Friday 27 September 2024

Gurjardesh

गुर्जर देश -  English version is end of the post.

गुर्जर जाति ने अनेक स्थानों को अपना नाम दिया| गुर्जर जाति के आधिपत्य के कारण आधुनिक राजस्थान सातवी शताब्दी में गुर्जर देश कहलाता था|

हर्ष वर्धन (606-647 ई.) के दरबारी कवि बाणभट्ट ने हर्ष-चरित नामक ग्रन्थ में हर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन का गुर्जरों के राजा के साथ संघर्ष का ज़िक्र किया हैं| संभवतः उसका संघर्ष गुर्जर देश के गुर्जरों के साथ हुआ था| अतः गुर्जर छठी शताब्दी के अंत तक गुर्जर देश (आधुनिक राजस्थान) में  स्थापित हो चुके था|

हेन सांग ने 641 ई. में सी-यू-की नामक पुस्तक में गुर्जर देश का वर्णन किया हैं| हेन सांग ने मालवा के बाद ओचलि, कच्छ, वलभी, आनंदपुर, सुराष्ट्र और गुर्जर देश का वर्णन किया हैं| गुर्जर देश के विषय में उसने लिखा हैं कि ‘वल्लभी के देश से 1800 ली (300 मील) के करीब उत्तर में जाने पर गुर्जर राज्य में पहुँचते हैं| यह देश करीब 5000 ली (833 मील) के घेरे में हैं| उसकी राजधानी भीनमाल 33 ली (5 मील) के घेरे में हैं| ज़मीन की पैदावार और रीत-भांत सुराष्ट्र वालो से मिलती हुई हैं| आबादी घनी हैं लोग धनाढ्य और संपन्न हैं| वे बहुधा नास्तिक हैं, (अर्थात बौद्ध धर्म को नहीं मानने वाले हैं)| बौद्ध धर्म के अनुयाई थोड़े ही हैं| यहाँ एक संघाराम (बौद्ध मठ) हैं, जिसमे 100 श्रवण (बौद्ध साधु) रहते हैं, जो हीन यान और सर्वास्तिवाद निकाय के मानने वाले हैं| यहाँ कई दहाई देव मंदिर हैं, जिनमे भिन्न संप्रदायों के लोग रहते हैं| राजा क्षत्रिय जाति का हैं| वह बीस वर्ष का हैं| वह बुद्धिमान और साहसी हैं| उसकी बौद्ध धर्म पर दृढ आस्था हैं और वह बुधिमानो का बाद आदर करता हैं|”

भीनमाल के रहने वाले ज्योत्षी ब्रह्मगुप्त ने शक संवत 550  (628 ई.) में अर्थात हेन सांग के वह आने के 13 वर्ष पूर्व ‘ब्रह्मस्फुट’ नामक ग्रन्थ लिखा जिसमे उसने वहाँ के राजा का नाम व्याघ्रमुख और उसके वंश का नाम चप (चपराना, चापोत्कट, चावडा) बताया हैं| हेन सांग के समय भीनमाल का राजा व्याघ्रमुख अथवा उसका पुत्र रहा होगा|

भीनमाल का इतिहास गुर्जरों का नाता कुषाण सम्राट कनिष्क से जोड़ता हैं| प्राचीन भीनमाल नगर में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण काश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। मारवाड़ एवं उत्तरी गुजरात कनिष्क के साम्राज्य का हिस्सा रहे थे। भीनमाल के जगस्वामी मन्दिर के अतिरिक्त कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व ने कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। कहते है कि भिनमाल के वर्तमान निवासी देवड़ा/देवरा लोग एवं श्रीमाली ब्राहमण कनक के साथ ही काश्मीर से आए थे। देवड़ा/देवरा, लोगों का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने जगस्वामी सूर्य मन्दिर बनाया था। राजा कनक से सम्बन्धित होने के कारण उन्हें सम्राट कनिष्क की देवपुत्र उपाधि से जोड़ना गलत नहीं होगा। सातवी शताब्दी में यही भीनमाल नगर गुर्जर देश की राजधानी बना। ए. कनिघंम ने आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट 1864 में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है और उसने माना है कि गुर्जरों के कसाना गौत्र के लोग कुषाणों के वर्तमान प्रतिनिधि है।

गुर्जर देश से गुर्जरों ने पूर्व और दक्षिण की तरफ अपना विस्तार किया| 580 ई के लगभग दद्दा I गुर्जर ने  दक्षिणी गुजरात के भडोच इलाके में एक राज्य की स्थापना कर ली थी| अपने अधिकांश शासन काल के दौरान भडोच के गुर्जर वल्लभी के मैत्रको के सामंत रहे| गुर्जर मालवा होते हुए दक्षिणी गुजरात पहुंचे और भडोच में एक शाखा को वह छोड़ते हुए समुन्द्र के रास्ते वल्लभी पहुंचे| मैत्रको के अतरिक्त चावडा भी छठी शताब्दी में समुन्द्र के रास्ते ही गुजरात पहुंचे थे| गुजरात में चावडा सबसे पहले बेट-सोमनाथ इलाके में आकर बसे|

