Saturday, 25 February 2017

जुनबिल हूण ( गुर्जर की खाप श्वेत हूण की एक शाखा ) | Zunbil Hun (Branch of White Hun Gurjars)

जुनबिल हूणो ने लगभग ढाई सौ सालो तक हिन्दुकुश पर्वत के उत्तर में राज किया। ये भाग आजका अफगानिस्तान का बडा भूभाग है।
इन्हें जुन्बिल क्यों कहा जाता था ? गुर्जर हूणो की यह शाखा एक जून देवता की पूजा करती थी यह जून देव सूर्यदेव यानी मिहिर का दूसरा रूप है। जून भगवान की पूजा करने के कारण ही ये जुन्बिल कहलाये।
तत्कालीन जुन्बिल साम्राज्य में जून का एक बेहद सुन्दर व बडा मन्दिर भी था जिसे बाद में अरब आक्रमणकारियो ने तोड दिया था। यह हूणो की वह शाखा थी जो जाबुलिस्तान में थी व इनकी एक शाखा ने गुर्जरदेश में जाबुलपुर यानी जालौर बसाया। 610 ई० से 710 ई० तक जुन्बिलो व अरब आक्रमणकारियो के बीच युद्ध चले । जुन्बिलो ने कई भीषण युद्धो में हराकर अरबो को भगाया मगर ईस्लामिक साम्राज्य की बढती ताकत धार्मिक उन्माद से हर बार आ रही थी ।

जुनबिल हूणो को आज इतिहास में भुला दिया गया है जो कि गुर्जरो के पराक्रम को कम करने का कुत्सित प्रयास है।

Monday, 13 February 2017

gurjara pratiharas

वीर गुर्जर - प्रतिहारो राजाओ के ऐतिहासिक अभिलैख प्रमाण
**********************************
1. सज्जन ताम्रपत्र (871 ई. ) :---
अमोघ वर्ष शक सम्वत
793 ( 871 ई . ) का
सज्जन ताम्र पञ ) :---- I
इस ताम्रपत्र अभिलेख मे लिखा है। कि राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुर्ग ने 754 ई. मे "हिरण्य - गर्भ - महादान " नामक यज्ञ किया तो इस शुभ अवसर पर गुर्जर आदि राजाओ ने यज्ञ की सफलता पूर्वक सचालन हेतु यज्ञ रक्षक ( प्रतिहार ) का कार्य किया । ( अर्थात यज्ञ रक्षक प्रतिहारी का कार्य किया )
( " हिरणय गर्भ राज्यनै रुज्जयन्यां यदसितमा प्रतिहारी कृतं येन गुर्जरेशादि राजकम " )
{ सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका -- 18 , पृष्ठ 235 , 243 - 257 }
2. सिरूर शिलालेख ( :----
यह शिलालेख गोविन्द - III के गुर्जर नागभट्ट - II एवम राजा चन्द्र कै साथ हुए युद्ध के सम्बन्ध मे यह अभिलेख है । जिसमे " गुर्जरान " गुर्जर राजाओ, गुर्जर सेनिको , गुर्जर जाति एवम गुर्जर राज्य सभी का बोध कराता है।
( केरल-मालव-सोराषट्रानस गुर्जरान )
{ सन्दर्भ :- उज्जयिनी का इतिहास एवम पुरातत्व - दीक्षित - पृष्ठ - 181 }
3. बडोदा ताम्रपत्र ( 811 ई.) :---
कर्क राज का बडोदा ताम्रपत्र शक स. 734 ( 811-812 ई ) इस अभिलेख मे गुर्जरैश्वर नागभट्ट - II का उल्लेख है ।
