1857 की क्रांति में हिन्डन नदी क्षेत्र का योगदान

27 मई को जनरल विल्सन ने ग्रीथेड तथा ब्रिटिश सैनिक दल के साथ मेरठ से दिल्ली की ओर प्रस्थान किया तथा 30 मई को प्रातःकाल यह दल गाजियाबाद पहुँच गया। विल्सन की शाही आर्टिलरी में 60वीं शाही राइफल्स की चार कम्पनियाँ, दो स्क्वाड्रन, कारबाइनर्स, एक फील्ड बैट्री, ट्रुप हॉर्स आर्टिलरी, एक कम्पनी हिन्दुस्तान सैपर्स और 120 पैदल आर्टीलरीमैन शामिल थे।
यहाँ पर उन्हें ज्ञात हुआ कि क्रांतिकारी हिण्डन के पार मिट्टी के एक ऊँचे टीले पर एकत्रित हैं तथा आक्रमण करने वाले हैं। यूरोपियनों के आगमन की सूचना प्राप्त होते ही क्रांतिकारियों ने गोलाबारी शुरू कर दी। जनरल विल्सन ने राइफल वाली एक सैनिक टुकड़ी के साथ एक अन्य दल को पुल की रक्षा के लिये भेजा। क्रांतिकारियों ने इस दल पर गोलाबारी आरम्भ कर दी। इस पर जनरल ने अन्य दो राइफल कम्पनिंयो को उनकी रक्षा के लिये भेजा। ब्रिटिश सेना ने क्रांतिकारियों पर 19 पौण्ड का तोपखाना, फील्ड बैट्री, हार्स आर्टिलरी का प्रयोग किया। फील्ड बैर्टी का नेतृत्व स्कॉट तथा हार्ट आर्टिलरी की कमान हेनरी टॉब ने सम्भाल रखी थी। इससे क्रांतिकारी सेना का बायां भाग कमजोर पड़ गया, अतः क्रांतिकारी सेना वहाँ से हट गयी जबकि उनकी 5 तोपें वहीं छूट गई। ब्रिटिश सेना इन 5 तोपों की ओर विजय गर्व से लपकी। इन तोपों के बीच में 11वीं पल्टन के एक क्रांतिकारी छुपे बैठे थे जो ब्रितानियों के पास आने का धैर्यपूर्वक इन्तजार कर रहे थे। जैसे ही ब्रिटिश सैनिक तोपों के पास पहुँचे, उन क्रांतिकारी ने ठीक उसी समय मैगजीन में आग लगा दी। भयंकर विस्फोट हुआ और वह अमर बलिदानी वहीं ढेर हो गए किन्तु इस प्रकार स्वयं का बलिदान करके उन्होंने कैप्टन ऐन्ड्रूज तथा अन्य कई ब्रितानियों को मार डाला। इस अज्ञात क्रांतिकारी की सूझबूझ, बलिदान की भावना तथा वीरता की प्रशंसा करते हुए इतिहासकार जॉन केङ ने लिखा है-
It taught u that, amont the mutineers, there were brave and desperate men who were ready to court instant death for the sake of the National cause.
इस घटनाक्रम में 1 ऑफिसर सहित 10 ब्रिटिश जवान मारे गये और 18 ब्रिटिश जावन घायल हुए। तभी आकडेल को हिण्डन नदी के दूसरी ओर क्रांतिकारियों के होने की सूचना प्राप्त हुई। 31 मई को क्रांतिकारियों ने एक ऊँचे टीले पर पुल से एक मील दूर अपनी स्थिति बना ली तथा गोलीबारी आरम्भ कर दी। पहली बटालियन 60वीं राइफल्स के घुड़सवारों को भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा। गोलाबारी का युद्ध 2 घण्टेे तक चलता रहा। इस समय 60वीं राइफल ने चुंगीधर के बायी और का गाँव आक्रमण के लिये खाली कराया। इसके पश्चात् क्रांतिकारी सैनिकों की गोलाबारी कम हुई और उन्हें वहाँ से हटना पड़ा लेकिन वे अपनी बन्दूकों के साथ बच निकलनें में सफल हो गये। ब्रितानी तेज धूप व प्यास के कारण उनका पीछा न कर सके। इसमें ब्रितानियों को बहुत हानि का सामना करना पड़ा। लेफ्टीनेन्ट परकिन्स तथा 60वीं राइफल्स के 11 जवान मारे गये। इनमें आधे से ज्यादा लोग सूरज की तेज गर्मी के कारण मारे गये।
इस संघर्ष में मारे गये ब्रितानियों की कब्रें हिण्डन नदी के निकट आज भी विद्यमान हैं। इन कब्रों पर शिलालेख लगे है जिन पर मारे गये ब्रितानियों के नाम उत्कीर्ण हैं। ये तीन स्तम्भ हैं जिनका मुख्य हिण्डन नदी की ओर हैं। इनका विवरण अग्रलिखित है।
1-A नदी अभिमुख स्तम्भ का अग्रभाग-
ET
CelerAudax
Erected
-----------by----------
The 60th Rifles
In
Memory of
Captain F. Andrews.
Sergent W. Mcpherson
Corporal T. OङPherson
Private. J. Daring
I-B दूसरा भाग-
Private J. Gainty
Private D. Tommisson
Private H. Armitage
Private J. Scriven
Private P. Quirk
Private A. Edmond
Private J. Casey
Who were killed near this spot in action with the mutineers of Bengal army on the ----- and 31st May 1857
I-C तीसरा भाग (पश्व भाग)
And of
Sargent R. Hackett.
Corporal J. Sherry
Corproral J. Moore
PrivateJ. Lehane
Who died of sunstroke during the fights.
They all belonged to the 1st Battalion 60th rifles and were buried here.

