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Gurjardesh

गुर्जर देश -  English version is end of the post. गुर्जर जाति ने अनेक स्थानों को अपना नाम दिया| गुर्जर जाति के आधिपत्य के कारण आधुनिक राजस्थान सातवी शताब्दी में गुर्जर देश कहलाता था| हर्ष वर्धन (606-647 ई.) के दरबारी कवि बाणभट्ट ने हर्ष-चरित नामक ग्रन्थ में हर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन का गुर्जरों के राजा के साथ संघर्ष का ज़िक्र किया हैं| संभवतः उसका संघर्ष गुर्जर देश के गुर्जरों के साथ हुआ था| अतः गुर्जर छठी शताब्दी के अंत तक गुर्जर देश (आधुनिक राजस्थान) में  स्थापित हो चुके था| हेन सांग ने 641 ई. में सी-यू-की नामक पुस्तक में गुर्जर देश का वर्णन किया हैं| हेन सांग ने मालवा के बाद ओचलि, कच्छ, वलभी, आनंदपुर, सुराष्ट्र और गुर्जर देश का वर्णन किया हैं| गुर्जर देश के विषय में उसने लिखा हैं कि ‘वल्लभी के देश से 1800 ली (300 मील) के करीब उत्तर में जाने पर गुर्जर राज्य में पहुँचते हैं| यह देश करीब 5000 ली (833 मील) के घेरे में हैं| उसकी राजधानी भीनमाल 33 ली (5 मील) के घेरे में हैं| ज़मीन की पैदावार और रीत-भांत सुराष्ट्र वालो से मिलती हुई हैं| आबादी घनी हैं लोग धनाढ्य और संपन्न हैं| वे बहुधा नास

Rajput itihas

पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण- पं बालकृष्ण गौड लिखते है कि जिसको कहते है रजपूति इतिहास तेरहवीं सदी से पहले इसकी कही जिक्र तक नही है और कोई एक भी ऐसा शिलालेख दिखादो जिसमे रजपूत शब्द का नाम तक भी लिखा हो। लेकिन गुर्जर शब्द की भरमार है, अनेक शिलालेख तामपत्र है, अपार लेख है, काव्य, साहित्य, भग्न खन्डहरो मे गुर्जर संसकृति के सार गुंजते है ।अत: गुर्जर इतिहास को राजपूत इतिहास बनाने की ढेरो सफल-नाकाम कोशिशे कि गई। • कर्नल जेम्स टोड कहते है कि राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश अर्थात राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं। • प्राचीन काल से राजस्थान व गुर्जरात का नाम गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश, गुर्जराष्ट्र) था जो अंग्रेजी शासन मे गुर्जरदेश से बदलकर राजपूताना रखा गया । • कविवर बालकृष्ण शर्मा लिखते है : चौहान पृथ्वीराज तुम क्यो सो गए बेखबर होकर । घर के जयचंदो के सर काट लेते सब्र खोकर ॥ माँ भारती के भाल पर ना दासता का दाग होता । संतति चौहान, गुर्जर ना छूपते यूँ मायूस होकर ॥

हेरात का युद्ध (The Battle of Herat):

हेरात का युद्ध (The Battle of Herat): ‌ये युद्ध चौथी सदी में हूण सेनापति अखशुनवार और ईरानी बादशाह पेरोज के बीच उत्तर पूर्वी ईरान में हेरात नाम की जगह पर हुआ था। पहले बता दिया जाये कि हूण कोई अकेली जाति/ट्राइब नही थी बल्कि हूण भी दो तीन तरह के थे। यहाँ हम जिन हूणो की बात कर रहे हैं वो वाइट हूण/शवेत हूण या फिर हफ्थाल कहलाते थे जो आज के गुज्जरों/गुर्जरो के पूर्वज थे। ये हूण दिखने में आर्यन प्रजाति के और घुमक्कड़ योद्धा थे।  हूण जाति मध्यएशिया/जॉर्जिया/पश्चिम यूरेशिया/ईरान आदि की कई लड़ाकू प्रजातियों का एक गठबंधन था जिसे हूण ट्राइबल कंफेडरेशन भी कहा जाता है। गुर्जर और गुर्जरो की ही भाईबंद दूसरी कई जॉर्जियन जातियां इस कंफेडरेशन का ही अंग थी। इस कंफेडरेशन में गुज्जर/गुर्जरो के सबसे ज्यादा प्रभावी होने की वजह से सारे ही हूणो को भारत में गुर्जर कहा जाने लगा था। खैर ये हुआ हफ्तालो/हूणो का परिचय अब आते हैं हेरात के युद्ध पर। सन 457 (AD) में ईरान के सासानी वंश के बादशाद यज़्दगर्द (2nd) की मौत हो गयी थी और उसके दो बेटों होरमुज़्द और पेरोज में सत्ता के लिये खींचातानी शुरू हो गयी थी। पेरोज बड़ा बेटा था

