Sunday 8 September 2024

राजपूतों की उत्पत्ति

 ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति का वर्णन

👇
इसी करण कन्या को चारणों ने करणी माता के रूप में अपनी कुल देवी स्वीकार कर लिया है ।
जिसका विवरण हम आगे देंगे -
ज्वाला प्रसाद मिश्र ( मुरादावादी) 'ने अपने ग्रन्थ जातिभास्कर में पृष्ठ संख्या 197 पर राजपूतों की उत्पत्ति का हबाला देते हुए उद्धृत किया कि ब्रह्मवैवर्तपुराणम् ब्रह्मवैवर्तपुराणम्‎ (खण्डः १ -(ब्रह्मखण्डः)
← अध्यायः१० ब्रह्मवैवर्तपुराणम्
श्लोक संख्या १११
_______
क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह ।।
राजपुत्र्यां तु करणादागरीति प्रकीर्तितः।।
1/10।।111
ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति
क्षत्रिय से करण (चारण) कन्या में राजपूत उत्पन्न हुआ और राजपुतानी में करण पुरुष से आगरी उत्पन्न हुआ ।
तथा स्कन्द पुराण सह्याद्रि खण्ड अध्याय 26 में राजपूत की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए कहा
" कि क्षत्रिय से शूद्र जाति की स्त्री में राजपूत उत्पन्न होता है यह भयानक, निर्दय , शस्त्रविद्या और रण में चतुर तथा शूद्र धर्म वाला होता है ;और शस्त्र वृत्ति से ही अपनी जीविका चलाता है ।👇
( स्कन्द पुराण सह्याद्रि खण्ड अध्याय 26)
और ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति
क्षत्रिय से करण (चारण) कन्या में राजपूत उत्पन्न हुआ और राजपुतानी में करण पुरुष से आगरी उत्पन्न हुआ ।
आगरी संज्ञा पुं० [हिं० आगा] नमक बनानेवाला पुरुष ।
लोनिया
ये बंजारे हैं ।
प्राचीन क्षत्रिय पर्याय वाची शब्दों में राजपूत ( राजपुत्र) शब्द नहीं है ।
विशेष:- उपर्युक्त राजपूत की उत्पत्ति से सम्बन्धित पौराणिक उद्धरणों में करणी (चारण) और शूद्रा
दो कन्याओं में क्षत्रिय के द्वारा राजपूत उत्पन्न होने में सत्यता नहीं क्योंकि दो स्त्रियों में एक पुरुष से सन्तान कब से उत्पन्न होने लगीं
और रही बात राजपूतों की तो राजपूत एक संघ है
जिसमें अनेक जन-जातियों का समायोजन है ।
चारण, भाट , लोधी( लोहितिन्) कुशवाह ( कृषिवाह) बघेले आदि और कुछ गुर्जर जाट और अहीरों से भी राजपूतों का उदय हुआ ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में वर्णन है।👇
< ब्रह्मवैवर्तपुराणम्‎ (खण्डः १ -(ब्रह्मखण्डः)
← ब्रह्मवैवर्तपुराणम्
अध्यायः १० श्लोक संख्या १११
क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह ।।
राजपुत्र्यां तु करणादागरीति प्रकीर्तितः।।
1/10/१११
"ब्रह्म वैवर्तपुराण में राजपूतों की उत्पत्ति क्षत्रिय के द्वारा करण कन्या से बताई "🐈
करणी मिश्रित या वर्ण- संकर जाति की स्त्री होती है
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार करण जन-जाति वैश्य पुरुष और शूद्रा-कन्या से उत्पन्न है।
और करण लिखने का काम करते थे ।
ये करण ही चारण के रूप में राजवंशावली लिखते थे ।
एेसा समाज-शास्त्रीयों ने वर्णन किया है ।
तिरहुत में अब भी करण पाए जाते हैं ।
लेखन कार्य के लिए कायस्थों का एक अवान्तर भेद भी करण कहलाता है ।
करण नाम की एक आसाम, बरमा और स्याम की जंगली जन-जाति है ।
क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होता उसे राजपूत कहते हैं।
