गुर्जर सम्राट वत्सराज प्रतिहार - Gurjar Samrat Vatsraj Pratihar
Gurjar Samrat Vatsraj Pratihar |
वत्सराज सम्राट की उपाधी धारण करने वाला गुर्जर प्रतिहार वंश का पहला शासक था। इसे प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
नागभट्ट प्रथम के दो भतीजे 'कक्कुक' एवं 'देवराज' के शासन के बाद 'देवराज' का पुत्र वत्सराज (775 - 810ई.) गद्दी पर बैठा।
वत्सराज के समय में ही कन्नौज के स्वामित्व के लिए त्रिदलीय संघर्ष आरम्भ हुआ।
उसने राजस्थान के मध्य भाग एवं उत्तर भारत के पूर्वी भाग को जीत कर अपने राज्य में मिलाया।
उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को भी पराजित किया,
जोधपुर से 65 किलोमीटर दूर औसियाँ जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
इन मंदिरों का निर्माण गुर्जर-प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया।
गुर्जर शासक वत्सराज (778-794 ईस्वी) के समय निर्मित महावीर स्वामी का मंदिर स्थापत्य का उत्कृष्ट नमूना है, इसके अतिरिक्त सच्चिया माता का मंदिर, सूर्य मंदिर, हरीहर मंदिर इत्यादि गुर्जर-प्रतिहारकालीन स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं!
ये मंदिर महामारू अर्थात गुर्जर शैली में निर्मित है!
उत्तर भारत में वर्धनवंश के पतन के बाद उत्तर भारत पर एकक्षत्र शासक गुर्जर प्रतिहार थे।
नागभट्ट नाम के एक गुर्जर नवयुवक ने इस नये गुर्जर साम्राज्य की नींव रखी। संभव है कि ये भडौच के गुर्जर प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र ।
पूरे उत्तर भारत में छोटे छोटे राज्य थे जो किसी भी बाह्य आक्रमण को विफल करने में पंगु बने हुए थे।
भडौच के गुर्जर प्रतिहार, वल्लभी के गुर्जर मैत्रक, वातापी के गुर्जर चालुक्य, भीनमाल के चपराणे,चित्तौड के मोरी गुर्जर,अजमेर के चेची व फिर चौहान, भटनेर के भाटी, बयाना के भडाणा, दिल्ली के तंवर,जालौर के प्रतिहार, वेंगी के चालुक्य ये सब गुर्जरो की शाखाए केवल गुर्जरत्रा तक सीमित थी। इन सबमें केवल बादामी के चालुक्य साम्राज्य के स्वामी थे।
वह काल विश्व इतिहास में उथल पुथल का था, संस्कृति व सभ्यताओ पर अतिक्रमण का था।
अरब से उठने वाली इस्लामिक लपटो ने बहुत सी संस्कृतियो व सभ्यताओ को निगल कर उन स्थानो को इस्लामिक रंग में रंग दिया था। यह सब ज्यादातर तलवार व भय के बल पर हो रहा था। जो काम इसाइयो ने सदियो पहले यूरोप में किया था वहीं काम एशिया में अरब के खलीफा कर रहे थे।
अरब ने ईरान की विश्वप्रसिद्ध सभ्यता का खात्मा करके नया ईरान गढ दिया था, वहाँ के कुछेक पारसियो ने पलायन करके भारत में शरणागत होकर अपनी बेहद प्राचीन संस्कृति को लुप्त होने से बचा लिया।
इराक की महान सभ्यता अब इस्लामिक संस्कृति का केन्द्र बन गयी थी।
मिस्त्र की सभ्यता अब बदल गयी थी, तुर्की कबीले इस्लाम के नये सिपाहसलार थे, कुवैत,लीबिया पूरा का पूरा मध्य एशिया इस्लामिक संस्कृति में रंगता जा रहा था व अरब के खलीफा एक नये साम्राज्य के मालिक बन गये थे जो जिधर को रूख करता वहाँ की प्राचीन सभ्यता व विरासत को नष्ट करके नया रंगरूप दे देते।
बर्बरता,नरसंहार,बलात्कार,मारकाट,हाहाकार ये सब ही दिखाई देता था एशिया महाद्वीप में।
जो भी इस्लाम स्वीकारता वहीं एक नया युद्ध छेड देता किसी अन्य देश के खिलाफ जैसे कि तुर्की, मंगोल व अफगानिस्तान उदाहरण हैं।
खलीफाओ ने अरबी साम्राज्य को बेहद बडा व मजबूक बनाने के बाद आखिरकार भारत की ओर रूख किया। अरबी साम्राज्य बहुत ही बडा व संसाधनो से परिपूर्ण हो गया था। कई देश इसके अन्दर थे। अरबी सैनिको की वेशभूषा अस्त्र शस्त्रो से लैस थी वे हर प्रकार के हथियारो से शत्रु पर आक्रमण करते थे। लाखो की संख्या में सैनिक, बहुत से सैनिक दल, हजारो घुडसवार सब तरह की सैन्य शक्तियाँ अरबो के पास थी। यूरोप भी घुटने टेक रहा था तुर्की सैन्यदल के सामनेे। सब का लक्ष्य एक ही था।
