चंदेल गुर्जर वंश | History of Chandel Gurjar Dynasty

चंदेल गुर्जर वंश | History of Chandel Gurjar Dynasty

चन्देल गुर्जर वंश का इतिहास

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चन्देल गुर्जर वंश मध्यकालीन भारत का प्रसिद्ध गुर्जर राजवंश था। जिसने 08वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से यमुना और नर्मदा के बीच, बुंदेलखंड तथा उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी भाग पर राज किया। चंदेल वंश के शासकों का बुंदेलखंड के इतिहास में विशेष योगदान रहा है। उन्‍होंने लगभग 400 साल तक बुंदेलखंड पर शासन किया। चन्देल गुर्जर शासको न केवल महान विजेता तथा सफल शासक थे, अपितु कला के प्रसार तथा संरक्षण में भी उनका महत्‍वपूर्ण योगदान रहा। चंदेल गुर्जरो का शासनकाल आमतौर पर बुंदेलखंड के शांति और समृद्धि के काल के रूप में याद किया जाता है। चंदेलकालीन स्‍थापत्‍य कला ने समूचे विश्‍व को प्रभावित किया उस दौरान वास्तुकला तथा मूर्तिकला अपने उत्‍कर्ष पर थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं खजुराहो के मंदिर।
खजुराहो का कंदरीय महादेव मंदिर
Khujrao Temple of Chandel Gurjar Dynasty | खुजराहो का मंदिर


• उत्पत्ति एवं परिचय 

इस वंश की उत्पत्ति का उल्लेख कई लेखों में है। कीर्तिवर्मन् के देवगढ़ शिलालेख में और चाहमान गुर्जर पृथ्वीराज तृतीय के लेख में "चन्देल" शब्द का प्रयोग हुआ है। गुर्जर वंश में नृप नंनुक हुआ जिसके पुत्र वा पति और पौत्र जयशक्ति तथा विजयशक्ति थे। विजय के बाद क्रमश: राहिल, हर्ष, यशोवर्मन् और धंग , गुर्जर राजा हुए। वास्तव में गुर्जर सम्राट नंनुक से ही इस वंश का आरंभ होता है और अभिलेख तथा किंवदंतियों से प्राप्त विवरणों के आधार पर उनका संबंध आरंभ से ही खजुराहो से रहा तथा गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के अधीन रहे। अरब इतिहास के लेखक कामिल ने भी इनको "कजुराह" में रखा है। धंग से इस वंश के संस्थापक नंनुक की तिथि निकालने के लिय यदि हम प्रत्येक पीढ़ी के लिये 20-25 वर्ष का काल रखें तो धंग से छह पीढ़ी पहले नंनुक की तिथि से लगभग 120 वर्ष पूर्व अर्थात् 954 ई. - 120 = 834 ई. (लगभग 830 ई.) के निकट रखी जा सकती है। "महोबा खंड" में चंद्रवर्मा के अभिषेक की तिथि 225 सं. रखी गई है। यदि गुर्जर नरेश नंनुक का विरुद अथवा दूसरा नाम मान लिया जाय और इस तिथि को हर्ष संवत् में मानें तो नंनुक की तिथि (606 + 225) अथवा 831 ई. आती है। अत: दोनों अनुमानों से नंनुक का समय 831 ई. माना जा सकता है।

