Friday, 27 September 2024

1857 की क्रांति में दादरी एवं सिकन्दराबाद के निकटवर्ती क्षेत्र

पुस्तक :- 1857 का विप्लव
रचनाकार : विघ्नेश कुमार, मुदित कुमार
प्रकाशन :-1857 पेट्रियोटिकल प्रेजेन्टेशन, पब्लिकेशन डिवीज़न
सूचना एवं प्रसार मंत्रालय, भारत सरकार
10 मई को मेरठ से शुरू हुआ विप्लव शीघ्र ही दादरी एवं सिकन्दराबाद क्षेत्र में फैल गया। दादरी एवं सिकन्दराबाद में गुर्जर क्रांतिकारियों ने सरकारी डाक बग़लों, तार घरों व इमारतों को ध्वस्त करना आरम्भ कर दिया। सरकारी संस्थानों को लूटकर उनमें आग लगा दी गई। इस प्रकार सिकन्दराबाद कस्बे के चारों और लूटपाट व आगज़नी की घटनाएँ घटित होने लगी। 15 मई को क्रांतिकारी सैनिकों की रेजिमेंट ने सिकन्दराबाद में पूर्व दिशा की ओर से प्रवेश करके पुलिस व्यवस्था को पूर्णतः नष्ट कर दिया। जो सैनिक तथा चपरासी उपखंड की सुरक्षा के लिए तैनात थे, वे सभी वहाँ से भाग गए।
दादरी में भी लूटपाट की अत्यधिक घटनाएँ हो रही थी। यद्यपि मि. टर्नबुल वहाँ शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से चले किन्तु रास्ते में बड़पुरा गाँव के निकट क्रांतिकारियों द्वारा उसे रोक दिया गया। 21 मई को दोपहर बुलन्दशहर के जिला मजिस्ट्रेट सैप्टे को दादरी के एक मुखाबिर ने सूचना दी कि 5 बजे शाम गुर्जरों एवं राजपूतों का आक्रमण होने वाला है। 4:30 पर उन्हें दूसरी सूचना मिली की अलीगढ़ से 9वीं पलटन के क्रांतिकारी सैनिक खुर्जा पहुँच गये हैं। इन खबरों को सुनकर मि. सैप्ट ने खजाने को मेरठ भेजने का विचार किया। उसने मि. रौस को गाड़ियों में खजाना रखने के लिए कहा लेकिन खजाने की चाबियाँ उस समय नहीं थी। इसलिए सन्दूकों को तोड़कर खजाने को सरकारी गाड़ियों में लाद दिया गया। इसके बाद टर्नबुल, मैल्विल, लॉयल कुछ घुड़सवारों के साथ आगे बढ़ना ही चाहते थे, परन्तु दादरी के निकटवर्ती क्षेत्र के गुर्जरों एवं राजपूतों के आक्रमण के कारण तथा 9वीं पल्टन के क्रांतिकारी सैनिकों के बुलन्दशहर आ जाने से, वे आगे नही बढ़ सके। इस समय एक क्रांतिकारी संतरी ने उन्हें सावधान करते हुए कहा कि 'सावधान! यदि कोई भी आगे बढ़ा तो गोली मार दी जायेगी।' यद्यपि ब्रितानियों ने क्रांतिकारियों का सामान किया और संघर्ष में कई क्रांतिकारी भी मारे गये लेकिन फिर भी क्रांतिकारियों ने खजाने को लूट लिया। जब लेफ्टिनेन्ट रौस ने अपने सैनिकों को कोषागार बचाने के लिए कहा तो उन्होंने आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया और वे भी क्रांतिकारियों के साथ हो गये। इस समय बुलन्दशहर में तोड़-फोड़ की गयी तथा सभी प्रलेख खत्म कर दिये गये। क्रांतिकारी ग्रामीणों के आने से पहले की क्रांति से प्रभावित जेल प्रहरियों ने जेल का फाटक खोल दिया। जेल से निकले कैदियों ने भी विप्लव में भाग लिया। गुर्जरों