गुर्जर प्रतिहार शैली का चौसठ योगिनी मंदिर । History of Chausath Yogini Temple of Gurjar Pratihar Dynasty


गुर्जर प्रतिहार राजवंश की कन्नौज राजधानी के बाद दूसरी सबसे बड़ी राजधानी ग्वालियर थी और यह गुर्जर प्रतिहार राजाओं की विशाल राज्य का कभी हिस्सा था। आज भी यहा पर गुर्जर प्रतिहार राजाओं द्वारा बनवाये गये किले, गढ़ी, बाउली, मंदिर और ऐसे बहुत सारे चीजे विद्यमान है जिनमे से यह एक है चौसठ योगिनी मंदिर ।
यह मंदिर 9 वी सदी मे गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं द्वारा बनाया गया था इस मंदिर मे 101 खंबे और 64 कमरों मे एक एक शिवलिंग है मंदिर के मुख्य परिसर मे भी एक बड़ा शिवलिंग स्थापित है माना जता है की कमरे मे शिवलिंग के साथ देवी योगिनी की मूर्ति भी रही होगी पर यह योगिनियाँ अब दिल्ली संग्रहालय पर सुरक्षित है और इसी आधार पर इसका नाम चौसठ योगिनी पडा है 
और सबसे बड़ी बात यह है ब्रिटिश वास्तुविद सर एडविन लुटियंस का बनाया गया हमारे भारत देश का संसद भवन भी इसी चौसठ योगिनी मंदिर के आकृति का है। जो इस गुर्जर प्रतिहार के मंदिर से चुराया था लुटियंस ने संसद भवन का डिजाइन। शायद जानकर हैरानी होगी कि भारतीय संसद के भवन का डिजाइन मध्य प्रदेश के 9वीं शताब्दी के एक शिव मंदिर की प्रतिकृति है जो कि मुरैना जिले के वटेश्वर में स्थित है . संसद भवन की जब भी बात होती है तो उसमें सर एडविन लुटियंस का जिक्र जरूर होता है, मगर संसद भवन बनाने की प्रेरणा लुटियंस ने जहां से ली, उसकी चर्चा न तो किताबों में है ना ही संसद की वेबसाइट पर .बल्कि दिल्ली गजट में भी संसद भवन के निर्माण और उसकी परिकल्पना का पूरा श्रेय लुटियंस को ही दिया गया है। हाँ मगर जिस समय संसद भवन का निर्माण हुआ था, उस वक्त अंग्रेजों का शासन था तो ब्रिटिश ने अपने अभिलेख में संसद भवन के डिजाइन को लुटियंस की खुद की सोच माना
मगर इतिहासकारों की मानें तो संसद की प्रतिकृति मध्यप्रदेश के मुरैना के मितावली में स्थित है जहाँ से लुटियंस ने संसद बनाने की प्रेरणा ली। बल्कि इतिहास में इसका कोई जिक्र नहीं है मितावली का यह चौसठ योगिनी शिवमंदिर मुरैना जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ पहुंचने के लिए सिंगललेन सड़क है, कई जगह जिसकी हालत खराब है। बेशक पर्यटकों को थोड़ी मुश्किल का सामना जरूर करना पड़ता है 
मगर उन्हें महसूस होगा कि यदि वे इस मंदिर को न देखते तो देखने के लिए बहुत कुछ छूट जाता । शिवमंदिर का निर्माण नौवीं सदी में तत्कालीन गुर्जर प्रतिहार राजवंश ने कराया था । मंदिर गोलाकार है, ठीक भारतीय संसद के भवन की तरह और गोलाई में चौसठ कमरे हैं ।  हर कमरे में एक-एक शिवलिंग है . इन कमरों में कभी भगवान शिव के साथ देवी योगिनी की मूर्तियां भी थीं इसका नाम देवी योगिनी की चौसठ मूर्तियों के कारण ही चौसठ योगिनी शिवमंदिर पड़ा। देवी योगिनी की काफी मूर्तियां ग्वालियर किले के संग्रहालय में रखी हैं । परिसर के बीचों-बीच एक बड़ा गोलाकार शिव मंदिर भी है। मुख्य मंदिर में 101 खंभे कतारबद्ध खड़े हैं, जो संसद भवन के गलियारे की याद दिलाते हैं 
मंदिर के निर्माण में लाल-भूरे बलुआ पत्थरों का उपयोग किया गया है।एक ओर जहां संसद की सुरक्षा और सुंदरता पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, वहीं अपनी पुरा संपदा को बचाने के लिए न तो केंद्र सरकार औ ना ही प्रदेश सरकार कोई कदम नहीं उठा रही यहां अनेको गुर्जर राजवंशो ने समयानुसार शासन किया और अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्य चकित किया। भारत देश हमेशा ही गुर्जर प्रतिहारो का रिणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के लिए न्यौछावर किया है। जिसे सभी विद्वानों ने भी माना है। गुर्जर प्रतिहार राजवंश ने अरबी, तुर्की, मंगोल से 300 वर्ष मे 200 भयंकर युद्घ किए जिसमे से एक भी नही हारा । 
        

Comments

Popular posts from this blog

चंदेल गुर्जर वंश | History of Chandel Gurjar Dynasty

कर्नल जेम्स टोड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Inscription of Gurjar History by Rajput Historian James Tod

गुर्जर प्रतिहार कालीन ओसियां जैन मंदिर | Oshiya Jain Temple of Gurjar Pratihar Dynasty