dayaram khari gurjar






 दयाराम खारी गुर्जर (1857 की क्रांति) :दयाराम गुर्जर दिल्ली मे चन्द्रावल गांव के रहने वाला थे ।1857 ई0 क्रान्ति में दिल्ली के आसपास के गुर्जर अपनी ऐतिहासिक परम्परा के अनुसार विदेशी हकूमत से टकराने के लिये उतावले हो गये थे । दिल्ली के चारों ओर बसे हुए तंवर, चपराने, कसाने, भाटी, विधुड़ी, अवाने खारी, बासटटे, लोहमोड़, बैसौये तथा डेढ़िये वंशों के गुर्जर संगठित होकर अंग्रेंजी हकूमत को भारत से खदेड़ा । गुर्जरों ने शेरशाहपुरी मार्ग मथुरा रोड़ यमुना नदी के दोनों किनारों के साथ-2अधिकार करके अंग्रेंजी सरकार के डाक, तार तथा संचार साधन काट कर कुछ समय के लिए दिल्ली अंग्रेंजी राज समाप्त कर दिया था। ।दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में गुर्जरों ने दिल्ली के मेटकाफ हाउस को कब्जे में ले लिया । जो अंग्रेंजों का निवास स्थान था, यहा पर सैनिक व सिविलियम उच्च अधिकारी अपने परिवारों सहित रहा करते थे । जैसे ही क्रान्ति की लहर मेरठ से दिल्ली पहुंची, दिल्ली के गुर्जरों में भी वह जंगल की आग की तरफ फैल गई। दिल्ली के मेटकाफ हाउस में जो अंग्रेंज बच्चे और महिलायें उनको जीवनदान देकर गुर्जरों नेअपनी उच्च परम्परा का परिचय दिया था। महिलाओं औरबच्चों को मारना पाप समझ कर उन्होने जीवित छोड़दिया था और मेटकाफ हाउस पर अधिकार कर लिया ।दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में दिल्ली के समीप वजीराबाद जोअंग्रेंजों का गोला बारूद का जखीरा था उस पर अधिकारकर लिया जिसमें लाखो रूकी बन्दूके थी। इसी तरह अंग्रेंजी सेना की 16 गाड़ियां 7जून 1857 को रास्ते में जाती हुई रोक कर उनको अपने कब्जे में लेकर गाडियो मे आग लगा दी । सर विलियम म्योर के इन्टेलिजेन्स रिकार्ड के अनुसार, गुर्जरों ने अंग्रेंजों के अलावा उन लोगों को भी नुकसान पहुंचाया जो अंग्रेजों का साथ दे रहे थे।1857 की क्रान्ति के दमन चक्र के दौरान चन्द्रावल गांवको जला कर खाक कर दिया गया था स्त्री पुरूषोंको बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया था। चन्द्रावल केगुर्जरों मेटकाफ हाउस और वजीराबाद के शस्त्रागार कोलूटने का गंभीर आरोप था । अंग्रेजों को मारने का तोआरोप था ही। दमन चक्र में तो कसरछोड़ी ही नहीं थी रही सही कसर तब पूरी कर दी जब अंग्रेंजकलकता से अपनी राजधानी नई दिल्ली आए । गुर्जरों के 50गांव उजाड़ कर अपने काज चलाने और आराम से रहने के लिए तथा राष्ट्रपति भवन, केन्द्रीय सचिवालय तथा संसद भवन तथा नई दिल्ली जैसे आधुनिक नगर का निर्माण किया गया । राजधानी के समीप होते हुए भी दिल्ली के गुर्जरों केपिछड़े होने के मुख्य कारण अंग्रेजों की बदले की भावना थीजो 1947 तक बनी रही। देश स्वाधीन होने के पश्चात भीरही सही जमीन गुर्जरों को पाकिस्तान से आए हूॅं लोगो केबसाने के लिए भी सबसे पहले और सबसे अधिक गुर्जरों की हीउपजाउ जमीन दिल्ली के आसपास सरकार ने कोड़ियो केभाव अधिग्रहण की थी ।इतना ही नहीं कुछ गांव इस अधिग्रहण से बच गए थे उनकीभूमि भी 1975-76 में दिल्ली की गंदी बस्तियों के लोगोंको बसाने के लिए सरकार ने अधिग्रहण कर ली है। अबदिल्ली के चारों ओर बसने वाले बहोत गुर्जर भूमिहीन हो गएहैं। इन देशभक्त गुर्जरों को भूमिहीन बनाकर अपनी सरकार नेउन्हें कोई विशेष सुविधा प्रदान नहीं की है। इसे न्यंू कहाजाए तो ठीक है कि विकास के नाम पर गुर्जरों का विनाशहुआ ।इंडियन एम्पायर के लेखक मार्टिन्स ने दिल्ली के गुर्जरों के1857 के क्रान्ति में भाग लेने पर लिखा है, मेरठ से जो सवार दिल्लीआए थे, उनकी संख्या भी काफी थी । दिल्ली की साधारण जनता ने यहा तक मजदूरों ने भी इनका साथ दिया पर इस समय दिल्ली के चारों ओर की बस्तियों में फैले गुर्जर विद्रोहियों के साथ हो गए । इसी प्रकार 38वीं बिग्रेड के कमाण्डर ने लिखा है हमारी सबसे अधिक दुर्गति गुर्जरों ने की है। सरजान वैलफोर ने भी लिखा है ’चारों ओर के गुर्जरों के गांव 50 वर्ष तक शांत रहने के पश्चात एकदम बिगड़ गये और मेरठ से गदर होने के चन्द घंटों के भीतर उन्होने तमाम जिलों को अंग्रेजी संपत्ति को राख कर दिया । यदि कोई महत्वपूर्ण अधिकारी उनके गांवों में शरण के लिए गया तो उसे नहीं छोड़ा और खुले आम बगावत कर दी।
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Posted by - Gurjjar Ajayraj Poswal


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