एवं अन्य क्रांतिकारियों ने जिला अदालत में भी तोड़-फोड़ की और सभी कागजात जला डाले। क्रांति की इस भयावह स्थिति से आतंकित होकर अपने प्राण बचाने के लिए सभी अंग्रेज अधिकारी बुलन्दशहर छोड़कर 21 मई को सायं 6:30 बजे मेरठ की ओर भाग खड़े हुए। वे भाग कर 10 बजे रात्रि में हापुड़ पहुँचे और 22 मई को प्रातः 9 बजे जान बचाकर मेरठ आ गये। बुलन्दशहर से ब्रिटिश अधिकारियों के पलायन करने के पश्चात् वहाँ से ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और मेरठ से आगरा तक का मार्ग क्रांतिकारियों के नियन्त्रण में आ गया। मेजर रीड के नेतृत्व में सिरमुर बटालियन जो नहर के मार्ग से कुछ दिन पहले बुलन्दशहर आने वाली थी, वह क्रांतिकारियों द्वारा नहर को क्षतिग्रस्त कर देने के कारण बहुत देर एवं कठिनाई से 24 मई को बुलन्दशहर पहुँची। देहरादून से गोरखा पल्टन की खबर सुनकर जिला मजिस्ट्रेट सैप्टे, लेफ्टिनेन्ट रौस, कैप्टन टर्नबुल तथा लॉयल 26 मई को बुलन्दशहर वापिस लौट आये।दादरी में भी लूटपाट की अत्यधिक घटनाएँ हो रही थी। यद्यपि मि. टर्नबुल वहाँ शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से चले किन्तु रास्ते में बड़पुरा गाँव के निकट क्रांतिकारियों द्वारा उसे रोक दिया गया। 21 मई को दोपहर बुलन्दशहर के जिला मजिस्ट्रेट सैप्टे को दादरी के एक मुखाबिर ने सूचना दी कि 5 बजे शाम गुर्जरों एवं राजपूतों का आक्रमण होने वाला है। 4:30 पर उन्हें दूसरी सूचना मिली की अलीगढ़ से 9वीं पलटन के क्रांतिकारी सैनिक खुर्जा पहुँच गये हैं। इन खबरों को सुनकर मि. सैप्ट ने खजाने को मेरठ भेजने का विचार किया। उसने मि. रौस को गाड़ियों में खजाना रखने के लिए कहा लेकिन खजाने की चाबियाँ उस समय नहीं थी। इसलिए सन्दूकों को तोड़कर खजाने को सरकारी गाड़ियों में लाद दिया गया। इसके बाद टर्नबुल, मैल्विल, लॉयल कुछ घुड़सवारों के साथ आगे बढ़ना ही चाहते थे, परन्तु दादरी के निकटवर्ती क्षेत्र के गुर्जरों एवं राजपूतों के आक्रमण के कारण तथा 9वीं पल्टन के क्रांतिकारी सैनिकों के बुलन्दशहर आ जाने से, वे आगे नही बढ़ सके। इस समय एक क्रांतिकारी संतरी ने उन्हें सावधान करते हुए कहा कि 'सावधान! यदि कोई भी आगे बढ़ा तो गोली मार दी जायेगी।' यद्यपि ब्रितानियों ने क्रांतिकारियों का सामान किया और संघर्ष में कई क्रांतिकारी भी मारे गये लेकिन फिर भी क्रांतिकारियों ने खजाने को लूट लिया। जब लेफ्टिनेन्ट रौस ने अपने सैनिकों को कोषागार बचाने के लिए कहा तो उन्होंने आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया और वे भी क्रांतिकारियों के साथ हो गये। इस समय बुलन्दशहर में तोड़-फोड़ की गयी तथा सभी प्रलेख खत्म कर दिये गये। क्रांतिकारी ग्रामीणों के आने से पहले की क्रांति से प्रभावित जेल प्रहरियों ने जेल का फाटक खोल दिया। जेल