सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण और पुनर्निर्माण का इतिहास
सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है। मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक गुर्जर राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी।गुर्जर नरेश शिलादित्य मैत्रक ( तृतीय , काल लगभग 720 ई) मैत्रक वंश गुर्जरो का प्राचीन वंश है, जिसकी स्थापना गुप्त वंश के एक गुर्जर सेनापति भट्टारक द्वारा 475 ई० में की गयी थी। वल्लभी इनके राज्य की राजधानी थी।
मैत्रक एक गुर्जर वंश का नाम है । मैत्रक का संस्कृत में अर्थ सूर्य होता है, इतिहासकारो के अनुसार मैत्रक मिहिर से बना शब्द है व जिनके पूर्वज कुषाण गुर्जर थे। व कुषाण गुर्जर साम्राज्य के पतन के बाद गुप्तो के अधीन राज्य किया।
मैत्रको ने गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद स्वतन्त्र सत्ता प्राप्त की। सम्राट हर्षवर्धन की पुत्री का विवाह गुर्जर नरेश धारासेन मैत्रक से हुआ था।
गुर्जर नरेश शिलादित्य मैत्रक इस वंश के सबसे प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए । शिलादित्य ने गुजरात से लेकर दक्षिण तक राज्य का विस्तार किया।इनके समय में बेहद प्रबल अरब आक्रमण हुए। मगर वीर गुर्जर सैना के संख्या में कम होने के बावजूद भी अरबो की विशाल व संसाधनो से परिपूर्ण सेना को पराजित कर जीत का डंका बजा देते थे।
इसके बाद गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। इसके बाद गुजरात के गुर्जर शासक भीम और मालवा के गुर्जर सम्राट भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया।
अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन १०२४ में कुछ ५,००० साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। ५०,००० लोग मंदिर के अंदर थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिये गये।
सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मन्त्री वीर गुर्जर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
बताया जाता है आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन १०२६ में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था।
हमेशा विदेशीयो के निशाने और कई बार के हमलो के बाद भी ऐसा ही खडा है।इसका श्रेय इन पांचो वीरो की ही जाता है।
No comments:
Post a Comment