1857 की क्रांति में डासना क्षेत्र का योगदान

1857 में मेरठ के अधिकांश स्थानों पर जनता द्वारा ब्रिटिश शासन का विरोध किया गया। तत्कालीन डासना परगना के ग्रामीणों ने भी ब्रितानियों के आदेशों की अवहेलना कर अपना विरोध प्रदर्शित किया। परिणामस्वरूप यहाँ के 25 क्रांतिकारी ग्रामीणों को फाँसी दे दी गयी। इन क्रांतिकारियों में सेठ मटोलचन्द एवं जमींदार चौधरी नैन सिंह त्यागी प्रमुख थे।
10 मई को देसी सैनिक मेरठ में क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम देकर दिल्ली पहुँचे और नगर पर अधिकार कर लिया। दिल्ली पर क्रांतिकारियों के कब्जे और बहादुरशाह द्वितीय द्वारा स्वयं को देश का सम्राट घोषित किये जाने से विप्लव को एक सकारात्मक राजनीतिक अर्थ मिला। यही नहीं, इससे गुजरे जमाने की दिल्ली की ताकत और आन-बान की याद भी लोगों के दिमाग में ताजा हो गयी। परन्तु कुछ समय पश्चात् ही बादशाह आर्थिक संकट में फँस गये। दिल्ली के क्रांतिकारी सैनिकों के अधिक संख्या में पहुँचने और लगातार ब्रिटिश सेना से युद्ध के कारण पहले से ही रिक्त राजकोष और अधिक दुरावस्थाग्रस्त हो गया। सैनिकों का वेतन चुका पाना बादशाह के लिए एक जटिल समस्या बन गया। इसलिए दिल्ली तथा निकटवर्ती क्षेत्रों के धनाड्य व्यक्तियों के पास आर्थिक सहायता के लिए संदेश भेजे गये। इन संदेशों में धन-ऋण के रूप में मांगा गया था।
लाला मटोलचन्द को भी बादशाह की ओर से संदेश मिला। इस संदेश के मिलने पर उनसे नहीं रहा गया। उन्होंने छकड़ों में सोने की मोहरे और चाँदी के सिक्के अपने विश्वासपात्र व्यक्तियों की निगरानी में मुगल सम्राट के पास दिल्ली भिजवाये। डासना के रईस लाल मटोलचन्द द्वारा मुगल बहादुरशाह को धन भेजने की जानकारी ब्रितानियों को मिल गयी। दिल्ली की क्रांतिकारी सेना की पराजय के पश्चात् ब्रितानियों ने उन व्यक्तियों को कठोर दण्ड दिये जिन्होंने उनके विरोधियों की किसी भी प्रकार से सहायता की थी। मटोलचन्द पर भी क्रांतिकारियों की सहायता करने का आरोप लगाया गया और उन्हें फाँसी दे दी गयी। उनकी सम्पूर्ण सम्पत्ति जब्त कर ली गयी।
डासना में लखौरी ईटों से बनी उनकी 52 दरवाजों की हवेली वर्तमान में भी विद्यमान है। यद्यपि उसके कई हिस्से खंडहर को चुके हैं परन्तु यह देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले लाल मटोलचन्द का स्मरण वर्तमान में भी करा रही है।
डासना परगने के चौधरी नैन सिंह त्यागी एवं बसारत अली खाँ भी महत्वपूर्ण व्यक्ति थे जिन्होंने क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। चौधरी नेन सिंह डासना परगने के एक बड़े जमींदार थे। उन्होंने ग्रामीणों से ब्रितानियों को देश से निकालने के लिए और क्रांति में भागीदारी करने का आह्वान किया। उनके आह्वान पर पूरा क्षेत्र ब्रिटिश विरोधी बन गया। परिणामतः ब्रितानियों ने यहाँ के ग्रामीणों को सबक सिखाने के लिए डासना से मसूरी तक के इलाके की जमींन जब्त करके एक ब्रिटिश इंजीनियर के हाथों नीलाम कर दी। इस ब्रिटिश की कोठी मसूरी में नहर के पास वर्तमान में भी विद्यमान है जो इस इलाके पर हुए उसके अत्याचारों की प्रत्यक्ष गवाह रही है।
डासना में जिस समय जमीन नीलामी के आदेश की मुनादी करायी जा रही थी तब यहाँ के किसान बसारत अली तथा कुछ अन्य ग्रामीणों ने मुनादी करने वाले व्यक्ति का ढोल फोड़ दिया और कहा कि हमारी जमीन नीलाम नहीं की जा सकती और न ही हम सरकार को लगान देंगे। इस घटना की खबर जब मेरठ पहुँची तो ब्रिटिश अधिकारी डनलप के नेतृत्व में खाकी रिसाला डासना पहुँच गया। बसारत अली एवं अन्य तीन ग्रामीणों को सरकारी आदेश की अवहेलना करने के आरोप में गिरफ्तार करके फाँसी दे दी गयी।
प्रतिक्रांति के समय ब्रितानियों ने यहाँ ग्रामीणों पर अत्यधिक अत्याचार किये। चौधरी नैन सिंह त्यागी को ब्रिटिश शासन के विरूद्ध आम जनता को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में उन्हें फाँसी दे दी गयी।
डासना के चौधरी नैन सिंह त्यागी, लाल मटोल चन्द और बसारत अली सहित 25 क्रांतिकारी ग्रामीणों को फाँसी पर लटका दिया गया। डासना के ग्रामीणों की सारी जमीन जब्त करके जॉ माइकल जेक्सन को दे दी गयी।

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