर अंग्रेंजी हकूमत को भारत से खदेड़ा । गुर्जरों ने शेरशाहपुरी मार्ग मथुरा रोड़ यमुना नदी के दोनों किनारों के साथ-2अधिकार करके अंग्रेंजी सरकार के डाक, तार तथा संचार साधन काट कर कुछ समय के लिए दिल्ली अंग्रेंजी राज समाप्त कर दिया था। ।दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में गुर्जरों ने दिल्ली के मेटकाफ हाउस को कब्जे में ले लिया । जो अंग्रेंजों का निवास स्थान था, यहा पर सैनिक व सिविलियम उच्च अधिकारी अपने परिवारों सहित रहा करते थे । जैसे ही क्रान्ति की लहर मेरठ से दिल्ली पहुंची, दिल्ली के गुर्जरों में भी वह जंगल की आग की तरफ फैल गई। दिल्ली के मेटकाफ हाउस में जो अंग्रेंज बच्चे और महिलायें उनको जीवनदान देकर गुर्जरों नेअपनी उच्च परम्परा का परिचय दि

Poem on prithvi raj chauhan

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