वाक्पति ने विंध्या के शत्रुओं को हराकर अपना राज्य विस्तृत किया। तृतीय गुर्जर नरेश जयशक्ति ने अपने ही नाम से अपने राज्य का नामकरण जेजाकभुक्ति किया। कदाचित् यह गुर्जर प्रतिहार सम्राट् मिहिर भोज का सामंत राजा था और यही स्थिति उसके भाई विजयशक्ति तथा पुत्र राहिल की भी थी। हर्ष और उसके पुत्र यशोवर्मन् के समय परिस्थिति बदल गई। गुर्जरों और राष्ट्रकूटों के बीच निरंतर युद्ध से अन्य शक्तियाँ भी ऊपर उठने लगीं। इसके अतिरिक्त गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के पुत्र महेंद्रपाल के बाद कन्नौज के सिंहासन के लिये गुर्जर सम्राट भोज द्वितीय तथा क्षितिपाल में संघर्ष हुआ। खजुराहो के एक लेख में हर्ष अथवा उसके पुत्र यशोवर्मन् द्वारा पुन: क्षितिपाल को सिंहासन पर बैठाने का उल्लेख है- (पुनर्येन श्री क्षितिपालदेव नृपसिंह: सिंहासने स्थापित:।)

 हर्ष के पुत्र यशोवर्मन् के समय चंदेलों का गौड़, कोशल, मिथिला, मालव, चेदि, के साथ संघर्ष का संकेत है।प्रशस्तिकार ने उसकी प्रशंसा बढ़ा चढ़ाकर की हो तब भी इसमें संदेह नहीं कि चंदेल गुर्जर राज्य धीरे धीरे शक्तिशाली बन रहा था। धंग के खजुराहों लेख में गुर्जर प्रतिहार सम्राट विनायकपाल का उल्लेख मिलता है। 
चंदेल गुर्जर शासको में धंगदेव सबसे प्रसिद्ध तथा शक्तिशाली राजा हुआ और इसने 50 वर्ष (950 से 1000 ई.) तक राज किया। उसके लंबे राज्यकाल में खजुराहो के दो प्रसिद्ध मंदिर विश्वनाथ तथा पार्श्वनाथ बने। पंजाब के राजा जयपाल की सहायता के लिये अजमेर और कन्नौज के गुर्जर राजाओं के साथ उसने गजनी के शासक सुबुक्तगीन के विरुद्ध सेना भेजी। उसके पुत्र गंड (1001-1017) ने भी अपने पिता की भाँति 'गुर्जर राजा आनंदपाल खटाणा' की महमूद गजनी के विरुद्ध सहायता की। महमूद के कन्नौज पर आक्रमण और राज्यपाल के हार के विरोध में गंड के पुत्र विद्याधर ने कन्नौज के राजा का वध कर डाला, पर 1023 ई. में गंड को स्वयं कालिंजर का गढ़ महमूद को दे देना पड़ा। महमूद के लौटने पर यह पुन: चंदेलों के पास आ गया। गंड के समय कदाचित् जगदंबी नामक वैष्णव मंदिर तथा चित्रगुप्त नामक सूर्यमंदिर बने। गंड के पुत्र विद्याधर (लगभग 1019-1029) को इब्नुल अथीर नामक मुसलमान लेखक ने अपने समय का सबसे शक्तिशाली राजा कहा है। उसके समय चंदेल गुर्जरो ने कलचुरी और परमारों गुर्जरो पर विजय पाई और 1019 तथा 1022 में महमूद का मुकाबला किया। चंदेल गुर्जर राज्य की सीमा विस्तृत हो गई थी। कहा जाता है कि कंदरीय महादेव का विशाल मंदिर भी इसी ने बनवाया
गुर्जर नरेश विद्याधर के बाद चन्देल राज्य की कीर्ति और शक्ति घटने लगी। गुर्जर नरेश विजयपाल चन्देल (लगभग 1029-51) इस युग का प्रमुख चंदेल राजा हुआ। कीर्तिवर्मन् (1070-95) तथा मदनवर्मन् (लगभग 1029-1162) भी प्रमुख चंदेल राजा हुए। कलचुरी सम्राट् दाहिले की विजय से 1040-70 तक के लंबे काल के लिये चंदेलों की शक्ति क्षीण हो गई थी। विल्हण ने कर्ण को कालिंजर का राजा बताया है।गुर्जर राजा कीर्तिवर्मन् ने चंदेलों की खोई हुई शक्ति और कलचुरियों द्वारा राज्य के जीते हुए भाग को पुन: लौटाकर अपने वंश की लुप्त प्रतिष्ठा स्थापित की। उसने सोने के सिक्के
 भी चलाए जिसमें कलचुरि आंगदेव के सिक्कों का अनुकरण किया गया है। केदार मिश्र द्वारा रचित "प्रबोधचंद्रोदय" (1065 ई.) इसी चंदेल गुर्जर सम्राट् के दरबार में खेला गया था। इसमें वेदांतदर्शन के तत्वों का प्रदर्शन है। यह कला का भी प्रेमी था और खजुराहों के कुछ मंदिर इसके शासनकाल में बने। कीर्तिवर्मन् के बाद सल्लक्षण बर्मन् या हल्लक्षण वर्मन्, जयवर्मनदेव तथा पृथ्वीवर्मनदेव ने राज्य किया। अंतिम चन्देल गुर्जर सम्राट्, जिसका वृत्तांत "चंदरासो" में उल्लिखित है, परमर्दिदेव अथवा परमाल (1165-1203) था। इसका चौहान वंश के गुर्जर सम्राट् पृथ्वीराज  से संघर्ष हुआ और 1208 में कुतबुद्दीन ने कालिंजर का गढ़ इससे जीत लिया, जिसका उल्लेख मुसलमान इतिहासकारों ने किया है। चंदेल गुर्जर राज्य की सत्ता समाप्त हो गई पर शासक के रूप में इस वंश का अस्तित्व कायम रहा। 16वीं शताब्दी में स्थानीय शासक के रूप में चंदेल गुर्जर राजा बुंदेलखंड में राज करते रहे पर उनका कोई राजनीतिक प्रभुत्व न रहा।