( गोडेन्द्र वगपति निर्जय दुविदग्ध सद गुर्जरैश्वर -दि गर्गलताम च यस्या नीतवा भुजं विहत मालव रक्षणार्थ स्वामी तथान्य राज्यदद फलानी भुडक्तै" )
{ सन्दर्भ :- इडियन एन्टी. भाग -12 पृष्ठ - 156-160 }
4. बगुम्रा-ताम्रपत्र ( 915 ई. )
इन्द्र - तृतीय का बगुम्रा -ताम्र पत्र शक सं. 837 ( 915 ई )
का अभिलेख मे गुर्जर सम्राट महेन्द्र पाल या महिपाल को दहाड़ता गुर्जर ( गर्जदै गुर्जर - गरजने वाला गुर्जर ) कहा गया है ।
( धारासारिणिसेन्द्र चापवलयै यस्येत्थमब्दागमे । गर्जदै - गुर्जर -सगर-व्यतिकरे जीणो जनारांसति।)
{ सन्दर्भ :-
1. बम्बई गजेटियर, भाग -1 पृष्ट - 128, नोट -4
2. उज्जयिनी इतिहास तथा पुरातत्व, दीक्षित - पृष्ठ - 184 -185 }
5. खुजराहो अभिलेख ( 954 ई. ) :----
चन्दैल धगं का वि. स . 1011 ( 954 ई ) का खुजराहो शिलालैख सख्या -2 मे चन्देल राजा को मरु-सज्वरो गुर्जराणाम के विशेषण से सम्बोधित किया है ।
( मरू-सज्वरो गुर्जराणाम )
{ एपिग्राफिक इडिका - 1 पृष्ठ -112- 116 }
6. गोहखा अभिलेख :--
चैदिराजा कर्ण का गोहखा अभिलैख मे गुर्जर राजा को चेदीराजालक्ष्मणराजदैव दवारा पराजित करने का उल्लेख किया गया हे ।
( बगांल भगं निपुण परिभूत पाण्डयो लाटेरा लुण्ठन पटुज्जिर्जत गुज्जॆरेन्द्र ।
काश्मीर वीर मुकुटाचित पादपीठ स्तेषु क्रमाद जनि लक्ष्मणराजदैव )
{ सन्दर्भ :- 1. एपिग्राफिक इडिका - 11 - पृष्ठ - 142
2. कार्पस जिल्द - 4 पृष्ठ -256, श्लोक - 8 }
7. बादाल स्तम्भ लैख:--
नारायण पाल का बादाल सत्म्भ लैख के श्लोक संख्या 13 के अनुसार गुर्जर राजा राम भद्रदैव ( गुर्जर - नाथ) के समय दैवपाल ने गुर्जर- प्रतिहार के कुछ प्रदेश पर अधिकार कर लिया था ।
( उत्कीलितोत्कल कुलम हत हूण गर्व खव्वीकृत द्रविड गुर्जर-नाथ दप्पर्म )
{ सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका - 2 पृष्ठ - 160 - श्लोक - 13 }
8. राजोरगढ अभिलेख ( 960 ई. ) :--
गुजॆर राजा मथन दैव का वि. स. ( 960 ई ) का राजोर गढ ( राज्यपुर ) अभिलेख मे महाराज सावट के पुत्र गुर्जर प्रतिहार मथनदैव को गुर्जर वंश शिरोमणी तथा समस्त जोतने योग्य भूमि गुर्जर किसानो के अधीन उल्लेखित है ।
( श्री राज्यपुराव सिथ्तो महाराजाधिराज परमैश्वर श्री मथनदैवो महाराजाधिरात श्री सावट सूनुग्गुज्जॆर प्रतिहारान्वय ...... स्तथैवैतत्प्रतयासन्न श्री गुज्जॆर वाहित समस्त क्षैत्र समेतश्च )
{ सन्दर्भ :-- एपिग्राफिक इडिका - 3 पृष्ट - 263-266 }

