Friday 27 September 2024

राव उमराव सिंह गूर्जर

राव उमराव सिंह गूर्जर
राव उमराव सिंह भाटी दादरी बुलन्दशहर उत्तर प्रदेश के समीप कठैड़ा गांव के निवासी थे।
सन् 1857 ई0 की क्रान्ति में इन्होने अन्य गुर्जरों की तरह बढ़ चढ़ कर भाग लिया था।
राव उमराव सिंह भाटी ने 1857 की क्रान्ति में वही काम किया जो जलती अग्नि में घी का काम करता है।
उन्होनें राजा की उपाधि ब्रिटिश सरकार को लौटा दी और पेंशन छोड़ कर भाटी,कपासिया,खटाणा,नागंड़ी,विधुड़ी,डेढिए आदि गुर्जर खानों के साथ इस क्रान्ति में शरीक होकर इनका नेतृत्व किया।
इन क्रान्तिकारी गुर्जरों ने बुलन्दशहर की जेल तोड़ दी और थाने,कचहरी,डाक बंगले सब जला दिए ।
छावनियों को लूट कर बर्बाद कर दिया और बुलन्दशहर में राज्य व्यवस्था एकदम भंग कर दी ।
तत्कालीन कलैक्टर साप्टे बुलन्दशहर छोड़ कर भाग गया था और मेरठ में जा कर शरण ली।
बाद में उसने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि मेरठ में गदर होते ही गूर्जरों के सारे गांव बागी हो गए।
कठैड़ा गांव के राव उमराव सिंह ने अपने को राजा घोषित कर दिया और दिल्ली से सम्बन्ध स्थापित कर लिए ।
साप्टे ने यह भी लिखा था दादरी के आसपास के गूर्जरों का अफसर उमराव सिंह तो दनकौर के गूर्जरों का अफसर सुरजीत सिंह है।
वास्तव में दादरी क्षेत्र के गुर्जरों ने राव उमराव सिंह को अपना राजा मान लिया था और राव उमराव सिंह ने भी अपने को राजा घोषित कर दिया था।
उसकी राजाज्ञाएं निकलने लगी थी और उसे मालगुजारी भी मिलने लगी थी।
लेकिन अंग्रेंजों ने शीध्र ही स्थिति पर काबू पा लिया और दमनचक्र प्रारंभ कर दिया ।
इन देश भक्त गुर्जरों के गांव जलाकर राख कर दिए गए ।
गुर्जरों की जमीन जायदाद जब्त कर ली गई और वह अंग्रेंजों ने अपने वफादार चहेते मुकबरों का बतौर इनाम जागीर व गांव दिए गए और देशभक्त गुर्जरों पर बगैर मुकदमा चलाए राजद्रोही घोषित करके उनको सरेआम गोली से उड़वा दिया गया अथवा पेड़ों पर फांसी से लटका दिया गया।
बुलन्दशहर का काला आम पर सिकन्दराबाद के पास के गांव लुहारली के दादा मुजलिस भाटी को लटका कर फांसी दे दी गई और इसकी लाश को काला आम के पेड़ के साथ हाथ पैंरों में कील ठोक कर ईसामसीह की तरह टांक दिया गया और कई दिन तक उसकी लाश वहां लटकी रही ।
राव उमराव सिंह को बुलन्दशहर ले जा कर सड़क पर लिटा कर खूनी हाथी से कुचलवा दिया गया।
इसी प्रकार राव सेढू सिंह भाटी कटेहरा निवासी को भी हाथी से ही कुचलवा कर मारा गया।
राव बिशन सिंह कठैड़ा को दादरी में ही फांसी दी गई थी।
दनकौर के पास नागड़ी गूर्जरों में अटटा गांव के इन्द्र सिंह,
जुनेदपुर के दरयाब सिंह,सुरजीत सिंह राजपुर,जुनेदपुर के दरयाव सिंह नत्था सिंह व कान्हा सिंह,असावर के एमन सिंह तथा गुनपुरा के रामबख्श प्रसिद्ध है जिनको 1857 की क्रान्ति में भाग लेने पर फांसी दी गई।
इनकी जमीन व जायदाद जब्त करके अपने अन्य जातियों के चहेते मुकबरों को बतौर इनाम दी गई
