गुर्जर सम्राट पुलकेशिन चालुक्या द्वितीय | Gurjar Samrat Pulkesin Chalukya

गुर्जर सम्राट पुलकेशिन चालुक्या द्वितीय | Gurjar Samrat Pulkesin Chalukya

गुर्जर सम्राट पुलकेशिन चालुक्य द्वितीय 

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Gurjar Samrat Pulkesin Chalukya | चालुक्य

सत्याश्रय, श्रीपृथ्वीवल्लभ , परमेश्वर परमभट्टारक जैसी उपाधियाँ पाने वाले यह गुर्जर सम्राट भारतीय इतिहास में एक महान शासक माने जाते हैं।
इतिहासकारो का मानना है कि हूण गुर्जरो के विखण्डन से चालुक्य, प्रतिहार, चौहान, तंवर,चेची,सोलंकी,चप या चपराणा, चावडा आदि राजवंश व गुर्जर कुषाण साम्राज्य के विखण्डन से मैत्रक, गहलोत,परमार,हिन्दुशाही खटाणा, भाटी आदि नये राजवंश जन्म लेते हैं।
गुर्जरो के इतिहास लेखक यानी भाट भी यहीं बताते हैं
चालुक्य राजवंश भी गुर्जर हूण राजवंश की शाखा माना जाता है। चालुक्य साम्राज्य को ही सर्वप्रथम गुर्जरत्रा, गुर्जरात,गुर्जराष्ट्र व गुर्जर देश से सम्बोधित किया गया जो कि इनके गुर्जर होने का बडा प्रमाण है।
चालुक्य राजवंश की नींव विष्णुवर्धन ने रखी। पुलकेशिन चालुक्य भी इसी राजवंश का सबसे महान शासक सिद्ध हुआ।
पुलकेशिन व हर्षवर्धन दोनो समकालीन थे, महान सम्राट थे, यौद्धा थे, न्यायप्रिय,उदारशील,प्रजावत्सल शासक थे। दोनो को ही बराबर माना जाता है।
जहाँ हर्षवर्धन उत्तर भारत के एकछत्र राजा थे वहीं पश्चिमोत्तर व दक्षिणी भारत के गुर्जर सम्राट पुलकेशिन थे।
गुर्जर चालुक्य राजवंश की राजधानी आन्ध्र प्रदेश की बादामी थी। चालुक्य गुर्जर स्वयं को गुर्जर सम्राट ,गुर्जराधिराज, गुर्जर नरपति, गुर्जरेन्द्र व गुर्जर नरेश से सम्बोधित करते थे ।
राजा तो ये आन्ध्र प्रदेश के थे तो आन्ध्रपति या आन्ध्र नरेश लिख सकते थे। इनका शाही निशान वराह था जो कि गुर्जर हूण व गुर्जर प्रतिहारो का भी शाही निशान था । इनके सिक्के हूण गुर्जरो के सिक्को की नकल है व उन सिक्को का नाम भी हूण ही है।
गुर्जर सम्राट पुलकेशिन चालुक्य सम्राट कीर्तिवर्मन के पुत्र थे। राजा बनने के लिये।इनका विवाद अपने चाचा सम्राट मंगलेश से भी हुआ क्योंकि कीर्तिवर्मन की मृत्यु के बाद अल्पायु पुलकेशिन के संरक्षण का भार चाचा मंगलेश को सौंपा गया था। मंगलेश राजगद्दी पर स्वयं बैठना चाहते थे, इस विवाद में मारे गये।
चालुक्य साम्राज्य गुर्जर मण्डल का सबसे बडा राज्य था। इस गुर्जर गणराज्य या मण्डल में गुर्जरो के मैत्रक, चप या चावडा, प्रतिहार आदि बडे छोटे कई गुर्जर राज्य संयुक्त होकर रहते थे।

पुलकेशिन का वास्तविक नाम ऐरेया था,राज्यरोहण के समय पुलकेशिन द्वितीय नाम रखा गया। इनका शासनकाल 609ई० से 642 ई० माना जाता है।
इन्होने लाट,सौराष्ट्र जीतकर गुर्जरत्रा की सीमा को विस्तार देना शुरू किया। कोंकण के मौर्य, पल्लव,गंग,चोल,कदंब आदि राजवंशो को हराकर।पूरे दक्षिणी भारत में गुर्जरत्रा साम्राज्य खडा कर दिया ।

गुर्जर सम्राट पुलकेशिन चालुक्य की सबसे बडी उपलब्धि कन्नौज के प्रतापी सम्राट हर्षवर्धन को नर्मदा के कछारो में हराना था। इस प्रकार उन्होने सम्राट हर्षवर्धन के विजयरथ को रोक लिया। यह युद्ध पूरे गुर्जरत्रा ने लडा था जिसमें कई गुर्जर नरेश शामिल थे।

इस युद्ध के बाद गुर्जर सम्राट पुलकेशिन ने परमेश्वर की उपाधि धारण की।
हर्षवर्धन को उत्तरपथ का स्वामी होने के कारण उत्तरपथेश्वर कहा जाता था व हर्षवर्धन को पराजित करके पुलकेशिन को दक्षिणपथ का स्वामी होने के कारण दक्षिणपथेश्वर कहा गया।
इसी समय चीनी यात्री हवेनसांग भारत आता है वह गुर्जर सम्राट पुलकेशिन की बहुत प्रशंसा करता है व हर्षवर्धन व पुलकेशिन को समान शासक बताता है। वह लिखता है कि पुलकेशिन एक न्यायप्रिय, सभी धर्मो का संरक्षणकर्त्ता,उदार,बुद्धिमान,प्रजावत्सल व कलाव साहित्य का अनुरागी शासक है।
पुलकेशिन की मृत्यु पल्लव नरेश नरसिहँवर्मन से युद्ध करते हुए ६४२ ई० में होती है। इनके बाद इनका तीसरा पुत्र विक्रमादित्य प्रथम राजसिँहासन पर बैठता है।

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