दिल्ली से कलकत्ता जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर अवस्थित हापुड़ कस्बा गाजियाबाद जिले का तहसील मुख्यालय है। यहाँ के निवासियों ने 1857 के विप्लव में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इनमें मुख्य क्रांतिकारी थे- चौधरी जबरदस्त खाँ एवं चौधरी उल्फत खाँ। ब्रितानियों के विरूद्ध क्रांति में संलग्न होने के कारण चौधरी जबरदस्त खाँ एवं चौधरी उल्फत खाँ को उनके समर्थकों के साथ मृत्युदण्ड दिया गया। लेकिन उनकी शहादत को हापुड़ के निवासी आज भी याद करते हैं। हापुड़ में 1857 में शहीद होने वाले क्रांतिकारियों की याद में 1975 ई. से प्रतिवर्ष शहीद मेले का आयोजन किया जाता है। जो 10 मी से शुरू होकर एक माह तक चलता है। सम्पूर्ण देश में 1857 से सम्बद्ध इस प्रकार के मेले का आयोजन अन्यत्र कहीं नही किया जाता।
चौधरी जबरदस्त खाँ का परिवार मूलतः असौड़ा गाँव का रहने वाला था जो अपनी जमींदारी होने के कारण बाद में हापुड़ के मुहल्ला भण्ड़ा पट्टी में रहने लगे। इनके पूर्वज हिन्दू थे। कालान्तर में उन्होंने इस्लाम अंगीकार कर लिया। चौधरी जबरदस्त खाँ, समस्त खाँ, उल्फत खाँ, अमजद खाँ, दूल्हे खाँ सहित सात भाई थे, एक बहिन भी थी।
मालागढ़ के नवाब वलीदाद खाँ तथा चौधरी जबरदस्त खाँ के मध्य दोस्ताना सम्बन्ध थे। एक अनुश्रति के अनुसार, "नवाब वलीदाद खाँ के पुत्र की शादी नवाब मुजफ्फरनगर की इकलौती पुत्री के साथ हुई थी। बारात मालागढ़ से मुजफ्फरनगर के लिए रवाना हुई। हापुड़ रास्ते में होने के कारण बारात यहाँ से होकर जानी थी। यहाँ आने पर नवाब वलीदाद खाँ ने चौधरी जबरदस्त खाँ को बारात का मुखिया बनाकर भेजा और स्वयं वापस लौट गए। इस घटना से दोनों के मध्य दोस्ताना सम्बन्धों की पुष्टि होती हैं। नवाब मुजफ्फरनगर द्वारा बारात तथा चौधरी जबरदस्त खाँ का भव्य स्वागत किया गया। बारात दो माह से अधिक समय तक नवाब मुजफ्फरनगर के यहाँ रूकी रही, जो व्यक्ति बारात की सूचना प्राप्त करने जाते उन्हें भी वापिस नहीं आने दिया जाता, इस कारण बारातियों की संख्या काफी अधिक हो गयी। नवाब वलीदाद के स्थान पर चौधरी जबरदस्त खाँ ने वर के पिता का उत्तरदातिय्तव निभाया। नवाब मुजफ्फरनगर की पुत्री इकलौती थी इसलिए नवाब ने अपनी सम्पूर्ण जायदाद अपनी लड़की एवं दामाद के सुपर्द कर दी।"
हमारा अनुमान है कि वलीदाद खाँ किसी गुप्त एवं अति महत्व के कार्य में लगे होने के कारण पुत्र की शादी में न जा सके होंगे और यह भी कि यह काम पहले से निर्धारित नहीं रहा होगा बल्कि अचानक लग गया होगा। यदि इस कार्य विशेष का पहले से आभास भी होता, तो नवाब वलीदाद शाह की तिथि पीछे हटा सकते थे। साथ ही कार्य इतने अधिक महत्व का होगा कि शादी के ऐन वक्त पर वे न तो शादी टाल सकते थे और न ही काम को विलिम्बित कर सकते थे। आखिर प्रश्न उठता है कि यह कार्य वास्तव में क्या था? हमारा मत है कि यह काम और कुछ न होकर 1857 की क्रांति का प्रस्फुटन से पूर्व इसकी योजना अथवा इसके योजनाकारों से सम्पर्क सम्बन्धित रहा होगा।
