सरदार पटेल

32 लाख एकड़ जमीन एक करने वाले पटेल ने अपने लिए एक इंच भी नहीं रखी

                                         (सरदार बल्लभभाई पटेल और महात्मा गांधी की फाइल फोटो)

 लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल अगर आज जीवित होते तो क्या सरदार सरोवर पर बन रही दुनिया की अपनी सबसे ऊंची मूर्ति बनने देते। नहीं, उनका जवाब सिर्फ ‘न’ में ही होता। जो लोग सरदार से परिचित हैं, वे जानते हैं कि सरदार अपने सिद्धांतों के कितने पक्के थे। 
 
सरदार पटेल की जयंती पर गुजरात सरकार ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के निर्माण का काम शुरू करने की घोषणा करने वाली है। दुनिया की इस सबसे ऊंची मूर्ति के लिए फिलहाल पूरे देश से लोहा जुटाया जा रहा है। इस बारे में कई लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मॉडर्न भारत के आर्किटेक्ट कहे जाने वाले सरदार पटेल ने आजादी के बाद लगभग 600 राजे-रजवाड़ों का देश में विलय कराके 32 लाख एकड़ जमीन को एक कर अखंड भारत की रचना की थी। लेकिन आज तक देश में ही उनका कोई समाधि स्थल नहीं है। उनके समकालीन नेताओं की दिल्ली में समाधियां हैं, लेकिन सरदार पटेल ऐसा नहीं चाहते थे। उन्होंने तो यहां तक कह रहा था कि उनकी अंतिम विधि एक आम आदमी की ही तरह की जाए।
 
गौरतलब है कि 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती है। किसी भी राजनेता की जयंती हो तो उनकी समाधियों पर पुष्प-हार चढ़ाए जाते हैं, लेकिन सरदार पटेल के साथ ऐसा नहीं है। सरदार ने अंतिम सांस मुंबई के बिरला हाउस में ली थी और उनकी अंतिम विधि सोनापुर श्मशान गृह (अब मरीन लाइंस) में की गई थी।
 

हालांकि, दिल्ली में सरदार जहां रहते थे, उस घर को स्मृति घर बनाने की मांग हमेशा उठती रही है, लेकिन हर बार सरदार के सिद्धांत इसमें आड़े आ जाते हैं। 
(फोटो: सरदार पटेल की अंतिम यात्रा के समय बेटा डाह्याभाई और बेटी मणिबेन)

31 अक्टूबर, 1875 को जन्मे सरदार बल्लभभाई पटेल का निधन 15 दिसंबर, 1950 को बिरला हाउस (मुंबई) में सुबह 9.38 बजे हुआ। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि करने का निर्णय लिया गया। लेकिन सरदार के बेटे डाह्याभाई, बेटी मणिबेन ने कहा: सरदार धरती पुत्र थे। उनके लिए देश की एक इंच जमीन भी कीमती थी। इसलिए उन्होंने हमसे कह रखा था कि उनकी समाधि के लिए एक इंच जमीन का भी उपयोग न किया जाए। उनका अंतिम संस्कार एक आम व्यक्ति की ही तरह किसी श्मशान गृह में किया जाए। इसी के चलते उनका अंतिम संस्कार मुंबई के सोनापुर श्मशान गृह में करने का निर्णय लिया गया।

( सरदार पटेल की अंतिम यात्रा)
सरदार पटेल की जीवनी लिखने वाले अहमदाबाद के इतिहासकार डॉ. रिजवान कादरी के बताए अनुसार, सरदार नहीं चाहते थे कि मृत्यु के बाद उनका कोई स्मारक या समाधि स्थल बनाया जाए। इतना ही नहीं, वे अपने नाम कोई संपत्ति भी नहीं रखना चाहते थे। उनका मानना था कि जो भी उनके पास है, वह देश का है। इतनी बड़ी शख्सियत होने के बावजूद भी वे अहमदाबाद में किराए एक के मकान में रहते थे।
 
सरदार के इन्हीं सिद्धांतों के चलते महात्मा गांधी भी उनका बहुत सम्मान किया करते थे। सरदार पटेल के बारे में गांधीजी ने यहां तक कहा था कि अगर हमें सरदार पटेल न मिले होते तो हमें आजादी भी न मिली होती।
( दिल्ली में सरदार पटेल के अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ )

सरदार पटेल को कब्ज और आंतों में दर्द की समस्या बहुत पहले से ही थी। इसलिए अक्सर उनकी तबियत बिगड़ जाया करती थी। डॉक्टर्स की सलाह के चलते ही वे दिल्ली से मुंबई आ गए थे। इस बारे में यह भी कहा जाता है कि शायद सरदार पटेल को अपने अंतिम समय की आहट मिल गई थी। मुंबई पहुंचने के बाद उन्होंने अपने बेटे से भी कहा था.. ‘मुझे ऐसा लगता है कि अब मेरा अंतिम समय आ गया है।’ इस दौरान सरदार पटेल की तबियत बहुत बिगड़ी हुई थी।
इसके बावजूद भी वे सरकारी अधिकारियों के साथ हमेशा विकास कार्यो की ही चर्चा में लगे रहते थे। डॉक्टर्स उन्हें लगातार सलाह देते रहते थे कि आप सारा काम छोड़कर सिर्फ आराम करे। लेकिन सरदार को देश की चिंता थी, अपनी नहीं।
आखिरकार 15 दिसंबर की रात को हार्ट अटैक में उनका निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलते ही देश के लगभग सभी बड़े नेता दूसरे दिन ही मुंबई आ पहुंचे। जवाहर लाल नेहरू उनका शव देखकर रो पड़े थे। राम-नाम की धुन और भजनों के साथ सरदार की अंतिम यात्रा निकली। उनकी अंतिम यात्रा में 5 लाख से ज्यादा लोग जमा हुए थे।
( अंतिम यात्रा के समय पास बैठी हुईं बेटी मणिबेन)
अखंड भारत की रचना करने वाले सरदार पटेल के निधन का समाचार फैलते ही पूरे देश में मातम फैल गया था। बिरला हाउस से उनका शव एक तोप गाड़ी में रखकर सोनापुर श्मशान गृह तक ले जाया गया था। यह लगभग पांच किमी का रास्ता था। उनके शव वाहन के पीछे हजारों नेता चल रहे थे और पीछे एक जीप थी, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, चक्रवती राजगोपालाचारी बैठे हुए थे।

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