I-D चौथा व अन्तिम भाग-

Also of
Ensign, W. H. Napier
Who was wounded on the
31st May and died at meerut
On 4th June, 1857
---------------
Earle, Sc.
Meerut
दाहिना अर्थात् तीसरा शव स्मारक स्तम्भ लेख
यह एक शिलापट है, जिसकी एक और ही उत्कीर्णित विवरण है यह उत्कीर्णित विवरण नही अभिमुख है। इस पर निम्नलिखित विवरण खुदे है।
In Memory of
1st Lieutenant Henry Georgy Perkins
Bombardier Bernard Horan
Rough Rider Patrick O Neil
Gunner John Riley
Of the
2nd Troop 1st Brigade
Bengal Horse Artillery
Who fell in action the mutineers
At the Hindun
River
On the 31st May 1857.
Nobly Doing Their Duty,
This Monument is erected by Their commanding officer Colonel H. Tombs in token of Esteem and Regret
बीच का शव स्मारक स्तम्भ
दुर्गाग्य से 1857 की राष्ट्रीय क्रांति के स्मारक एवं स्मारक चिन्हों आदि का उचित रखरखाव और इस हेतु जनसामान्य के प्रबोधन के अभाव के कारण स्वतंत्रता के पश्चात भी यथा आवश्यक ध्यान नहीं दिया जा सका है। इसका एक उदाहरण यह शव स्मारक स्तम्भ है क्योंकि इसे नष्ट कर दिया गया है। यद्यपि इसके कुछ टुकड़े परिसर के निकटवर्ती हिस्सों में मिले हैं किन्तु इनसे कोई निश्चित जानकारी नहीं मिल सकी है। अतः नहीं कहा जा सकता है कि इस पर क्या विवरण उत्कीर्ण था अथवा यह अनुत्कीर्ण ही था।

किसी भी सहृदय एवं जाग्रत भारतीय नागरिक को यह जानकर दुःख होना स्वाभाविक है कि अतिक्रमण एवं अवैध भवन निर्माण की बढ़ती समस्या से राष्ट्रीय महत्व के इन स्तम्भों एवं स्तम्भ लेखों की सुरक्षा को भारी खतरा उत्पन्न हो गया है। कोई भी प्रबुद्ध नागरिक यह कहकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं समझ सकता कि केन्द्र व राज्य सरकारों को इनके संरक्षण में विलम्ब नहीं करना चाहिए। गैर सरकारी संस्थाएँ एवं नागरिक वर्ग का भी कोई कर्त्तव्य है?

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