तत्कालीन परिस्थितियों में साक्ष्य समूह इसी अनुमान को बल प्रदान करता है कि शादी का समय 1857 की बसन्त ऋतु के आस-पास होगा। इस पर विचार करने से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इतिहासकार इस पर एकमत हैं कि 10 मई, 1857 को मेरठ से अचानक क्रांति प्रस्फूटित हुई थी। अतः ऐसे में यह साक्ष्यसंगत न होगा कि इसके प्रस्फुटन का वलीदाद खाँ को पूर्व आभास हो। अतः सरलता से इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि शादी की तिथि 10 मई से कुछ पूर्व नहोकर ही काफी पहले रही होगी। ऐसा मान लेने पर पिता वलीदाद खाँ ने अपनी पुत्र की शादी में अमूल्य समय नष्ट करने की अपेक्षा यह उचित समझा होगा कि योजनाकारों से सम्पर्क स्थापित कर क्रांति में अपनी भूमिका निर्वहन किया जाये। नवाब वलीदाद खाँ एक दूरदर्शी व्यक्ति थे। समकालीन ऐतिहासिक स्रोत इसकी पुष्टि करते हैं।
1857 के समय नवाब वलीदाद खाँ का मालागढ़ रियासत में शासन था तथा मुगल दरबार में उन्हें विशेष स्थान प्राप्त था। क्रांन्ति के समय बादशाह बहादुर शाह ने उन्हें बुलन्दशहर, अलीगढ़ तथा निकटवर्ती क्षेत्रों की सूबेदारी भी सौंप दी। 1857 में मुगल बादशाह द्वारा क्रांतिकारियों का साथ देने के कारण वलीदाद खाँ ने भी उनका साथ दिया तथा अंग्रेजों के विरूद्ध अपने क्षेत्र का नेतृत्व किया।
चौधरी जबरदस्त खाँ ने नवाब वलीदाद खाँ से नजदीकी सम्बन्ध होने के कारण विप्लव में पूरा सहयोग किया तथा क्षेत्रीय आधार पर हापुड़ के क्रांतिकारी ग्रामीणों का नेतृत्व किया। हापुड़ तहसील में कई माह तक मारकाट मची रही। क्रांतिकारियों ने हापुड़ एवं बुलन्दशह के मध्य सभी टेलीफोन के तारों को काट दिया। वलीदाद खाँ और जबरदस्त खाँ ने हापुड़ में ब्रितानियों पर आक्रमण करने की योजना बनायी लेकिन ब्रितानियोंें के समर्थकों एव बुलन्दशहर जिले में भटोना गाँव के जाटों के कारण यह योजना क्रियान्वित न हो सकी। हापुड़ में क्रांतिकारियों की बढ़ती हुई गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए अन्ततः ब्रिटिश सेना के शक्तिशाली दस्ते के साथ विलियम्स को आना पड़ा। उसने हापुड़ के अंग्रेज अधिकारी विल्सन की सहायता से चौधरी जबरस्त खाँ तथा उनके भाई उल्फत खाँ को अनेक समर्थको सहित गिरफ्तार कर लिया। अनेक क्रांतिकारी हापुड़ से दूर चले गये। अंग्रेज अधिकारियों ने चौधरी जबरदस्त खाँ तथा चौधरी उल्फत खाँ सहित उनके अनेक समर्थकों को विद्रोही घोषित करते हुए मृत्युदण्ड का आदेश दिया। सभी व्यक्तियों को हापुड़ में पुरानी तहसील के निकट पीपल के जिस वृक्ष पर फाँसी दी गई उसे कालान्तर में कटवा दिया गया। उसी वृक्ष के स्थान पर आज हापुड़ का टेलीफोन एक्सेंज बना हुआ है। इसकी दीवार तहसील की दीवार से सटी हुई है। यह हापुड़ में बुलन्दशहर रोड पर स्थित है।