छठी शताब्दी के अंत तक चालुक्यो ने दक्कन में वातापी राज्य की स्थापना कर ली थी| होर्नले के अनुसार वो हूण-गुर्जर समूह के थे|  मंदसोर के यशोधर्मन और हूणों के बीच मालवा में युद्ध लगभग 530 ई. में हुआ था| होर्नले का मत हैं कि यशोधर्मन से मालवा में पराजित होने के बाद हूणों की एक शाखा नर्मदा के पार दक्कन की तरफ चली गई| जिन्होने चालुक्यो के नेतृत्व वातापी राज्य की स्थापना की| वी. ए. स्मिथ भी चालुक्यो को गुर्जर मानते हैं|

आठवी शताब्दी के आरम्भ में गुर्जर-प्रतिहार उज्जैन के शासक थे| नाग भट I ने उज्जैन में गुर्जरों के इस नवीन राजवंश की नीव रखी थी| संभवत इस समय गुर्जर प्रतिहार भीनमाल के चप वंशीय गुर्जर के सामंत थे|

ये सभी हूण-गुर्जर समूह से संबंधित राज्य एक ढीले-ढाले परिसंघ में बधे हुए थे, जिसके मुखिया भीनमाल के चप वंशीय गुर्जर थे| हालाकि इनके बीच यदा-कदा छोटे-मोटे सत्ता संघर्ष होते रहते थे, किन्तु बाहरी खतरे के समय से सभी एक हो जाते थे| हर्षवर्धन के वल्लभी पर आक्रमण के समय यह परिसंघ सक्रिय हो गया| 634 ई. के लगभग वातापी के चालुक्य पुल्केशी II तथा भडोच के गुर्जर दद्दा II ने हर्षवर्धन को नर्मदा के कछारो में पराजित कर दिया था|

724 ई. में जुनैद के नेतृत्व में पश्चिमी भारत पर हुए अरब आक्रमण ने एक अभूतपूर्व संकट उत्पन्न कर दिया| पुल्केशी जनाश्रय के नवसारी अभिलेख के अनुसार “ताज़िको (अरबो) ने तलवार के बल पर सैन्धव (सिंध), कच्छेल्ल (कच्छ), सौराष्ट्र, चावोटक (चापोत्कट, चप, चावडा), मौर्य (मोरी), गुर्जर आदि के राज्यों को नष्ट कर दिया था| इस संकट के समय भी हूण-गुर्जर समूह के राज्य एक साथ उठ खड़े हुए| इस बार इनका नेतृत्व उज्जैन के गुर्जर-प्रतिहार शासक नाग भट I ने किया| मिहिरभोज के ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने मलेच्छो को पराजित किया| नवसारी के पास वातापी के चालुक्य सामंत पुल्केशी जनाश्रय ने भी अरबो को पराजित किया|

724 ई. में जुनैद के नेतृत्व में हुए अरब आक्रमण के बाद भीनमाल के गुर्जर कमजोर अथवा नष्ट हो गए| अरबो को पराजित कर नागभट I के नेतृत्व में उज्जैन के गुर्जर प्रतिहारो की शक्ति का उदय हुआ| कालांतर में उन्होंने गुर्जर देश पर अधिकार कर लिया| तथा इसी के साथ गुर्जरों की प्रभुसत्ता भीनमाल के चपो के हाथ से निकलकर उज्जैन के गुर्जर-प्रतिहारो के हाथ में आ गई| कालांतर में नाग भट II  के नेतृत्व में उज्जैन के गुर्जर-प्रतिहारो ने कन्नौज को जीतकर उसे अपनी राजधानी बनाया|

सन्दर्भ

1. भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991,
2. रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006
3. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
4. के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968 
5. डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्डX L 1911
6. ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
7. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली,
8. जे.एम. कैम्पबैल, दी गूजर (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड IX भाग 2, बोम्बे, 1899
9.के. सी. ओझा, ओझा निबंध संग्रह, भाग-1 उदयपुर, 1954
10.बी. एन. पुरी. हिस्ट्री ऑफ गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986
11. डी. आर. भण्डारकर, गुर्जर (लेख), जे.बी.बी.आर.एस. खंड 21, 1903
12 परमेश्वरी लाल गुप्त, कोइन्स. नई दिल्ली, 1969
13. आर. सी मजुमदार, प्राचीन भारत
14. रमाशंकर त्रिपाठी, हिस्ट्री ऑफ ऐन्शीएन्ट  इंडिया, दिल्ली, 1987
                                                            (Dr Sushil Bhati)

English Version-

Gurjar country -

Gurjar caste gave many names to many places. Due to the lordship of the Gurjar caste, modern Rajasthan was called the Gurjar country in the seventh century.

Banbhat, a court poet of Harsh Vardhan (606-647 AD), mentioned the struggle with the King of Gujjars of Prabhakar Vardhan, Harsha's father, Harsh-Charit. Probably his struggle was with Gujjars of Gujjar country. Therefore, Gurjar had been established in the Gujjar country (modern Rajasthan) till the end of the sixth century.