वैश्य पुरुष और शूद्रा कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं ।
और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ।
वैसे भी राजा का वैध पुत्र राजकुमार कहलाता था राजपुत्र नहीं ।चारण जो कालान्तरण में राजपूतों के रूप में ख्याति-लब्ध हुए और अब इसी राजपूती परम्पराओं के उत्तराधिकारी हैं ।
_______
स्कन्द पुराण के सह्याद्रि खण्ड मे अध्याय २६ में
वर्णित है ।
शूद्रायां क्षत्रियादुग्र: क्रूरकर्मा: प्रजायते।
शस्त्रविद्यासु कुशल: संग्राम कुशलो भवेत्।१
तया वृत्या: सजीवेद्य: शूद्र धर्मा प्रजायते ।
राजपूत इति ख्यातो युद्ध कर्म्म विशारद :।।२।
कि राजपूत क्षत्रिय द्वारा शूद्र कन्याओं में उत्पन्न सन्तान है
जो क्रूरकर्मा शस्त्र वृत्ति से सम्बद्ध युद्ध में कुशल होते हैं ।
ये युद्ध कर्म के जानकार और शूद्र धर्म वाले होते हैं ।
ज्वाला प्रसाद मिश्र' मुरादावादी'ने जातिभास्कर ग्रन्थ में पृष्ठ संख्या १९७ पर राजपूतों की उत्पत्ति का एेसा वर्णन किया है ।
स्मृति ग्रन्थों में राजपूतों की उत्पत्ति का वर्णन है👇
राजपुत्र ( राजपूत)वर्णसङ्करभेदे (रजपुत) “वैश्यादम्बष्ठकन्यायां राजपुत्रस्य सम्भवः”
इति( पराशरःस्मृति )
वैश्य पुरुष के द्वारा अम्बष्ठ कन्या में राजपूत उत्पन्न होता है।
इसी लिए राजपूत शब्द ब्राह्मणों की दृष्टि में क्षत्रिय शब्द की अपेक्षा हेय है ।
राजपूत बारहवीं सदी के पश्चात कृत्रिम रूप से निर्मित हुआ ।
पर चारणों का वृषलत्व कम है ।
इनका व्यवसाय राजाओं ओर ब्राह्मणों का गुण वर्णन करना तथा गाना बजाना है ।
चारण लोग अपनी उत्पत्ति के संबंध में अनेक अलौकिक कथाएँ कहते हैं; कालान्तरण में एक कन्या को देवी रूप में स्वीकार कर उसे करणी माता नाम दे दिया करण या चारण का अर्थ मूलत: भ्रमणकारी होता है ।
चारण जो कालान्तरण में राजपूतों के रूप में ख्याति-लब्ध हुए और अब इसी राजपूती परम्पराओं के उत्तराधिकारी हैं ।
करणी चारणों की कुल देवी है ।
____________
सोलहवीं सदी के, फ़ारसी भाषा में "तारीख़-ए-फ़िरिश्ता नाम से भारत का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार, मोहम्मद क़ासिम फ़िरिश्ता ने राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में लिखा है कि जब राजा,
अपनी विवाहित पत्नियों से संतुष्ट नहीं होते थे, तो अक्सर वे अपनी महिला दासियो द्वारा बच्चे पैदा करते थे, जो सिंहासन के लिए वैध रूप से जायज़ उत्तराधिकारी तो नहीं होते थे, लेकिन राजपूत या राजाओं के पुत्र कहलाते थे।[7][8]👇
सन्दर्भ देखें:- मोहम्मद क़ासिम फ़िरिश्ता की इतिहास सूची का ...
[7] "History of the rise of the Mahomedan power in India, till the year A.D. 1612: to which is added an account of the conquest, by the kings of Hydrabad, of those parts of the Madras provinces denominated the Ceded districts and northern Circars : with copious notes, Volume 1". Spottiswoode, 1829. पृ॰ xiv. अभिगमन तिथि 29 Sep 2009
[8] Mahomed Kasim Ferishta (2013). History of the Rise of the Mahomedan Power in India, Till the Year AD 1612. Briggs, John द्वारा अनूदित. Cambridge University Press. पपृ॰ 64–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-108-05554-3.