उस समय रेशम की डोरी से फाँसी दी जाती थी। ऐसा माना जाता है कि चौधरी जबरदस्त खाँ को तीन बार फाँसी लगायी गयी परन्तु तीनों बार ही फाँसी का फन्दा टूट गया। यह देखकर ब्रिटिश अधिकारी विल्सन ने आश्चर्य व्यक्त किया और जबरदस्त खाँ को उसने जीवित छोड़ने का मन बना लिया। चौधरी जबरदस्त खाँ को फाँसी के तख्ते से उतार लिया गया और उनके पानी माँगने पर पानी पिलवाने का आदेश भी दिया। परन्तु जबरदस्त खाँ के विरोधी नहीं चाहते थे कि उसे जिन्दा छोड़ा जाये। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी से प्रार्थना की, कि अगर चौधरी जबरदस्त खाँ को जीवित छोड़ दिया गया तो वह हमें जिन्दा नहीं छोड़ेगा।
क्योंकि उन्होंने क्रांति के दौरान चौधरी जबरदस्त खाँ के विरूद्ध ब्रितानियों की मदद की थी, अतः उनकी विनती को विल्सन ने स्वीकार कर लिया। जब जबरदस्त खाँ पानी पी रहे थे तब उन्होंने उसकी कनपटी पर गोली मार दी। चौधरी जबरदस्त खाँ देश के लिए शहीद हो गये।
उनकी सम्पूर्ण जायदाद जब्त करने तथा परिवार के अन्य सदस्यों को मृत्युदण्ड का आदेश भी ब्रिटिश अधिकारी ने दिया। अब्दुल्ला खाँ तथा वादुल्ला खाँ, जो चौधरी जबरदस्त खाँ के पुत्र बताये जाते हैं, को उनके एक स्वामिभक्त नौकर छिपाकर हापुड़ से दूर ले गए और कई वर्षो बाद जब हापुड़ में शान्ति हुई तभी वे वापस आये। मुहल्ला भण्डा पट्टी, हापुड़ में इनके वंशज आज भी रह रहे हैं।
चौधरी जबरदस्त खाँ का परिवार मूलतः असौड़ा गाँव का रहने वाला था जो अपनी जमींदारी होने के कारण बाद में हापुड़ के मुहल्ला भण्ड़ा पट्टी में रहने लगे। इनके पूर्वज हिन्दू थे। कालान्तर में उन्होंने इस्लाम अंगीकार कर लिया। चौधरी जबरदस्त खाँ, समस्त खाँ, उल्फत खाँ, अमजद खाँ, दूल्हे खाँ सहित सात भाई थे, एक बहिन भी थी।
मालागढ़ के नवाब वलीदाद खाँ तथा चौधरी जबरदस्त खाँ के मध्य दोस्ताना सम्बन्ध थे। एक अनुश्रति के अनुसार, "नवाब वलीदाद खाँ के पुत्र की शादी नवाब मुजफ्फरनगर की इकलौती पुत्री के साथ हुई थी। बारात मालागढ़ से मुजफ्फरनगर के लिए रवाना हुई। हापुड़ रास्ते में होने के कारण बारात यहाँ से होकर जानी थी। यहाँ आने पर नवाब वलीदाद खाँ ने चौधरी जबरदस्त खाँ को बारात का मुखिया बनाकर भेजा और स्वयं वापस लौट गए। इस घटना से दोनों के मध्य दोस्ताना सम्बन्धों की पुष्टि होती हैं। नवाब मुजफ्फरनगर द्वारा बारात तथा चौधरी जबरदस्त