आज हम एक ऐसे यो योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके डर से मुगल थर-थर कांपते थें। उनका नाम है बंदा सिंह बहादुर। अपने समय के महान सिख योद्धा बंदा सिंह का जन्म 16 अक्तूबर 1670 को पुंछ जिले के जोरे का गढ़ गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदेव जी था। बंदा सिंह बहादुर का बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। इन्हें माधवदास के नाम से भी जाना जाता है। वह पहले ऐसे सिख सेनापति हुए, जिन्होंने मुगलों के अपराजित न होने के भ्रम को तोड़ा था।
बंदा सिंह के बारे में कहा जाता है कि बचपन में एक बार बंदा सिंह घूमते हुए पंचवटी पहुंच गए। यहां उनकी मुलाकात औघड़नाथ योगी से हुई। वह तांत्रिक विद्या के लिए प्रसिद्ध थे। बंदा सिंह ने शिष्य बनकर ओघड़नाथ बाबा की सेवा की। औघड़नाथ ने प्रसन्न होकर 1691 में अपना बहुमूल्य ग्रंथ बंदा सिंह को दे दिया। ओघड़नाथ की मृत्यु के बाद बंदा सिंह ने नांदेड़ के पास गोदावरी के किनारे अपना डेरा बना लिया।
banda bahadur singh
बात उस समय की है जब मुगल शासक औरंगजेब के बेटों में तख्त के लिए युद्ध छिड़ गई थी। औरंगजेब के बड़े बेटे शहजाद मुअजम ने गुरुगोविंद सिंह से सहायता मांगी। गुरु जी की मदद से जून 1701 में आगरा के पास लड़ी गई लड़ाई लड़ी गई औऱ उस युद्ध में मुअजम की जीत भी हुई। हालांकि गुरु जी ने शहजाद की मदद एक शर्त पर की थी। गुरुजी की शर्त थी कि वह बादशाह बनने के बाद सूबेदार बजीद खान तथा पंथ के दुश्मनों को सख्त सजा देगा या इन्हें गुरु जी के हवाले कर देगा। अब जब मुअजम बादशाह बन चुका था तो वह गुरुजी के उस शर्त से पीछ हटने लगा।
banda-singh गुरु जी ने बंदा सिंह बहादुर को अपना नेता मानने और दुष्टों को साधने के लिए खालसा के झंडे के नीचे इकट्ठे होने का आदेश दिया। लेकिन उससे पहले गुरुजी ने बंदा सिंह को युद्ध के लिए मानसिक रुप से तैयार किया। मानसिक रूप से तैयार होने पर गुरु जी ने उसे खालसे का जत्थेदार नियुक्त कर पंजाब भेज दिया।
चंदेल गुर्जर वंश | History of Chandel Gurjar Dynasty चन्देल गुर्जर वंश का इतिहास चंदेल | चंदीला | चन्देल वंश । भारतीय वंश । Chandel Dynasty | Chandila, Chandel Clan | History चन्देल गुर्जर वंश मध्यकालीन भारत का प्रसिद्ध गुर्जर राजवंश था। जिसने 08वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से यमुना और नर्मदा के बीच, बुंदेलखंड तथा उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी भाग पर राज किया। चंदेल वंश के शासकों का बुंदेलखंड के इतिहास में विशेष योगदान रहा है। उन्होंने लगभग 400 साल तक बुंदेलखंड पर शासन किया। चन्देल गुर्जर शासको न केवल महान विजेता तथा सफल शासक थे, अपितु कला के प्रसार तथा संरक्षण में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। चंदेल गुर्जरो का शासनकाल आमतौर पर बुंदेलखंड के शांति और समृद्धि के काल के रूप में याद किया जाता है। चंदेलकालीन स्थापत्य कला ने समूचे विश्व को प्रभावित किया उस दौरान वास्तुकला तथा मूर्तिकला अपने उत्कर्ष पर थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं खजुराहो के मंदिर। खजुराहो का कंदरीय महादेव मंदिर Khujrao Temple of Chandel Gurjar Dynasty | खुजराहो का मंदिर • उत्
कर्नल जेम्स टोड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Inscription of Gurjar History by Rajput Historian James Tod कर्नल जेम्स टोड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | INSCRIPTION OF GURJAR HISTORY BY RAJPUT HISTORIAN JAMES TOD • कर्नल जेम्स टोड कहते है कि राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश अर्थात राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं। • प्राचीन काल से राजस्थान व गुजरात का नाम गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश, गुर्जराष्ट्र) था जो अंग्रेजी शासन मे गुर्जरदेश से बदलकर राजपूताना रखा गया।
जोधपुर से 65 किलोमीटर दूर औसियाँ जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इन मंदिरों का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया था। गुर्जर सम्राट वत्सराज प्रतिहार (778-794 ईस्वी) के समय निर्मित महावीर स्वामी का मंदिर स्थापत्य का उत्कृष्ट नमूना है, इसके अतिरिक्त सच्चिया माता का मंदिर, सूर्य मंदिर, हरीहर मंदिर इत्यादि गुर्जर प्रतिहार कालीन स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। ये मंदिर गुर्जर प्रतिहार शैली में निर्मित है। ओसियां (Osiyan) एक प्राचीन पश्चिमी भारत में राजस्थान के जोधपुर जिले राज्य में स्थित शहर है। यह थार रेगिस्तान में नखलिस्तान की है, और अपने मंदिरों के लिए "राजस्थान का खजुराहो" के रूप में जाना जाता रहा है। शहर में एक पंचायत गांव और ओसियां तहसील का मुख्यालय भी है। यह जोधपुर में जिला मुख्यालय के उत्तर में सड़क मार्ग से 69 किमी (43 मील) निहित है, मुख्य जोधपुर से दूर एक मोड़ पर - बीकानेर राजमार्ग। ओसियां को गुर्जर प्रतिहार शैली के 8वी से 11 वीं सदी के टूटे मंदिरों के घर के रूप में प्रसिद्ध है। शहर गुर्जर प्रतिहार राजवंश के दौरान मारवाड़ के राज्य का
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