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जुनबिल हूण ( गुर्जर की खाप श्वेत हूण की एक शाखा ) | Zunbil Hun (Branch of White Hun Gurjars)

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जुनबिल हूणो ने लगभग ढाई सौ सालो तक हिन्दुकुश पर्वत के उत्तर में राज किया। ये भाग आजका अफगानिस्तान का बडा भूभाग है। इन्हें जुन्बिल क्यों कहा जाता था ? गुर्जर हूणो की यह शाखा एक जून देवता की पूजा करती थी यह जून देव सूर्यदेव यानी मिहिर का दूसरा रूप है। जून भगवान की पूजा करने के कारण ही ये जुन्बिल कहलाये। तत्कालीन जुन्बिल साम्राज्य में जून का एक बेहद सुन्दर व बडा मन्दिर भी था जिसे बाद में अरब आक्रमणकारियो ने तोड दिया था। यह हूणो की वह शाखा थी जो जाबुलिस्तान में थी व इनकी एक शाखा ने गुर्जरदेश में जाबुलपुर यानी जालौर बसाया। 610 ई० से 710 ई० तक जुन्बिलो व अरब आक्रमणकारियो के बीच युद्ध चले । जुन्बिलो ने कई भीषण युद्धो में हराकर अरबो को भगाया मगर ईस्लामिक साम्राज्य की बढती ताकत धार्मिक उन्माद से हर बार आ रही थी । जुनबिल हूणो को आज इतिहास में भुला दिया गया है जो कि गुर्जरो के पराक्रम को कम करने का कुत्सित प्रयास है।

gurjara pratiharas

वीर गुर्जर - प्रतिहारो राजाओ के ऐतिहासिक अभिलैख प्रमाण ********************************** 1. सज्जन ताम्रपत्र (871 ई. ) :--- अमोघ वर्ष शक सम्वत 793 ( 871 ई . ) का सज्जन ताम्र पञ ) :---- I इस ताम्रपत्र अभिलेख मे लिखा है। कि राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुर्ग ने 754 ई. मे "हिरण्य - गर्भ - महादान " नामक यज्ञ किया तो इस शुभ अवसर पर गुर्जर आदि राजाओ ने यज्ञ की सफलता पूर्वक सचालन हेतु यज्ञ रक्षक ( प्रतिहार ) का कार्य किया । ( अर्थात यज्ञ रक्षक प्रतिहारी का कार्य किया ) ( " हिरणय गर्भ राज्यनै रुज्जयन्यां यदसितमा प्रतिहारी कृतं येन गुर्जरेशादि राजकम " ) { सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका -- 18 , पृष्ठ 235 , 243 - 257 } 2. सिरूर शिलालेख ( :---- यह शिलालेख गोविन्द - III के गुर्जर नागभट्ट - II एवम राजा चन्द्र कै साथ हुए युद्ध के सम्बन्ध मे यह अभिलेख है । जिसमे " गुर्जरान " गुर्जर राजाओ, गुर्जर सेनिको , गुर्जर जाति एवम गुर्जर राज्य सभी का बोध कराता है। ( केरल-मालव-सोराषट्रानस गुर्जरान ) { सन्दर्भ :- उज्जयिनी का इतिहास एवम पुरातत्व -

वीर गुर्जर - प्रतिहार वंश के साहित्यिक अभिलेख

वीर गुर्जर - प्रतिहार वंश के साहित्यिक अभिलेख :------ 1. उधोतन सूरी दृआरा लिखित ग्रन्थ - कुवालय माला :---- जाबालीपुर ( जालोर ) नरेश- वत्सराज ) के दरबारी कवि एवम शिक्षक, उधोतन सूरी जैन मुनि ने शक सम्वत 700 ( 778 ई. ) मे कुवालयमाला नामक ग्रन्थ की रचना प्राकृत भाषा मे की थी । इसमे वत्स राज के राज्य प्रदेश को " गुर्जर दैश" कहा तथा गुर्जर दैश का समुचित वर्णन किया । गुर्जर दैश के निवासी गुर्जर ( गुज्जरै आवरे ) का भी वर्णन किया है। गुर्जर सम्राट वत्सराज को उधोतन सूरी नै " रणहस्तिन" अर्थात युद्ध मे हाथी की तरह स्थिर रहने वाला वीर योध्दा लिखा है । { सन्दर्भ :- उधोतनसूरी कृत - कुवालयमाला } 2. जिनसेन सूरी कृत "हरिबशं-पुराण" ):---- शक समवत ) 705 ( 783 ई ) वर्धमान पुर ( बडवान) नगर मे गुर्जर प्रतिहारो के सामन्त राजा नन्नराज चापोत्कट के समय जिनसेन सूरी ने " हरिवंश पुराण" की रचना करी थी जिसमे गुर्जर प्रतिहार राजाओ का ओर उनकी दानशीलता व युध्द मे दिखाये पराक्रम की मुक्त कंठ से प्रशंसा का विस्तार सै वर्णन किया है । { सन्दर्भ

पृथ्वीराज रासो

पृथ्वीराज रासो मे राजपूतो के 36 कुलो का तथा उनके उद्भव का वर्णन है । किन्तु उन 36 कुलो मे "गाहडवालो" का नाम नही है जो बारहवी ( 12 वी ) शताब्दी मे उत्तर भारत के सम्राट थे । सोलहवी शताब्दी से पहले के किसी ग्रन्थ या लेख मे राजपूत जात का उल्लेख ही नही है । राजपूत एक जात है यह कल्पना सोलहवी (16 वी ) शताब्दी मे शुरू हुई । पृथ्वीराज रासो के आधार पर राजपूतो के उदभव के विषय मे जो स्थापनाऐ की गई है वे कपोल कल्पित व निर्मूल है । सन्दर्भ :-- भारत का इतिहास- इतिहास प्रवेश ( 1950) -- प• जयचन्द्र विधालंकार , पृष्ठ --191

Gurjar Pratihar

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जै • कैम्पबैल ने गजेटियर मे लिखा है कि----- "खजर" जोरजीयन थे, यह मान्यता अब भी है दक्षिणी आर्मिनियन पूर्व की ओर बढे थे । "आबू के पर्वत पर यज्ञ से जो चार अग्निकुंल वंशो को बोद्धो के विरुद्ध मदद करने के लिए शुध्द किये गये थे , वे "गुर्जर " थे । सन्दर्भ :--- 1-- क्षत्रिय शाखाओ का इतिहास - देवी सिंह मण्डावा, पृष्ठ -- 29 2-- बाॅम्बे प्रेसीडेन्सी का गजेटियर - 161 X 1901 --Page - 476-483