से निकले कैदियों ने भी विप्लव में भाग लिया। गुर्जरों एवं अन्य क्रांतिकारियों ने जिला अदालत में भी तोड़-फोड़ की और सभी कागजात जला डाले। क्रांति की इस भयावह स्थिति से आतंकित होकर अपने प्राण बचाने के लिए सभी अंग्रेज अधिकारी बुलन्दशहर छोड़कर 21 मई को सायं 6:30 बजे मेरठ की ओर भाग खड़े हुए। वे भाग कर 10 बजे रात्रि में हापुड़ पहुँचे और 22 मई को प्रातः 9 बजे जान बचाकर मेरठ आ गये। बुलन्दशहर से ब्रिटिश अधिकारियों के पलायन करने के पश्चात् वहाँ से ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और मेरठ से आगरा तक का मार्ग क्रांतिकारियों के नियन्त्रण में आ गया। मेजर रीड के नेतृत्व में सिरमुर बटालियन जो नहर के मार्ग से कुछ दिन पहले बुलन्दशहर आने वाली थी, वह क्रांतिकारियों द्वारा नहर को क्षतिग्रस्त कर देने के कारण बहुत देर एवं कठिनाई से 24 मई को बुलन्दशहर पहुँची। देहरादून से गोरखा पल्टन की खबर सुनकर जिला मजिस्ट्रेट सैप्टे, लेफ्टिनेन्ट रौस, कैप्टन टर्नबुल तथा लॉयल 26 मई को बुलन्दशहर वापिस लौट आये।
परन्तु इससे पूर्व 23 मई को महेशा, मनौरा और बेयर गाँव के 4-5 हजार ग्रामीण एकत्रित हुए तथा उन्होंने मिलकर सिकन्दराबाद पर आक्रमण करके खूब लूटमार की। इस लूटमार में करीब 70 लोग मारे गये।

दादरी क्षेत्र के गाँवों में कटहेड़ा गाँव के उमारव सिंह, बिलू गाँ के रूपराम, लाहरा खुगुआरा के सिब्बा एवं नयनसुख, नंगला के झण्डू, छतेहरा के फतेह गुर्जर, महेशा के बेबी सिंह जमींदार, बेयर के हरबोल, तिलबेगपुर के चौधरी पीर बख्श खाँ एवं धौला, किलौना, नंगला समाना व पारफा के ग्रामीणों ने क्रांतिकारी गतिविधियों में महत्वपूर्ण भाग लिया।
कुछ समय बाद में बुलन्दशहर में ब्रितानियों की स्थिति धीरे-धीरे दृढ़ होती गई। उन्होंने सेना के उन अधिकांश सैनिकों को नौकरी से निकाल दिया जिन्होंने क्रांति में गुप्त रूप से या प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया था। उनके स्थान पर निकटवर्ती गाँवों के जाटों को भर्ती किया गया क्योंकि उन्होंने ब्रितानियों के प्रति स्वामी-भक्ति प्रदर्शित की थी।
क्रांति की असफलता के पश्चात् ब्रितानियों ने दादरी परगने में दमनचक्र शरू किया। 26 सितम्बर को ग्रीथेड ने दादरी और आस-पास के गाँवों में आग लगवा दी। इस परगने के रोशन सिंह के पुत्रों एवं भाइयों को सरेआम फाँसी दे दी गयी और उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गयी। कटहेड़ा के उमराव सिंह एवं सेढू सिंह भाटी को जिन्दा जमींन पर लिटा कर हाथी से कुचलवा दिया गया। दादरी के भगत सिंह एव बिसन सिंह को बुलन्दशहर में 'काला आम' (कत्लेआम) चौराहे, बुलन्दशहर पर फाँसी दे गयी। इस स्थान को वर्तमान में 'शहीद चौक' के नाम से जाना जाता है।

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