Hein Song describes the Gujjar country in 641 CE, in the book C-u-ki. Hein Song has described the land of Ochli, Kachh, Vallahi, Anandpur, Surasura and Gujjar after Malwa. Regarding the Gujjar country, he wrote that, "Going to the north of 1800 l (300 miles) from the country of Vallabhbhai, Gujjar reaches the state. This country is around 5,000 lanes (833 miles). Its capital city is under 33 lais (5 miles). The land yields and the rituals are meeting the good people. The population is dense, people are wealthy and prosperous. They are mostly atheists, (i.e. not going to believe in Buddhism). Followers of Buddhism are few. There is a Sangram (Buddhist monastery) here, in which 100 hearings (Buddhist monks) live, who are considered to be inferior and universalist. There are several tenth deities in which there are people from different sects. Raja is of Kshatriya caste. He is twenty years old. He is intelligent and courageous. He has strong faith in Buddhism and he respects Buddhamano later. "

Jyotsasi Brahmagupta, living in Bhanmal, wrote a book, "Brahmosphat", 13 years before he came to the Sankasvat 550 (628 AD) that means Hey Song, in which he named the king of the name of Jai Maharaj and his descendant named Chap (Chaparana, Kathakkat , Chavda). During the time of Hein Song, the king of Bhinmal would be the king, or his son.

The History of Bhanmal links the Gujjars with the Kushan emperor Kanishka. In the ancient city of Binamal, the famous Jagatswami temple of Sun God was built by King Kanak (King Kanishka) of Kashmir. Marwar and northern Gujarat were part of Kanishka's empire. In addition to the Jagaswami temple of Bhinmal, Kanishka built a lake called 'Karada' there. Seven Kos east from Bhanmal gives credit to Kanishka for installing a town named Kanakawati. It is said that the current residents of Bhinmal had come from Kashmir with Deora / Deora people and Shrimali Brahmin Kanak. Devda / Deora, the name of the people was because they created the Jaguswami Sun temple. Due to the relation with King Kanak, it would not be wrong to associate Emperor Kanishka with the Deity son of God. In the seventh century, the city of Bhinnamal Gujjar became the capital of the country. a. Kannigam has identified the Kushanas in the Archaelogical Survey Report 1864 with the modern Gujjars and he has admitted that the people of Gujjar's kasana Gotra are the present representatives of the Kushanas.

Gujjars expanded east and south from Gujjar country. About Gujjar 580E, I had established a kingdom in the Bardoch area of Southern Gujarat. During most of his reign, the peasants of Gurudwara Vallabhbhai of Bhadoch remained. Gurjar reached Malabia in southern Gujarat and left a branch in Bhadoch and reached Wari Bhavan via Samundra. Apart from Maitreko, Chavda also reached Gujarat through the sea in the sixth century. Chavda in Gujarat first settled in Bet-Somnath area.

By the end of the sixth century, Chalukyo had established Vatapi State in the Deccan. According to Hornle, he belonged to the Hun-Gurjar group. Between the advent of Mandsaur and the Hunas in Malwa, the battle took place around 530 AD. Hornley thinks that after defeating Malwa in Yeshodarman, a branch of the Hanas went towards the Deccan across Narmada. Who established Vatapi state under Chalukuyu V. A. Smith also considers Chalukyo as a Gujjar.

In the beginning of the eighth century, Gujjar-Pratihar was the ruler of Ujjain. Nag Bhat I laid the foundation of this new dynasty of Gujjars in Ujjain. Probably at that time Gurjar Pratihar Bhamanal's chap was the peasant of Ancestral Gujjar.

All these kingdoms related to the Hun-Gujjar group were engaged in a loose-fierce confederacy, whose head was the Ancestral Gujjars of Bhanmal. Although there were occasional small-scale power struggles between them, but from the time of external threat all of them became one. This federation became active during Harshvardhan's attack on Vallabhbhai. About 634 AD, Chalukya Pulkeshya II of Varanasi and Gujjar Dadda II of Bhadoch defeated Harshvardhan in Narmada's Cacharro.

Arab invasion of western India led by Junaid in 724 AD created an unprecedented crisis. According to the Navsari record of Pulkshya Janasarai, "Taziko (Arbo) destroys the states of Sandhav (Sindh), Kachhela (Kutch), Saurashtra, Chavotak (Chapatkot, Chap, Chavda), Maurya (Mori), Gurjar etc. on the sword Was given During this crisis, the kingdoms of Hun-Gurjar group stood up together. This time, they were led by Ujjain's Gujjar-Pratihara ruler Nag Bhat I. According to Mihir Bhoj's Gwalior records, he defeated the merchants. Chalukya Samant Pulkshaya Janashri of Vanti, near Navsari, also defeated Arbo.

After the Arab invasion of Junaid in 724 AD, the Gurjars of Bhanimal were weakened or destroyed. By defeating Arbo, the power of Ujjain's Gujjar Prataharo emerged under the leadership of Nagabhata I. In time, he passed the Gujjar state.

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