• शासन, संस्कृति एवं कला 

चंदेल शासन परंपरागत आदर्शों पर आधारित था। गुर्जर सम्राट यशोवर्मन् के समय तक चंदेल गुर्जर नरेश अपने लिये किसी विशेष उपाधि का प्रयोग नहीं करते थे। धंग ने सर्वप्रथम परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर, गुर्जरेश्वर, कालंजराधिपति, का विरुद धारण किया। कलचुरि नरेशों के अनुकरण पर परममाहेश्वर श्रीमद्वामदेवपादानुध्यात तथा त्रिकलिंगाधिपति और गाहड़वालों के अनुकरण पर परमभट्टारक इत्यादि समस्त राजावली विराजमान विविधविद्याविचारवाचस्पति और कान्यकुब्जाधिपति का प्रयोग मिलता है।
हम्मीरवर्मन् की साहि उपाधि संभवत: मुस्लिम प्रभाव के कारण थी; गुर्जर राजवंश के अन्य व्यक्तियों को भी शासन में अधिकार के पद मिलते थे। कुछ अभिलेखों से प्रतीत होता है कि कुछ मंत्रियों को उनके पद का अधिकार वंशगत रूप में प्राप्त हुआ था। मंत्रियों के लिये मंत्रि, सचिव और अमात्य का प्रयोग बिना किसी विशेष अंतर के किया गया है। मंत्रिमुख्य के अतिरिकत अधिकारियों में सांधिविग्रहिक, प्रतिहार, कंचुकि, कोशाधिकाराधिपति, भांडागाराधिपति, अक्षपटलिक, कोट्टपाल, विशिष, सेनापति, हस्त्यश्वनेता, पुरबलाध्यक्ष आदि के नाम आते हैं। शासन के कुछ कार्य पंचकुल और धर्माधिकरण जैसे बोर्डो के हाथ में था। राज्य विषय, मंडल, पत्तला, ग्रामसमूह और ग्रामों में विभक्त था। शासन में सामंत व्यवस्था कुछ रूपों में उपस्थित थी। एक अभिलेख में एक मंत्री को मांडलिक भी कहा गया है। विशिष्ट सैनिक सेवा के लिये गाँव दिए जाते थे। युद्ध में मरे सैनिकों के लिये किसी प्रकार के पेंशन अथवा मृत्युक वृत्ति की भी व्यवस्था थी। चंदेल गुर्जर राज्य की भौगोलिक और प्राकृतिक दशा के कारण दुर्गों (किला) का विशेष महत्व था और उनकी ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। अभिलेखों में राज्य द्वारा लिए गए करों की सूची में भाग, भोग, कर, हिरण्य, पशु, शुल्क और दंडादाय का उल्लेख है।
गुर्जरो मे मिहिर, गुर्जरेश्वर, गुर्जर नरेश, गुर्जर परमेश्वर, गुर्जरेश, का भी उपयोग मिलता है। कीर्तिवर्मन् पहला चंदेल गुर्जर नरेश था जिसने सिक्के बनवाए।
चंदेल गुर्जर राज्य में पौराणिक धर्म की जनप्रियता बढ़ रही थी। चंदेल गुर्जर राजा और उनके मंत्री तथा अन्य अधिकारियों के द्वारा प्रतिमा और मंदिर के निर्माण के कई उल्लेख मिलते हैं। विष्णु के अवतारों में वराह, वामन, नृसिंह, राम और कृष्ण की पूजा का अधिक प्रचलन था। चंदेल गुर्जर राज्य से हनुमान की दो विशाल प्रतिमाएँ मिली हैं और कुछ चंदेल गुर्जर सिक्कों पर उनकी आकृति भी अंकित हैं किंतु विष्णु की तुलना में शिव की पूजा का अधिक प्रचार था। धंग के समय से चंदेल गुर्जर नरेश शैव बन गए। शिवलिंग के साथ ही शिव की आकृतियाँ भी प्राप्त हुई हैं। शिव के विभिन्न स्वरूपों के परिचायक उनके अनेक नाम अभिलेखों में आए हैं। शक्ति अथवा देवी के लिये