1857 की जनक्रांति के जनक कोतवाल धनसिंह गुर्जर पर इतिहास लेखन: (डॉ सुशील भाटी)
10 मई 1857 को मेरठ से, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरोध में, शुरू हुई जनक्रांति के विस्फोट में मेरठ की सदर कोतवाली में तैनात धन सिंह कोतवाल की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका थी| धन सिंह कोतवाल की इस क्रन्तिकारी भूमिका पर अनेक लेखको ने रेखांकित किया हैं| उपलब्ध स्त्रोतों के आधार पर, धन सिंह कोतवाल पर इतिहास लेखन का, वर्ष 2002 तक का क्रमवार सिलसिला निम्नवत हैं|
1. ई. बी. जोशी ने सर्वप्रथम धन सिंह कोतवाल की भूमिका का उल्लेख मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1965, के पृष्ठ संख्या 52 पर किया था “The Indian troops as well as the police including the kotwal, Dhanna Singh, made common cause against the British. About midnight the villagers attacked the gaol, released its 839 prisoners and set fire to the building. The 720 prisoners in the old jail were also released by some Indian soldiers. Thousands of Gujars from the neighbouring villages came to Mcerut, set fire to the lines of the sappers and miners, destroyed other parts of the cantonment ...…On July 4, the Risala which was armed with two guns surrounded and attacked the Gujar villages (particularly Panchli Ghat and Nagla) about five miles from Meerut, killing some of the inhabitants, making some prisoners and burning the villages.”
2. जे. ए. बी. पामर ( J A B Palmer) ने 1966 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी अपनी पुस्तक “म्युटिनी आउटब्रेक एट मेरठ इन 1857” धन सिंह की भूमिका के विषय में लिखा था| नार्थ-वेस्टर्न प्राविन्सिस की मिलेट्री पुलिस के कमिश्नर मेजर विलयम्स द्वारा मेरठ के विद्रोह के विस्फोट में पुलिस की भूमिका की जांच की गई थी तथा इस विषय पर एक स्मरण पत्र (मैमोरेन्डम) तैयार किया गया था| जे. ए. बी. पामर ने धन सिंह कोतवाल की भूमिका के विषय में इस स्मरण पत्र का हवाला दिया हैं|
3. यतीन्द्र कुमार वर्मा ने मयराष्ट्र मानस ग्रन्थ में ‘स्वतंत्रता की प्रथम ज्योति’ नामक अपने लेख में 10 मई 1857 को मेरठ में हुए क्रांति के विस्फोट में धन सिंह कोतवाल की भूमिका के विषय में पृष्ठ संख्या 48 पर लिखा हैं, कि “11 वी व 20 वी नेटिव इन्फेंटरी, जेल से रिहाई पाने वाली भीड़ व् देहात की जनता शहर कोतवाल चो. धनसिंह गूजर के नेतृत्व में आस पास के गाँवो से उसके भाई बंद पुलिस के सिपाही योरोपियनो के खून के प्यासे हो गए......योरोपियन मार डाले गए, बंगले जला दिए गए|”
4. गणपति सिंह ने वर्ष 1986 में फरीदाबाद से प्रकाशित ‘गुर्जर वीर वीरांगनाए” नामक अपनी पुस्तक में धन सिंह कोतवाल के इतिहास पर ‘धन सिंह गूजर कोतवाल” के नाम से तीन पृष्ठ का एक पूरा लेख लिखा हैं| धन सिंह कोतवाल के विषय में वे लिखते हैं कि “मेरठ के समीप चपराने गूजरों का पांचली गाँव हैं| वहां का निवासी चौ. धन सिंह मेरठ सिटी का कोतवाल है वह बड़ा देशभक्त और और स्वाधीनता प्रिय पुलिस अफसर था|.......पुलिस कोतवाल होने के नाते उसका दायित्व था कि वह अंग्रेजी सरकार को सहयोग देता और विद्रोहियों का दमन करता लेकिन उसने विद्रोहियों का सहयोग दिया और नेतृत्व किया| उसने मेरठ के आस-पास के के गूजरों के गांवों में सन्देश भिजवाकर मेरठ जेल पर हमले की योजना बनाई| अंग्रेजी हुकूमत को को पता नहीं चला कि स्वाधीनता की चिंगारी उन चिंगारी उनके जिला प्रशासन के पुलिस महकमे के कोतवल के दिल में घर कर गई हैं| तीस हज़ार गूजर, घाट पांचली के चपराने, सीकरी के चंदीले, नंगला और भौपुरा के कसाने गूजर व् अन्य ग्रामीण एकत्र होकर मेरठ पहुंचे| कोतवाल धन सिंह उनके स्वागत के लिए प्रतीक्षा कर रहा था|.............उन्होंने ने पहला धावा मेरठ की नई जेल पर बोला दिया| इन्होने जेल से 839 कैदियों को मुक्त कराया और वे भी मुक्त होकर धाड़ के साथ हो गए|..............”मारो फिरंगी को” को बस यही उद्घोष सुनने में आता था| ...................पांचली गाँव के 80 गूजरों को फाँसी दी गई और 400 गूजरों को गोली से उड़ाया गया|”
5. हाकिम मोहम्मद सईद (Hakim Mohmmad Said) वर्ष 1990 में छपी अपनी पुस्तक ‘रोड टू पाकिस्तान’ के पृष्ट संख्या 545 में लिखते हैं “The state of confusion that ensued was worsened when the riff-raffs from the town started plundering and the Gujars who had come in numbers because theacting Kotwal, Dhanna Singh, belonged to that tribe, joined them. “
