1857 की क्रांति में पिलखुवा क्षेत्र का योगदान


पिलखुवा कस्बा हापुड़-गाजियाबाद मार्ग पर अवस्थित है। इस कस्बे में मुहल्ला गढ़ी के शिव मंदिर के शिखर पर एक प्रतिमा प्रस्थापित है। यह नागा बाबा की प्रतिमा है। नागा बाबा क्रांति में भाग लेने के कारण ब्रितानियों की गोली का शिकार हुए और देश के लिए शहीद हो गये। इनके प्रति यहाँ की ग्रामीणों में अत्यधिक श्रद्धाभाव हैं।
नागा बाब युवा सन्यासी थे। क्रांति के कुछ समय पहले यह पिलखुवा में मुहल्ला गढ़ी के शिव मंदिर में रहने लगे थे। यद्यपि वह शिव की पूजा अर्चना में समय व्यतीत करते थे परन्तु गुप्त वेश में क्षेत्र में घूम-घूमकर ग्रामीणों में ब्रिटिश शासन के विरूद्ध जनचेतना जागृत करते थे। वह व्यक्तियों को इकट्ठा करके सैनिकों को चर्बीयुक्त कारतूस दिये जाने की जानकारी दिया करते थे। वह बताया करते थे कि-'ये विदेशी विधर्मी ब्रिटिश गौ-हत्या करके हमारा धर्म भ्रष्ट कर देंगे।' वह बताते थे कि 'सैनिकों को जो नये कारतूस मुँह से खोलने पड़ते हैं, उनमें गौ-माता का मांस लगा हुआ है।' ग्रामीणों को नागा बाबा की बातों को सुनने से यह महसूस होने लगा कि अंग्रेज हमारे धर्म को नष्ट करना चाहते हैं। इससे उनमें अपने धर्म के नष्ट होने का डर पैदा हो गया। नागा बाब एक गाय भी रखते थे जिसकी वह श्रद्धा के साथ सेवा करते थे।
नागा बाब का गुप्त रूप से स्थानीय क्रांतिकारियों से सम्पर्क बना हुआ था। कई बार इस मंदिर में क्रांतिकारी सभाओं का आयोजन भी हो चुका था। इस प्रकार यहाँ क्रांति की पूर्व पीठिका तैयार हो चुकी थी। जब 10 मई के विप्लव की खबर यहाँ के ग्रामीणों को मिली तो उन्होंने भी सरकारी आदेशों की अवहेलना करनी शुरू कर दी। यहाँ के व्यक्तियों का मुकीमपुर की गढ़ी के जमींदार गुलाब सिंह से भी सम्पर्क बना हुआ गिरफ्तार करके गोली मार दी गयी। उनकी गाय को भी मार दिया गया। इस प्रकार नागा बाबा शहीद हो गये लेकिन आज भी उनकी शहादत को यहाँ के क्षेत्रवासी श्रद्धा के साथ याद करते हैं।
ब्रितानियों ने पिलखुवा में अत्याधिक लूटपाट मचाई। लूट का क्रम कई दिन तक चलने के पश्चात् भी जब उनकी धन पिपासा शान्त नहीं हुई तब पिलखुआ के दो धनाड़्य तुलाराम छीपाङ तथा घ्रूपा चमार (हरिजन) ने ब्रितानियों के समक्ष स्वयं को लुट जाने के लिए प्रस्तुत किय तथा उनके नुकसान की पूर्ति की। पिलखुवा में सर्वाधिक लूटपाट इन दोनों के परिवारों से की गयी।

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