खाँ का भव्य स्वागत किया गया। बारात दो माह से अधिक समय तक नवाब मुजफ्फरनगर के यहाँ रूकी रही, जो व्यक्ति बारात की सूचना प्राप्त करने जाते उन्हें भी वापिस नहीं आने दिया जाता, इस कारण बारातियों की संख्या काफी अधिक हो गयी। नवाब वलीदाद के स्थान पर चौधरी जबरदस्त खाँ ने वर के पिता का उत्तरदातिय्तव निभाया। नवाब मुजफ्फरनगर की पुत्री इकलौती थी इसलिए नवाब ने अपनी सम्पूर्ण जायदाद अपनी लड़की एवं दामाद के सुपर्द कर दी।"
हमारा अनुमान है कि वलीदाद खाँ किसी गुप्त एवं अति महत्व के कार्य में लगे होने के कारण पुत्र की शादी में न जा सके होंगे और यह भी कि यह काम पहले से निर्धारित नहीं रहा होगा बल्कि अचानक लग गया होगा। यदि इस कार्य विशेष का पहले से आभास भी होता, तो नवाब वलीदाद शाह की तिथि पीछे हटा सकते थे। साथ ही कार्य इतने अधिक महत्व का होगा कि शादी के ऐन वक्त पर वे न तो शादी टाल सकते थे और न ही काम को विलिम्बित कर सकते थे। आखिर प्रश्न उठता है कि यह कार्य वास्तव में क्या था? हमारा मत है कि यह काम और कुछ न होकर 1857 की क्रांति का प्रस्फुटन से पूर्व इसकी योजना अथवा इसके योजनाकारों से सम्पर्क सम्बन्धित रहा होगा।
तत्कालीन परिस्थितियों में साक्ष्य समूह इसी अनुमान को बल प्रदान करता है कि शादी का समय 1857 की बसन्त ऋतु के आस-पास होगा। इस पर विचार करने से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इतिहासकार इस पर एकमत हैं कि 10 मई, 1857 को मेरठ से अचानक क्रांति प्रस्फूटित हुई थी। अतः ऐसे में यह साक्ष्यसंगत न होगा कि इसके प्रस्फुटन का वलीदाद खाँ को पूर्व आभास हो। अतः सरलता से इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि शादी की तिथि 10 मई से कुछ पूर्व नहोकर ही काफी पहले रही होगी। ऐसा मान लेने पर पिता वलीदाद खाँ ने अपनी पुत्र की शादी में अमूल्य समय नष्ट करने की अपेक्षा यह उचित समझा होगा कि योजनाकारों से सम्पर्क स्थापित कर क्रांति में अपनी भूमिका निर्वहन किया जाये। नवाब वलीदाद खाँ एक दूरदर्शी व्यक्ति थे। समकालीन ऐतिहासिक स्रोत इसकी पुष्टि करते हैं।
1857 के समय नवाब वलीदाद खाँ का मालागढ़ रियासत में शासन था तथा मुगल दरबार में उन्हें विशेष स्थान प्राप्त था। क्रांन्ति के समय बादशाह बहादुर शाह ने उन्हें बुलन्दशहर, अलीगढ़ तथा निकटवर्ती क्षेत्रों की सूबेदारी भी सौंप दी। 1857 में मुगल बादशाह द्वारा क्रांतिकारियों का साथ देने के कारण वलीदाद खाँ ने भी उनका साथ दिया तथा अंग्रेजों के विरूद्ध अपने क्षेत्र का नेतृत्व किया।