भी अनेक नामों का उपयोग हुआ है। अजयगढ़ में अष्टशक्तियों की मूर्तियाँ अंकित हैं। सूर्य की पूजा भी जनप्रिय थी। गणेश और ब्रह्मा की मूर्तियाँ यद्यपिं मिली हैं लेकिन उनके पूजकों के पथक् संप्रदायों के अस्तित्व का प्रमाण नहीं मिलता। अन्य देवता जिनके उल्लेख हैं या जिनकी प्रतिमाएँ मिलती हैं। उनके नाम हैं- लक्ष्मी, सरस्वती, इंद्र, चंद्र और गंगा। बुद्ध, बोधिसत्व और तारा की कुछ प्रतिमाएँ मिलती हैं। हिंदु धर्म की भाँति जैन धर्म का भी प्रचार था, विशेष रूप से वैश्यों में। किंतु सांप्रदायिक कटुता के उदाहरण नहीं मिलते। चंदेल गुर्जर नरेशों की नीति इस विषय में उदार थी।
चंदेल गुर्जर राज्य अपनी कलाकृतियों के कारण भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध हैं। चंदेल मंदिरों में से अधिकांश खजुराहों में हैं। कुछ महोबा में भी हैं। इनका निर्माण मुख्यत: 10वीं शताब्दी के मध्य से 11वीं शताब्दी के मध्य के बीच हुआ है। ये शैव, वैष्णव और जैन तीनों ही धर्मों के हैं। इन मंदिरों में अन्य क्षेत्रों की प्रवत्तियों का प्रभाव भी ढूँढ़ा जा सकता है किंतु प्रधान रूप से इनमें चंदेल कलाकार की मौलिक विशेषताएँ दिखलाई पड़ती हैं। एक विद्वान् का कथन है कि भवन-निर्माण-कला के क्षेत्र में भारतीय कौशल को खजुराहों के मंदिरों में सर्वोच्च विकास प्राप्त हुआ है। ये मंदिर विशालता के कारण नहीं बल्कि अपनी भव्य योजना और समानुपातिक निर्माण के लिये प्रसिद्ध हैं। मंदिर के चारों ओर कोई प्राचीर नहीं होती। मंदिर ऊँचे चबूतरे (अधिष्ठान) पर बना होता है। इसमें गर्भगृह, मंडप, अर्धमंडप, अंतराल और महामंडल होते हैं। इक मंदिरों की विशेषता इनके शिखर हैं जिनके चारों ओर अंग शिखरों की पुनरावृत्ति रहती है।
इन मंदिरों की मूर्तिकला भी इनकी विशेषता है। इन मूर्तियों की केवल संख्या ही स्वंय उल्लेखनीय है। इनके निर्माण में सूक्ष्म कौशल के साथ ही अद्भुत सजीवता दिखलाई पड़ती है। इन कृतियों के विषय भी विविध हैं : प्रधान देवी देवता, परिवारदेवता, गौण देवता, दिक्पाल, नवग्रह, सुरसुंदर, नायिका, मिथुन, पशु और पुष्पलताएँ तथा रेखागणितीय आकृतियाँ। इन मंदिरों में मिथुन आकृतियों की इतनी अधिक संख्या में उपस्थिति का कोई सर्वमान्य हल नहीं बतलाया जा सकता। महोबा से प्राप्त चार बौद्ध प्रतिमाएँ अतीव सुंदर हैं। इनमें से सिंहनाद अवलोकितेश्वर की मूर्ति तो भारतीय मूर्तिकला के सर्वोत्कृष्ट नमूनों में से एक है।
साहित्य के क्षेत्र में कोई विशेष उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। कुछ चंदेल अभिलेखकाव्य की दृष्टि से अच्छे हैं। चंदेल गुर्जरो के कुछ मंत्रियों और अधिकारियों को लेखों में कवि, बालकवि, कवींद्र, कविचक्रवर्तिन् आदि कहा गया है जिससे चंदेल गुर्जर राजाओं की कवियों को प्रश्रय देने की नीति का बोध होता है।
• चंदेल गुर्जर शासक
Chandel Gurjar Rulers 