गुर्जरों को सजा देने का तरीका भी बड़ा विचित्र था जिसकी मिसाल दुनियां के इतिहास में मिलनी संभव है।
बुलन्दशहर जिले में अंग्रेंजों को गुर्जरों की पहचान उनके वफादारों ने यह बताई कि गुर्जर का उच्चारण चने को चणां और आलू को आल्हू है और वह चौड़ी किनारीदार धोती पहनते है।
उन दिनों चौड़ी किनारी की धोती का प्रचलन गुर्जर जाति में काफी था।
इन देशभक्तों के साथ डबल जुल्म हुआ।
एक तो उन्होने भारत माता की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया दूसरा उनका नाम तक इतिहास में नहीं है।
कैसी अजीब विडम्बना है इतिहास लिखता कोई और बलिदान कोई और देता है।
डिप्टी कलैक्टर कुंवर लक्ष्मण सिंह ने दादरी क्षेत्र के ग्यारह अन्य गुर्जरों को भी फांसी पर लटकाने का उल्लेख किया है।
राव अजीत सिंह के पौत्र विशनसिंह तथा भगवन्त सिंह के अतिरिक्त पांच नागड़ी गूर्जरों को भी प्राण दण्ड दिया गया था।
दनकौर के आस पास गांवों में रहने वाले नागड़ी गुर्जरों ने भी 1857 के विद्रोह में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था उनके पांच सरदारों को फांसी की सजा मिली।
ये है अटटा गांव के इन्द्रसिंह,जुनेदपुर के दरयाब सिंह,राजपुर के सुरजीत सिंह,अटटा के नत्था सिंह और गुनपूरा के रामबख्श।
इन देश भक्तों के प्राण ले लेने पर भी अंग्रेंज हकूमत की बदले की भावना शान्त नहीं हुई थी अंग्रेंजी सेना किसी भी दिशा में आगे बढ़ती और गांवों को आग लगा देती।
तत्कालीन गुप्त दस्तावेज के अनुसार 20 सितम्बर 1858 को कर्नल ग्रीथेड ने दादरी के आस पास के गांवों में आग लगवा दी थी।
दादरी के क्षेत्र को अंग्रेंज सरकार ने सर्वाधिक गड़बड़ वाला इलाका घोषित किया था क्योंकि 10 मई 1857 को मेरठ में हुए गदर की सूचना पाते ही सर्वप्रथम दादरी और उसके आस पास के गुर्जरों ने अंग्रेंज हकूमत को क्षीण करने के लिए अव्यवस्था तथा अराजकता फैला कर अपना प्रभुत्व जमा लिया था।
दमन चक्र के दौरान अंग्रेंजों ने गूर्जरों को इसका सामूहिक व्यक्तित्व तथा सांस्कृतिक दण्ड भी दिया और उनके गांवों के उपेक्षित छोड़ दिया गया।
फलतः विकास के लिए सभी कार्य और योजनाएं तथा मार्ग उनके लिए लगभग एक सदी तक बंद रहे।
गुर्जरों की देशभक्ति को राजद्रोह कहा गया उनको राजकीय सेवाओं से वंछित रखा गया।
अंग्रेंजों ने गुर्जरों के गौरवपूर्ण इतिहास को कलुषित करके इतनी सांस्कृतिक हानि पहुंचाई है जिसकी अभी तक क्षतिपूर्ति नहीं हो पाई है।
भारतदेश की स्वाधीनता के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले देशभक्तों के परिवारों की स्वाधीनता के पश्चात भी सरकार ने खबर सुध नहीं ली है न इन वीर शहीदों का स्मारक ही बनाया है।
जिससे हमारी नयी पीढ़ी के युवा युवतियां इनके बलिदानों से प्ररेणा ले सकें।
गर्व है मुझे मेरे गुर्जर वीरों पर और अपनी वीर जाति पर
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