भारत सदा से ही एक उत्सुकता का केन्द्र व पहेली की तरह रहा है जिसे हर कोई जानना समझना चाहता है।
अरबी यौद्धा किसी भी प्रकार से भारत को जीतना चाहते थे व बुतपरस्ती को खत्म करके इस्लामिक देश बनाना चाहते थे।
भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है जहाँ राजस्थान व गुजरात व दूर चलकर पंजाब है। गुजरात व राजस्थान को तब गुर्जरत्रा यानी गुर्जरदेश कहा जाता था जिसकी रक्षा का दायित्व वीर गुर्जरो पर था। ये इन्हीं की भूमि कही जाती थी।
अरबो की विशाल आँधी के सामने कुछ हजार वीर गुर्जर अपने रणनृत्य का प्रदर्शन करते हुए भिडे जिसे इतिहास राजस्थान के युद्ध जोकि गुर्जरो व अरबो के बीच हुए के नाम से जानता है। ये एक दो युद्ध नहीं बल्कि युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक वीर गुर्जरो व अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। जिसमें गुर्जरो ने अभूतपूर्व साहस व पराक्रम दिखाते हुए अरबो को बाहर खदेडा ।
भारत की हजारो साल से बनने वाली सभ्यता व संस्कृति को अरबो द्वारा होने वाली हानि से गुर्जरो ने बचाया व लगभग साढे तीन सौ सालो तर गुर्जर भारत के रक्षक व प्रहरी बने रहे ।
प्रतिहार यानी द्वारपाल।
इन आरम्भिक युद्धो में वीर गुर्जरो का नेतृत्व गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रतिहार प्रथम ने किया । नागभट्ट के नेतृत्व में चित्तौड के मोरी गुर्जर, बादामी के चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य गुर्जर, चौहाण,भडाणा, मैत्रक सबने अरबो को बुरी तरह हर बार पराजित किया।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने अरबी आक्रमण से होने वाली उथल पुथल व अस्त व्यस्तता का अवसर उठाते हुए बहुत से राज्यो को अपने अधीन करके गुर्जर साम्राज्य की स्थापना की।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने उज्जैन को नयी राजधानी बनाया। नागभट्ट ने भारतीय संस्कृति व सभ्यता के लिये जो किया वह अतुलनीय है। इसीलिये इन्हें राष्ट्रनायक की उपाधि से विभूषित किया जाता है।
राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर यह कथन उन्हीं के कारण चरितार्थ हुआ।
इसी समय गुर्जरो ने एक नये युद्धनृत्य की रचना की जिसे गुर्जर रणनृत्य कहा जाता है। गुर्जरो के संख्या बल में कम होने के कारण व शत्रुओ की विशाल सेना से भिडने से पूर्व यह नृत्य किया जाता था जिससे शत्रु को भ्रम होता था कि गुर्जर सेना बहुत अधिक है।
गुर्जर रणनृत्य कला पर आज भी रिसर्च जारी है!
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने के कारण ही गुर्जरों को वीर गुर्जर कहा जाता है!
अरबों को सफलकापूर्वक परास्त करने के कारण ही गुर्जरों को "राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर" कहा गया है!
बाद में गुर्जर प्रतिहार वंश में कई बेहद प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए जैसे कि गुर्जर सम्राट वत्सराज, गुर्जर सम्राट नागभट्ट द्वितीय, आदिवराह गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान, गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल, गुर्जर सम्राट महिपाल प्रथम आदि।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट का नाम सदा भारतीय संस्कृति संरक्षण के लिये याद किया जाता रहा रहेगा।
वे भारतीय इतिहास के महान यौद्धा।
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