6. स्वामी वासुदेवानंद तीर्थ ने वर्ष 1991 में मेरठ (बागपत) से प्रकशित अपनी पुस्तक ‘आर्य समाज एवं स्वतंत्रता सेनानी’ धन सिंह कोतवाल की भूमिका को रेखांकित करते हुए ‘राव कदम सिंह व चौ. धन सिंह’ नामक एक दो पृष्ठ का पूरा अध्याय लिखा हैं| वे लिखते हैं कि “स्वतंत्रता विद्रोह से पूर्व मह्रिषी दयानंद सरस्वती मेरठ नगर के शिव मंदिर में चार दिन ठहरे थे, वहां श्री धन सिंह शहर कोतवाल और राव कदम सिंह आदि अनेक व्यक्ति उनसे गुप्त रूप से मिले|…..मेरठ के सैनिको ने अंग्रेजो के आदेशो को अंगीकार नहीं किया क्योकि कारतूस पर गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई थी कारतूस को दांत से तोडा जाता था|.....अंग्रेज कर्नल ने सैनिको के हाथो में हथकड़ी और पैरो में बैडी डलवाकर जेल भेज दिया| गुर्जर जनता एवं रांघड मुसलमानों ने राव कदम सिंह व् धन सिंह की आज्ञा मिलते ही मेरठ शहर पर धावा बोलकर अंग्रेजो के जान-माल को नष्ट कर दिया क्योकि 50 हज़ार विद्रोही संघर्ष कर रहे थे और अंग्रेज सैनिको व उनके समर्थको के पैर नहीं टिक सके| अंग्रेज इतने घबरा गए की अपनी जान बचाकर शहर से भागने लगे| उधर जनता ने जेल पर हमला कर दिया|”
7. वेदानंद आर्य ने वर्ष 1993 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “1857 का मुक्ति संग्राम तथा उसका ऐतिहासिक स्वरुप” में पृष्ट संख्या 98 पर लिखते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने देहाती अंचलो से आये क्रांतिकारियों के एक दल का नेतृत्व किया| वे लिखते हैं कि “सैनिको की बेड़िया काटने के उद्देश्य से ये सीधे कारागार गए| इस काफिले में छावनी के सैनिको के अतिरिक्त देहाती आंचलो से आये क्रन्तिकारी दल संम्मिलित थे| जिनमे से एक दल का नेतृत्व धनसिंह गुर्जर पांचली निवासी, जोकि तत्कालीन मेरठ नगर के कोतवाल थे, कर रहे थे| धन सिंह एक स्वाधीनता प्रेमी पुलिस अधिकारी थे|
8. आचार्य दीपांकर ने वर्ष 1993 में मेरठ से प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘स्वाधीनता संग्राम और मेरठ’ में पृष्ठ 143 पर लिखते हैं, “ घाट पांचली का धनसिंह गूजर विशेष रूप से क्रन्तिकारी था| उसी के नेतृत्व में 10 हज़ार से अधिक किसानो और मजदूरों ने मेरठ जेल में ठीक उसी समय धावा मारा था जब मेरठ के सैनिक अपने 85 बंदी साथियो को रिहा कराने गए थे| उनकी रिहाई के बाद धन सिंह गूजर ने सभी 1400 कैदियों को रिहा कर दिया तथा जेल के रजिस्टर भी जला दिए| बाद में प्रतिक्रांति का दौर प्रारम्भ होने पर गूजरों को दमन का विशेष सामना करना पड़ा| पांचली गाँव को विशेष दमन का शिकार होना पड़ा जहाँ के 80 लोगो को फाँसी पर चढ़ाया गया|”
10 मई 1857 को विद्रोह के विस्फोट से लगभग एक माह पहले अप्रैल में अयोध्या से एक हिन्दू फ़क़ीर मेरठ आया था| यह फ़क़ीर विद्रोही सैनिको के संपर्क में था| सदर कोतवाल इस फ़क़ीर से 24 अप्रैल को मिला था| आचार्य दीपंकर ने अपनी इस पुस्तक में इस हिन्दू फ़क़ीर की पहचान स्वामी दयानंद सरस्वती के रूप में की हैं| इस सम्बन्ध में उन्होंने अपनी पुस्तक में पृष्ठ संख्या 120- 131 पर “1857 की क्रांति में यह साधू कौन था? नामक “एक अध्याय लिखा हैं|
9. डॉ देवेन्द्र सिंह ने वर्ष 1995 में एक लेख में धन सिंह कोतवाल के विषय में लिखा हैं जोकि एक अख़बार में छपा था| लेख मुझे उपलब्ध नहीं हो सका हैं|
10. सुशील भाटी ने वर्ष 2000 में “1857 की क्रांति के जनक धन सिंह कोतवाल” नामक शोध पत्र लिखा जिसमे कोतवाल धन सिंह को पहली बार ‘1857 की क्रांति का जनक’ कहा गया और उसे क्रांति की शुरुआत करने का श्रेय दिया गया| लेख में तर्क रखा गया कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय उसी व्यक्ति को दिया जा सकता है जिसने 10 मई1857 के दिन मेरठ में घटित क्रान्तिकारी घटना में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। इस लेख के अनुसार ऐसी सक्रिय क्रान्तिकारी भूमिका धन सिंह कोतवाल ने 10 मई 1857 के दिन मेरठ में निभाई थी। लेख के आरम्भ में ही कहा गया हैं कि “इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि1857 की क्रान्ति का प्रारम्भ '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ में हुआ। हम तार्किक आधार पर कह सकते हैं कि जब 1857 की क्रान्ति का आरम्भ '10 मई 1857' को 'मेरठ' से माना जाता है, तो क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय भी उसी व्यक्ति को दिया जा सकता है जिसने 10 मई 1857 के दिन मेरठ में घटित क्रान्तिकारी घटना में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। ऐसी सक्रिय क्रान्तिकारी भूमिका धन सिंह कोतवाल ने 10 मई 1857 के दिन मेरठ में निभाई थी। 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे। मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे.........उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 839 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी। जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया।“
