1857 की क्रांति में मुकीमपुर गढ़ी क्षेत्र का योगदान

मुकीमपुर गढ़ी गाँव पिलखुवा के निकट अवस्थित है। यहाँ के राजपूत ग्रामीणों ने भी जमींदार गुलाब सिंह के नेतृत्व में विप्लव में भाग लिया। गुलाब सिंह ने ब्रितानियों को लगान न देने एवं क्रांतिकारियों का साथ देने का निश्चय किया। उन्होंने ग्रामवासियों को भी लगान न देने के लिए प्रेरित किया। मुकीमपुरगढ़ी में जमींदर गुलाब सिंह के नेतृत्व में किसानों की एक बैठक बुलायी गयी। इसमें ग्रामीणों ने गुलाब सिंह से सहमत होते हुए ब्रिटिश सरकार को भू-राजस्व न देने की घोषणा की। इस प्रकार मुकीमपुर गढ़ी राजपूत क्रांतिकारियों का मजबूत गढ़ बन गया। जमींदार गुलाब सिंह ने निकटवर्ती गाँवों को भी क्रांति के लिए प्रोत्साहित किया। परिणामतः वहाँ भी क्रांतिकारी भावनाएं पनपने लगी और कुछ समय में वहाँ कानून व्यवस्था पूर्ण रूप से भंग हो गयी। ब्रितानियों से संघर्ष होने के पूर्वानुमान के कारण जमींदार गुलाब सिंह ने अपनी गढ़ी (लखौरी ईटों की किलेनुमा हवेली ) में हथियार भी इकट्ठे करने शुरू कर दिये।
मुकीमपुर गढ़ी के विप्लव की सूचना जब अंग्रेज अधिकारियों तक पहुँची तो उन्होंने उसके दमन का निश्चय किया। ब्रितानियों ने गुलाब सिंह को क्रांतिकारियों का नेता घोषित किया और मुकीमपुर गढ़ी तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्र में विप्लव भड़काने का आरोप भी उन पर लगाया गया। एक ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी यहाँ विप्लव के दमन के लिए भेजी गयी। उसने मुकीमपुर गढ़ी को चारो ओर से घेर लिया। गुलाब सिंह की हवेली पर तोप से गोले बरसाये गये। गुलाब सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों ने ब्रितानियों का सामना किया परन्तु वे तोपों के सामने ज्यादा देर टिक न सके। गुलाब सिंह की हवेली को तोपों से खंडहर में परिवर्तित कर दिया। ब्रिटिश सेना को हवेली के अन्दर कुएँ से हथियार प्राप्त हुए जो उनका सामना करने के लिए जमींदार गुलाब सिंह एवं ग्रामीणों ने इकट्ठा किये थे। बाद में मुकीमपुर गढ़ी गाँव में आग लगा दी गयी। ब्रिटिश अधिकारी डनलप ने गुलाब सिंह की सम्पूर्ण जायदाद जब्त कर ली। आज भी गुलाब सिंह की हवेली के खंडहर 1857 की क्रांति की स्मृति में बनाये हुए हैं।

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