हेरात का युद्ध (The Battle of Herat):
ये युद्ध चौथी सदी में हूण सेनापति अखशुनवार और ईरानी बादशाह पेरोज के बीच उत्तर पूर्वी ईरान में हेरात नाम की जगह पर हुआ था। पहले बता दिया जाये कि हूण कोई अकेली जाति/ट्राइब नही थी बल्कि हूण भी दो तीन तरह के थे। यहाँ हम जिन हूणो की बात कर रहे हैं वो वाइट हूण/शवेत हूण या फिर हफ्थाल कहलाते थे जो आज के गुज्जरों/गुर्जरो के पूर्वज थे। ये हूण दिखने में आर्यन प्रजाति के और घुमक्कड़ योद्धा थे। हूण जाति मध्यएशिया/जॉर्जिया/पश्चिम यूरेशिया/ईरान आदि की कई लड़ाकू प्रजातियों का एक गठबंधन था जिसे हूण ट्राइबल कंफेडरेशन भी कहा जाता है। गुर्जर और गुर्जरो की ही भाईबंद दूसरी कई जॉर्जियन जातियां इस कंफेडरेशन का ही अंग थी। इस कंफेडरेशन में गुज्जर/गुर्जरो के सबसे ज्यादा प्रभावी होने की वजह से सारे ही हूणो को भारत में गुर्जर कहा जाने लगा था। खैर ये हुआ हफ्तालो/हूणो का परिचय अब आते हैं हेरात के युद्ध पर।
सन 457 (AD) में ईरान के सासानी वंश के बादशाद यज़्दगर्द (2nd) की मौत हो गयी थी और उसके दो बेटों होरमुज़्द और पेरोज में सत्ता के लिये खींचातानी शुरू हो गयी थी। पेरोज बड़ा बेटा था इसलिए वो अपना हक जमा रहा था पर गद्दी होरमुज़्द ने हथिया ली थी जो छोटा था और होरमुज़्द तृतीय (3rd) के नाम से बादशाहत कर रहा था। पेरोज उस वक़्त ईरान की उत्तरी सरहद पर हूणो से हो रहे खतरे को निबटाने गया हुआ था उसकी गैरहाज़िरी का ही फायदा उसके छोटे भाई होरमुज़्द ने उठाया था। पेरोज ने हूणो के सरदार अखशुनवार जिसे खुशनवाज भी कहा जाता था और जो उस वक़्त ईरान के उत्तर में खोरासन में हुकूमत कर रहा था से गुज़ारिश कि के होरमुज़्द के खिलाफ उसकी मदद करे। अखशुनवार के लिए ये सुनहरा मौका था। उसने पेरोज से सौदेबाजी की के जीत जाने की सूरत में अफ़ग़ानिस्तान में तालिक़ान (तुखारिस्तान) के इलाके की मांग की जो कि ईरानी हुकूमत के अधीन था और एक बड़ी सालाना रकम की मांग की।
पेरोज ने ये शर्ते क़बूल की और हूणो की एक बड़ी फ़ौज लेकर होरमुज़्द को मज़िनदरन में पराजित कर दिया और 459 AD में ईरान का बादशाद बन बैठा। वायदे के मुताबिक हूण सरदार अखशुनवार को तालिकान का इलाका दे दिया गया और कुछ पेशगी की रकम भी अदा कर दी गयी। अखशुनवार बहुत काबिल और रणनीतिज्ञ सेनापति था जो समय से आगे चलता था उसे पता था कि आने वाले समय में ईरान से बात जरूर बिगड़ेगी इसीलिए उसने पहले से ही तयारी कर ली थी और शायद इन्ही स्ट्रेटेजी की वजह से हूण हमेशा दुसमन पर भारी पड़ते थे। उसने तुखारिस्तान के साथ साथ साथ मज़िन्दरान के एक बड़े हिस्से पर भी कब्ज़ा कर लिया था और पेरोज के छोटे भाई होर्मुज्द को हराकर जो हूण लश्कर वापिस आ रहा था उसे अखशुनवार ने ऐसी जगह तैनात कर दिया था जहाँ से कभी भी ईरान में घुसा जा सकता था इस जगह का नाम गोर्जो/गोर्गन रखा गया। अखसुनवार को ये बात पता लगी तो चिंता हुई और अखशुनवार से मज़िन्दरन का दबा इलाका खाली करने को कहलवाया, लेकिन अखसुनवार नही माना। अखशुनवार के पास ये भी बहाना था कि जीत के बाद पेरोज ने अपने भाई होरमुज़्द को माफ़ कर दिया था जबकि होरमुज़्द हूणो का कट्टर दुसमन बन चूका था क्योंकि हूणो की वजह से ही उसके हाथ से सत्ता निकल गयी थी। इसके अलावा भी अखशुनवार ने पेरोज की कई जगहों पर मदद की जिनमे कुछ का जिक्र किया जा रहा है। अखशुनवार ने 459 AD में गार्डमन (अर्मेनिया) के यहूदियों के खिलाफ कुचाना की जंग में पेरोज की सैन्य मदद की थी क्योंकि पेरोज यहूदियों के खिलाफ था जंग में अनाथ यहूदी बच्चो को पेरोज के आदेश से ईरान लाया गया था जहाँ उन्हें जरास्थुस्त्र (प्राचीन ईरानियों का धर्म) की शिक्षा दी गयी। इसके अलावा इसी साल अखशुनवार ने गुर्जीन में अरदन के सूबेदार वाचे के विद्रोह को भी कुचला था और ईरान की सत्ता दुबारा स्थापित करवाई थी जहाँ पेरोज ने अपने सौतेले भाई गुस्तानासाप को सूबेदार नियुक्त कर दिया था।
इन सभी कार्यो के द्वारा जिनमे हूणो ने बहुत बड़ी मदद की थी सासानी राजवंश की उस वक़्त की तिफलिस नदी के किनारे बसी राजधानी टाईफोन सुरक्षित हो पाई थी। अखशुनवार इस मदद के बदले में भी मज़िन्दरान के इलाके पर अपना हक जायज़ बता रहा था। होर्मुज्द के खिलाफ जंग में गुर्जीन (गुर्जिस्तानी अल्बानिया) के मिहिरान परिवार के एक ईरानी सेना के सेनापति रेहाम ने भी पेरोज की बहुत बड़ी मदद की थी। मिहिरान परिवार ईरान के 7 शक्तिशाली परिवारों में से एक परिवार था। मिहिरान को जर्मन में सहरदरान (गवर्नर) के ओहदे पर नियुक्त किया गया था। पेरोज की माता डीआंग ने पेरोज के लिए ईरान के अंदर से सहायता जुटाई थी और अभी भी प्रशासन चलाने में सहायता कर रही थी। 464 AD में ईरान में भारी अकाल पड़ा और भारत से अनाज मंगवाया गया जिसकी कीमत अदा करने पर भारी टैक्स लगाया गया और पेरोज ने अखसुनवार को सालाना रकम देनी भी बंद कर दी। अखशुनवार एक और कारण से भी नाराज़ था वो ये की जीत के बाद अखशुनवार ने पेरोज से एक राजकुमारी की मांग की थी पर पेरोज ने राजकुमारी की जगह एक साधारण ईरानी लड़की को भेज दिया था जो अखशुनवार को नागवार गुजरा। अखशुनवार की हूण सेना ने गोर्गो नाम की जगह को बेस बनाकर ईरानी इलाको में घुसकर लूटमार शुरू कर दी और एलान कर दिया की अदा न की जाने वाली रकम की वसूली इसी ढंग से की जायेगी।
अगली क़िस्त में जारी...
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