वीर गुर्जर - प्रतिहार वंश के साहित्यिक अभिलेख

वीर गुर्जर - प्रतिहार वंश के साहित्यिक अभिलेख :------
1. उधोतन सूरी दृआरा लिखित ग्रन्थ - कुवालय माला :----
जाबालीपुर ( जालोर ) नरेश- वत्सराज ) के दरबारी कवि एवम शिक्षक, उधोतन सूरी जैन मुनि ने शक सम्वत 700 ( 778 ई. ) मे कुवालयमाला नामक ग्रन्थ की रचना प्राकृत भाषा मे की थी । इसमे वत्स राज के राज्य प्रदेश को " गुर्जर दैश" कहा तथा गुर्जर दैश का समुचित वर्णन किया । गुर्जर दैश के निवासी गुर्जर ( गुज्जरै आवरे ) का भी वर्णन किया है। गुर्जर सम्राट वत्सराज को उधोतन सूरी नै " रणहस्तिन" अर्थात युद्ध मे हाथी की तरह स्थिर रहने वाला वीर योध्दा लिखा है ।
{ सन्दर्भ :- उधोतनसूरी कृत - कुवालयमाला }
2. जिनसेन सूरी कृत "हरिबशं-पुराण" ):----
शक समवत ) 705 ( 783 ई ) वर्धमान पुर ( बडवान) नगर मे गुर्जर प्रतिहारो के सामन्त राजा नन्नराज चापोत्कट के समय जिनसेन सूरी ने " हरिवंश पुराण" की रचना करी थी जिसमे गुर्जर प्रतिहार राजाओ का ओर उनकी दानशीलता व युध्द मे दिखाये पराक्रम की मुक्त कंठ से प्रशंसा का विस्तार सै वर्णन किया है ।
{ सन्दर्भ :--
1. इपिग्राफिक इडिका -15 पृष्ठ -141
2. गुप्तोतर राजवशं -राम वृशसिहं पृष्ठ -552
3. उज्जयिनी इतिहास एवम पुरातत्व - स. का. दीक्षित -पृष्ठ -178-179 }
3. कलहण कृत राज तरगिणी ):---
काश्मीर के राज दरबारी कवि एवम लैखक कल्हणने "राज तरंगिणी " नामक ग्रन्थ की रचना करी इसमे लिखा है कि यहा गुर्जर साम्राज्य के महान सम्राट मिहिर भोज के समय, चिनाव एवम झैलम नदियो के दोआब के शासक गुर्जर लखन पर, काश्मीर नरेश शंकरवर्मन दवारा आक्रमण करने तथा लखन से टक्कदैश जीत लिए जाने की घटना का वर्णन है । गुर्जर सम्राट मिहिर भोज ने यह टक्कदैश , शंकरवर्मन से आदेश मात्र से छीनकर पुनः लखन को दिलाया था ।
( उच्चखानालाखानस्य सख्यै, गुर्जर-भू-भुज ।
बदृ मूलाम क्षणा लक्ष्मी शुचं दीर्घारोपयतात स्मै दत्वा टक्क देशं विनयादडगं लीमिव ।
स्वशरीरम एवापासीन्मडंलम गुर्जराधिप ।।
हतम भोजाधि राजेन स साम्राज्य मदायत प्रतिहारतया भृत्यी भूतै थक्रुयिकान्वयै ।। )
{ सन्दर्भ :- 1. कल्हण राजतरगिणी -5 , पृष्ठ - 149--155
2. गुर्जर इतिहास - यतीन्द्र कुमार वर्मा - पृष्ठ - 58-59 }
4. अरब इतिहासकार - लेखको दृवारा - गुर्जर राजाओ का अपने साहित्य मे वर्णन :-----
1. सलसिलातु - त - तवारिख:--- सुलेमान एवम अबु जैद
2. अल मसूदी, मुरूज -उल-जहान )
3. अल ईदरिसी-नजहत -उल -मसतक )
4. अल बैरूनी, तहकीकै-हिनद
5. इब्न खुर्दादृ, किताब- उलमसालै-वल-मामलिक )
आदि अरब लेखको ने गुर्जरों को "जुर्ज" लिखा है । गुर्जर प्रतिहार शासको को भी "जूज्र" राजा ही लिखा है । अल मसूदी ने " जूज्रो" ( गुर्जरों की उपाधि " वराह" का भी उल्लेख किया है ।
5. कन्नड कवि पम्प का पम्पभारत ( विक्रमार्जुन विजय :----
कन्नड कवि पम्प ने "पम्पभारत" ग्रन्थ की रचना की तथा कन्नौज गुर्जर नरेश महिपाल को "गुर्जर राजा " सम्बोधित करते हुये मुक्त कंठ से प्रशंसा करी है।
राष्ट कूटो के सामन्त चालुक्य गुर्जर अरि कैशरिन के समय वेलुमवाड मे पम्प ने विक्रमार्जुन विजय ( पम्पभारत ) की रचना 941 ईस्वी मे की थी ।
{ सन्दर्भ :- 1. प्राचीन भारत का इतिहास- विधाधर महाजन पृष्ठ - 625
2. उत्तर भारत का राजनेतिक इतिहास -- विशुद्धानन्द पाठक--पृष्ठ - 160 }

पृथ्वीराज रासो

पृथ्वीराज रासो मे राजपूतो के 36 कुलो का तथा उनके उद्भव का वर्णन है । किन्तु उन 36 कुलो मे "गाहडवालो" का नाम नही है जो बारहवी ( 12 वी ) शताब्दी मे उत्तर भारत के सम्राट थे । सोलहवी शताब्दी से पहले के किसी ग्रन्थ या लेख मे राजपूत जात का उल्लेख ही नही है । राजपूत एक जात है यह कल्पना सोलहवी (16 वी ) शताब्दी मे शुरू हुई । पृथ्वीराज रासो के आधार पर राजपूतो के उदभव के विषय मे जो स्थापनाऐ की गई है वे कपोल कल्पित व निर्मूल है ।
सन्दर्भ :--
भारत का इतिहास- इतिहास प्रवेश ( 1950) -- प• जयचन्द्र विधालंकार , पृष्ठ --191

Gurjar Pratihar

जै • कैम्पबैल ने गजेटियर मे लिखा है कि-----
"खजर" जोरजीयन थे, यह मान्यता अब भी है दक्षिणी आर्मिनियन पूर्व की ओर बढे थे । "आबू के पर्वत पर यज्ञ से जो चार अग्निकुंल वंशो को बोद्धो के विरुद्ध मदद करने के लिए शुध्द किये गये थे , वे "गुर्जर " थे ।
सन्दर्भ :---
1-- क्षत्रिय शाखाओ का इतिहास - देवी सिंह मण्डावा, पृष्ठ -- 29
2-- बाॅम्बे प्रेसीडेन्सी का गजेटियर - 161 X 1901 --Page - 476-483


Image may contain: text

गुर्जर प्रतिहार

  नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है । राजौरगढ शिलालेख" में वर्णित "गुर्जारा प्रतिहार...