चौधरी जबरदस्त खाँ ने नवाब वलीदाद खाँ से नजदीकी सम्बन्ध होने के कारण विप्लव में पूरा सहयोग किया तथा क्षेत्रीय आधार पर हापुड़ के क्रांतिकारी ग्रामीणों का नेतृत्व किया। हापुड़ तहसील में कई माह तक मारकाट मची रही। क्रांतिकारियों ने हापुड़ एवं बुलन्दशह के मध्य सभी टेलीफोन के तारों को काट दिया। वलीदाद खाँ और जबरदस्त खाँ ने हापुड़ में ब्रितानियों पर आक्रमण करने की योजना बनायी लेकिन ब्रितानियोंें के समर्थकों एव बुलन्दशहर जिले में भटोना गाँव के जाटों के कारण यह योजना क्रियान्वित न हो सकी। हापुड़ में क्रांतिकारियों की बढ़ती हुई गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए अन्ततः ब्रिटिश सेना के शक्तिशाली दस्ते के साथ विलियम्स को आना पड़ा। उसने हापुड़ के अंग्रेज अधिकारी विल्सन की सहायता से चौधरी जबरस्त खाँ तथा उनके भाई उल्फत खाँ को अनेक समर्थको सहित गिरफ्तार कर लिया। अनेक क्रांतिकारी हापुड़ से दूर चले गये। अंग्रेज अधिकारियों ने चौधरी जबरदस्त खाँ तथा चौधरी उल्फत खाँ सहित उनके अनेक समर्थकों को विद्रोही घोषित करते हुए मृत्युदण्ड का आदेश दिया। सभी व्यक्तियों को हापुड़ में पुरानी तहसील के निकट पीपल के जिस वृक्ष पर फाँसी दी गई उसे कालान्तर में कटवा दिया गया। उसी वृक्ष के स्थान पर आज हापुड़ का टेलीफोन एक्सेंज बना हुआ है। इसकी दीवार तहसील की दीवार से सटी हुई है। यह हापुड़ में बुलन्दशहर रोड पर स्थित है।
उस समय रेशम की डोरी से फाँसी दी जाती थी। ऐसा माना जाता है कि चौधरी जबरदस्त खाँ को तीन बार फाँसी लगायी गयी परन्तु तीनों बार ही फाँसी का फन्दा टूट गया। यह देखकर ब्रिटिश अधिकारी विल्सन ने आश्चर्य व्यक्त किया और जबरदस्त खाँ को उसने जीवित छोड़ने का मन बना लिया। चौधरी जबरदस्त खाँ को फाँसी के तख्ते से उतार लिया गया और उनके पानी माँगने पर पानी पिलवाने का आदेश भी दिया। परन्तु जबरदस्त खाँ के विरोधी नहीं चाहते थे कि उसे जिन्दा छोड़ा जाये। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी से प्रार्थना की, कि अगर चौधरी जबरदस्त खाँ को जीवित छोड़ दिया गया तो वह हमें जिन्दा नहीं छोड़ेगा।
क्योंकि उन्होंने क्रांति के दौरान चौधरी जबरदस्त खाँ के विरूद्ध ब्रितानियों की मदद की थी, अतः उनकी विनती को विल्सन ने स्वीकार कर लिया। जब जबरदस्त खाँ पानी पी रहे थे तब उन्होंने उसकी कनपटी पर गोली मार दी। चौधरी जबरदस्त खाँ देश के लिए शहीद हो गये।
उनकी सम्पूर्ण जायदाद जब्त करने तथा परिवार के अन्य सदस्यों को मृत्युदण्ड का आदेश भी ब्रिटिश अधिकारी ने दिया। अब्दुल्ला खाँ तथा वादुल्ला खाँ, जो चौधरी जबरदस्त खाँ के पुत्र बताये जाते हैं, को उनके एक स्वामिभक्त नौकर छिपाकर हापुड़ से दूर ले गए और कई वर्षो बाद जब हापुड़ में शान्ति हुई तभी वे वापस आये। मुहल्ला भण्डा पट्टी, हापुड़ में इनके वंशज आज भी रह रहे हैं।
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