* नन्नुक (831 -45) (संस्थापक)
* वाक्पति (845 -870)
* जयशक्ति चन्देल और विजयशक्ति चन्देल (870 -900)
* राहिल (900 -???)
* हर्ष चन्देल (900-925)
* यशोवर्मन् (925-950)
* धंगदेव (950-1003)
* गंडदेव (1003–1017)
* विद्याधर (1017–1029)
* विजयपाल (1030–1045)
* देववर्मन (1060-1070)
* कीरतवर्मन (1070-1100)
* सल्लक्षनवर्मन (1100-1115)
* जयवर्मन (1115-1120)
* प्रथ्वीवर्मन (1120-1129)
* मदनवर्मन (1129–1162)
* यशोवर्मन II (1165-1203)
* परर्मार्दिदेव (1203-1208)

Comments

  1. हम कोई गुर्जर या गुज्जर नही राजपूत है जरासन्ध के वंशज है हम।
    जय भवानी
    जय हिन्दू राष्ट्रय
    जय राजपुताना🚩🇮🇳🚩🙏

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  2. Mai chandel Rajput hun ham koi gurjar nhi hame raja Ishavr singh chandel ke vanshaj abi hai kabi aaiye Himachal Pradesh ki Nalagarh me aap ko itihaas dikha dege chutiya ban the ho jab itihaas ka pata na to chutiya Bali bat mat kro

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    1. bhai mere rajputo me chandel gotra hi nahi hai to vanshaj kanha se aa gaye??? rajputo me chandrayan gotra hai jise tum chandel bolte ho jabki gurjaro me chandel hi gotra hai

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  3. M kapil chandela gurjar hu.
    Jai baba mohanram🚩
    💪Proud to be Gurjar🔱⚜️

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