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Showing posts from August, 2017

Gurjardesh

गुर्जर देश -  English version is end of the post. गुर्जर जाति ने अनेक स्थानों को अपना नाम दिया| गुर्जर जाति के आधिपत्य के कारण आधुनिक राजस्थान सातवी शताब्दी में गुर्जर देश कहलाता था| हर्ष वर्धन (606-647 ई.) के दरबारी कवि बाणभट्ट ने हर्ष-चरित नामक ग्रन्थ में हर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन का गुर्जरों के राजा के साथ संघर्ष का ज़िक्र किया हैं| संभवतः उसका संघर्ष गुर्जर देश के गुर्जरों के साथ हुआ था| अतः गुर्जर छठी शताब्दी के अंत तक गुर्जर देश (आधुनिक राजस्थान) में  स्थापित हो चुके था| हेन सांग ने 641 ई. में सी-यू-की नामक पुस्तक में गुर्जर देश का वर्णन किया हैं| हेन सांग ने मालवा के बाद ओचलि, कच्छ, वलभी, आनंदपुर, सुराष्ट्र और गुर्जर देश का वर्णन किया हैं| गुर्जर देश के विषय में उसने लिखा हैं कि ‘वल्लभी के देश से 1800 ली (300 मील) के करीब उत्तर में जाने पर गुर्जर राज्य में पहुँचते हैं| यह देश करीब 5000 ली (833 मील) के घेरे में हैं| उसकी राजधानी भीनमाल 33 ली (5 मील) के घेरे में हैं| ज़मीन की पैदावार और रीत-भांत सुराष्ट्र वालो से मिलती हुई हैं| आबादी घनी हैं लोग धनाढ्य और संपन्न हैं| वे बहुधा नास

Rajput itihas

पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण- पं बालकृष्ण गौड लिखते है कि जिसको कहते है रजपूति इतिहास तेरहवीं सदी से पहले इसकी कही जिक्र तक नही है और कोई एक भी ऐसा शिलालेख दिखादो जिसमे रजपूत शब्द का नाम तक भी लिखा हो। लेकिन गुर्जर शब्द की भरमार है, अनेक शिलालेख तामपत्र है, अपार लेख है, काव्य, साहित्य, भग्न खन्डहरो मे गुर्जर संसकृति के सार गुंजते है ।अत: गुर्जर इतिहास को राजपूत इतिहास बनाने की ढेरो सफल-नाकाम कोशिशे कि गई। • कर्नल जेम्स टोड कहते है कि राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश अर्थात राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं। • प्राचीन काल से राजस्थान व गुर्जरात का नाम गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश, गुर्जराष्ट्र) था जो अंग्रेजी शासन मे गुर्जरदेश से बदलकर राजपूताना रखा गया । • कविवर बालकृष्ण शर्मा लिखते है : चौहान पृथ्वीराज तुम क्यो सो गए बेखबर होकर । घर के जयचंदो के सर काट लेते सब्र खोकर ॥ माँ भारती के भाल पर ना दासता का दाग होता । संतति चौहान, गुर्जर ना छूपते यूँ मायूस होकर ॥

हेरात का युद्ध (The Battle of Herat):

हेरात का युद्ध (The Battle of Herat): ‌ये युद्ध चौथी सदी में हूण सेनापति अखशुनवार और ईरानी बादशाह पेरोज के बीच उत्तर पूर्वी ईरान में हेरात नाम की जगह पर हुआ था। पहले बता दिया जाये कि हूण कोई अकेली जाति/ट्राइब नही थी बल्कि हूण भी दो तीन तरह के थे। यहाँ हम जिन हूणो की बात कर रहे हैं वो वाइट हूण/शवेत हूण या फिर हफ्थाल कहलाते थे जो आज के गुज्जरों/गुर्जरो के पूर्वज थे। ये हूण दिखने में आर्यन प्रजाति के और घुमक्कड़ योद्धा थे।  हूण जाति मध्यएशिया/जॉर्जिया/पश्चिम यूरेशिया/ईरान आदि की कई लड़ाकू प्रजातियों का एक गठबंधन था जिसे हूण ट्राइबल कंफेडरेशन भी कहा जाता है। गुर्जर और गुर्जरो की ही भाईबंद दूसरी कई जॉर्जियन जातियां इस कंफेडरेशन का ही अंग थी। इस कंफेडरेशन में गुज्जर/गुर्जरो के सबसे ज्यादा प्रभावी होने की वजह से सारे ही हूणो को भारत में गुर्जर कहा जाने लगा था। खैर ये हुआ हफ्तालो/हूणो का परिचय अब आते हैं हेरात के युद्ध पर। सन 457 (AD) में ईरान के सासानी वंश के बादशाद यज़्दगर्द (2nd) की मौत हो गयी थी और उसके दो बेटों होरमुज़्द और पेरोज में सत्ता के लिये खींचातानी शुरू हो गयी थी। पेरोज बड़ा बेटा था