________
विशेष:- उपर्युक्त राजपूत की उत्पत्ति से सम्बन्धित पौराणिक उद्धरणों में करणी (चारण) और शूद्रा
दो कन्याओं में क्षत्रिय के द्वारा राजपूत उत्पन्न होने में सत्यता नहीं क्योंकि दो स्त्रियों में एक पुरुष से सन्तान कब से उत्पन्न होने लगीं
'परन्तु कुछ सत्य अवश्य है ।
कालान्तरण में राजपूत एक संघ बन गयी
जिसमें कुछ चारण भाट तथा विदेशी जातियों का समावेश हो गया।
और रही बात आधुनिक समय में राजपूतों की तो राजपूत एक संघ है
जिसमें अनेक जन-जातियों का समायोजन है ।
जैसे
चारण, भाट , लोधी( लोहितिन्) कुशवाह ( कृषिवाह) बघेले आदि और कुछ गुर्जर जाट और अहीरों से भी राजपूतों का उदय हुआ ।
_____
'परन्तु बहुतायत से चारण और भाट या भाटी बंजारों का समूह ही राजपूतों में विभाजित है ।
: 54 (10 सबसे बड़ा दिखाया गया) सभी दिखाएं
उपसमूह का नाम जनसंख्या।
नाइक 471,000
चौहान 35,000
मथुरा 32,000
सनार (anar )23,000
लबाना (abana) 19,000
मुकेरी (ukeri )16,000
हंजरा (anjra) 14,000
पंवार 14,000
बहुरूपिया ahrupi 9100
भूटिया खोला 5,900
______________
परिचय / इतिहास
हिंदू बंजारा, जिन्हें 53 विभिन्न नामों से जाना जाता है, मुख्य रूप से लमबाड़ी या लमानी (53%), और बंजारा (25%) बोलते हैं।
वे भारत में सबसे बड़े खानाबदोश समूह हैं और पृथ्वी के मूल रोमानी के रूप में जाने जाते हैं।
रोमनी ने सैकड़ों साल पहले भारत से यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा शुरू की, और अलग-अलग बोलियाँ उन क्षेत्रों में विकसित हुईं जिनमें प्रत्येक समूह बसता था।
बंजारा का नाम बाजिका( वाणिज्यार )शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है व्यापार या व्यवसाय, और बैंजी से, जिसका अर्थ है पैल्डलर पैक।
_________
कई लोग उन्हें मिस्र से निर्वासित किए गए यहूदियों के रूप में मानते हैं, क्योंकि वे मिस्र और फारस से भारत आए थे।
कुछ का मानना ​​है कि उन्हें मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा अपनी मातृभूमि से निष्कासित कर दिया गया था।
अब वे भारत के पचास प्रतिशत से अधिक जिलों में स्थित हैं।
उनका जीवन किस जैसा है?
अधिकांश भारतीय रोमानी जैतून की त्वचा, काले बाल और भूरी आँखें हैं।
हालाँकि हम आम तौर पर इन समूहों को भाग्य से रंग-बिरंगे कारवां में जगह-जगह से यात्रा करने वालों के बैंड के साथ जोड़ते हैं, लेकिन अब बंजारा के साथ ऐसा नहीं है।
ऐतिहासिक रूप से वे खानाबदोश थे और मवेशी रखते थे, नमक का कारोबार करते थे और माल का परिवहन करते थे।
अब, उनमें से अधिकांश खेती या पशु या अनाज को पालने-पोसने के लिए बस गए हैं।
अन्य अभी भी नमक और अन्य वस्तुओं का व्यापार करते हैं।
कुछ क्षेत्रों में, कुछ सफेदपोश पदों को धारण करते हैं या सरकारी कर्मचारियों के रूप में काम करते हैं।
वे चमकदार डिस्क और मोतियों के साथ जटिल कढ़ाई वाले रंगीन कपड़े भी सिलते हैं।
वे गहने और अलंकृत गहने बनाते हैं, जो महिलाएं भी पहनती हैं।
न केवल बंजारे के पास आमतौर पर एक से अधिक व्यवसाय होते हैं,।
वे समय पर समाज की जरूरतों के आधार पर, अपनी आय को पूरक करने के लिए अतिरिक्त कौशल का भी उपयोग करते हैं।
कुछ लोग झाड़ू, लोहे के औजार और सुई जैसी वस्तुएं बनाने में माहिर हैं।