लेख में यह तर्क भी प्रमुखता से रखा गया कि 1857 का महाविद्रोह मात्र सैनिक विद्रोह नहीं था बल्कि यह साम्राज्यवाद के खिलाफ एक जनक्रांति थी, जिसमे जनता की सहभागिता की शुरुआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व 10 मई को मेरठ से हुई थी, अतः धन सिंह कोतवाल इस क्रांति के जनक हैं| लेख में कहा गया हैं कि “1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है..........राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है।.............1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जा सकते हैं।“
सुशील भाटी ने अपने लेख में क्रांति की पूर्व योज़ना को स्वीकार किया तथा सदर कोतवाल धन सिंह के अयोध्या से आये हिन्दू फ़क़ीर से मुलाकात की बात कही हैं| “10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी| नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधू की भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था| विद्रोही सैनिक तथा सदर पुलिस कोतवाली का कोतवाल इस फ़कीर के संपर्क में थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही (डेपोजीशन
के अनुसार सदर कोतवाल स्वयं इस साधू से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे। सदर कोतवाल फ़कीर के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो गए।“
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यह लेख सर्वप्रथम वर्ष 2002 में लघु पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुआ था| इस लघु पुस्तिका का विमोचन, मेरठ कमिश्नरी चौराहे पर लगी शहीद धन सिंह कोतवाल की प्रथम मूर्ति के अनावरण कार्यक्रम के मुख्य अथिति चौ. हुकुम सिंह, तत्कालीन कैबिनेट मंत्री, उ. प्र. सरकार ने किया था|
सन्दर्भ
The first expedition of this corps (4th of July) was in company with small force of regulars against a number of Gujar villages about six miles from Meerut, of which chief were Pancli Ghat and Nangla. The inhabitants of these villages, beside bearing a conspicuous part in sack of the station and the murder of the Europeans on the night of 10th of May, had since made them notorious by the number and heinousness of their crime. The principal villages were successfully surrounded, a little after day break, by different parties told of for the purpose. A considerable number of men were killed in the attack, and of 46 prisoners taken, out of which forty were subsequently brought to trial, and suffered to extreme penalty of the law for their misdeeds. The villages were burned. एडविन टी. एटकिनसन, स्टैटिस्टिकल डिस्क्रिप्टिव एंड हिस्टोरिकल अकाउंट ऑफ़ नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज़, खंड III, मेरठ डिवीज़न, भाग II., नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज़ गवर्नमेंट प्रेस, इलाहाबाद, 1876, पृष्ठ 331
ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1965पृष्ठ संख्या 52
मयराष्ट्र मानस, मेरठ।
जे. ए. बी. पामर, म्युटिनी आउटब्रेक एट मेरठ इन 1857, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1966
हाकिम मोहम्मद सईद (Hakim Mohmmad Said) ‘रोड टू पाकिस्तान’, 1990, पृष्ट संख्या 545
स्वामी वासुदेवानंद तीर्थ, आर्य समाज एवं स्वतंत्रता सेनानी, मेरठ, 1991
गणपति सिंह, 1857 के गूजर शहीद: भारतीय इतिहास का शानदार अध्याय, 1984, पृष्ठ संख्या 37
गणपति सिंह, गुर्जर वीर वीरांगनाए, फरीदाबाद, 1986
वेदानंद आर्य, 1857 का मुक्ति संग्राम तथा उसका ऐतिहासिक स्वरुप, 1993, पृष्ट 98
आचार्य दीपांकर, स्वाधीनता संग्राम और मेरठ, जनमत प्रकाषन, मेरठ 1993
डॉ सुशील भाटी, 1857 की जनक्रांति के जनक धन सिंह कोतवाल, मेरठ, 2002