pushkar

History According to legend, Brahma was in search of a place for Mahayagna and he found this place suitable. After a long time, Brahma came to known that a demon, Vajranash, was killing people here so the Lord intoned a mantra on a lotus flower and killed the demon. During this process the parts of flower fell on three places which were later known as Jyaistha, Madhya and Kanistha Pushkar. After this Brahma performed a yagna to protect this place from demons. The consort of Brahma, Savitri , were needed to offer Ahuti for the yagna but she was not there that time so Gayatri , a Gurjar girl, was married to brahma and performned yagna. This act made first wife of Brahma, Savitri, angry and she cursed Brahma saying that he would be worshiped in Pushkar only. [3] [4] There are still priests from the Gurjar community in Pushkar temple, known as Bhopas. [4]

gurjar anangpal tanwar

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Yogmaya Temple  also known as  Jogmaya temple , is an ancient Hindu temple dedicated to Goddess Yogmaya, the sister of Krishna, and situated inMehrauli, New Delhi, close to the Qutb complex. It is widely believed to be one of the five surviving temples from the Mahabharata period inDelhi. Yogmaya or Jogmaya is considered, an aspect of Maya, the illusionary power of God. The temple is also venue of a large congregation of devotees during the Navratri celebrations. Th- e present temple was built in early 19th century and is a descendant of a much older Devi shrine. [4]  Adjacent to the temple lies, a water body,  johad , known as 'Anangtal', after King Anangpal, and covered by trees from all sides [5]  The temple is also an integral part of an important inter-faith festival of Delhi, the annual Phool Walon Ki Sair. [6] [7] [edit]History Entran- ce gate from outside the Yogmaya temple In 12th-century Jain scriptures- , Mehrauli place is also mentioned as 

about gurjars origin by dr sushil bhati

गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिद्धांत डा. सुशील भाटी                                            Key Words - Kushan, Koshano, kasana, Gusura, Gasura, Gosura, Gurjara, Bhinmal, Bactrian, Gujari      I आधुनिक कसाना ही ऐतिहासिक कुषाण हैं| अलेक्जेंडर कनिंघम ने  आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट , खंड  IV,   1864  में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है |   वे कहते हैं कि पश्चिमिओत्तर भारत में जाटो के बाद गुर्जर ही सबसे अधिक संख्या में बसते हैं इसलिए वही कुषाण हो सकते हैं| अपनी इस धारणा के पक्ष में कहते हैं कि आधुनिक गुर्जरों का कसाना गोत्र कुषाणों का प्रतिनिधि हैं| अलेक्जेंडर कनिंघम  बात का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि गुर्जरों का कसाना गोत्र क्षेत्र विस्तार एवं संख्याबल की दृष्टि से सबसे बड़ा है। कसाना गौत्र अफगानिस्तान से महाराष्ट्र तक फैला  हुआ  है और भारत में केवल गुर्जर जाति में मिलता है। गुर्जरों के अपने सामाजिक संगठन के विषय में खास मान्यताएं प्रचलित रही हैं जोकि उनकी कुषाण उत्पत्ति की तरफ स्पष्ट संकेत कर रही हैं| एच. ए. रोज के अनुसार यह सामाजिक मान्