वे उपकरणों की मरम्मत भी कर सकते हैं या पत्थर के साथ काम कर सकते हैं।
दूसरों का मानना ​​है कि किसी को "धार्मिक भीख" से जीवन यापन के लिए काम नहीं करना पड़ता है।
वे विशिष्ट देवता के नाम पर भीख माँगते हुए विशेष श्रृंगार में गाते और पहनते हैं।
बंजारा को संगीत पसंद है, लोक वाद्य बजाना और नृत्य करना। बंजार भी कलाबाज, जादूगर, चालबाज, कहानीकार और भाग्य बताने वाले हैं।
क्योंकि वे गरीब हैं, वे डेयरी उत्पादों के साथ अपने बागानों में उगाए गए खाद्य पदार्थ खाते हैं।
कई घास की झोपड़ियों में रहते हैं, अक्सर विस्तारित परिवारों के साथ।
अन्य जातियों के साथ न्यूनतम संबंध रखने वाले बंजारा परिवार घनिष्ठ हैं।
समुदाय के नेता की भूमिका नेता के बेटे को दी जाती है।
सभी जैविक पुत्रों को पैतृक संपत्ति से बराबर हिस्सा मिलता है।
विवाह की व्यवस्था की जा सकती है, खासकर तीन पीढ़ियों के रिश्तेदारों के मिलन से बचने के लिए।
कुछ समूहों में, हालांकि, बहिन से चचेरे भाई को शादी करने की अनुमति है।
दहेज 20,000 रुपये या लगभग $ 450.00 के रूप में उच्च हो सकता है।
शादीशुदा महिलाएं हाथी दांत की मेहंदी लगाती हैं।
उनके विश्वास क्या हैं?
बंजारा बहुसंख्यक हिंदू हैं; कुछ ने हिंदू प्रथाओं को अपनी खुद की एनिमेटिड मान्यताओं के साथ जोड़ दिया है।
अन्य समूह इस्लाम का पालन करते हैं; अभी तक अन्य सिख हैं।
रोमानी अक्सर लोक मान्यताओं का पालन करते हैं, और इन धार्मिक मान्यताओं के साथ मिश्रित कई वर्जनाएं हैं (चीजें जो कभी नहीं करनी चाहिए।)
एक हिंदू वर्जना यह है कि एक महिला के बालों को कंघी नहीं करना चाहिए या पुरुषों की उपस्थिति में लंबे समय तक नीचे नहीं रहना चाहिए।
एक और बात यह है कि एक महिला को बैठे हुए पुरुष के सामने से नहीं गुजरना चाहिए, बल्कि उसके पीछे होना चाहिए।
भले ही रोमानी भाषण में अनारक्षित हैं, कई में उच्च नैतिक मानक हैं।
उदाहरण के लिए, शुद्धता बहुत महत्वपूर्ण है।
______
कुल या वंश की उच्चता का निर्धारण व्यक्तियों के संस्कार और व्यवहार से ही किया जाता है ।
श्रेष्ठ वंश में श्रेष्ठ सन्तानें का ही प्रादुर्भाव होता है ।
दोगले और गाँलि- गलोज करने वाले और अय्याश लोग नि: सन्देह अवैध यौनाचारों से उत्पन्न होते हैं ।
भले हीं वे स्वयं को समाज में अपने ही मुख से ऊँचा आँकते हों ।
जिनके पास कुतर्क ,गाली और भौंकने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता !
जिनमें न क्षमा होती है; और न क्षमता ही ।
वह लोग धैर्य हीन बन्दर के समान चंचल व
लंगोटी से कच्चे होते हैं ।
और बात बात पर गीदड़ धमकी कभी पुलिस की तो कभी कोर्ट की और गालियाँ तो जिनका वाणी का श्रृँगार होती हैं।
जिनमें मिथ्या अहं और मुर्दों जैसी अकड़ ही होती है ।
ज्ञान के नाम पर रूढ़िवादी पुरोहितों से सुनी सुनायीं किंवदन्तियाँ ही प्रमाण होती हैं ।
'परन्तु पौराणिक या वैदिक कोई साक्ष्य जिनके पास नहीं होता ।
अहीरों को द्वेष वश गालियाँ देने वाले कुछ चारण बंजारे और माली जन-जाति के लोग इसका प्रबल प्रमाण हैं ।
ये वास्तविक रूप में अवैध संताने हैं , उन दासी पुत्रों से और क्या अपेक्षा की जा सकती है ?
कुलहीन, संस्कारहीन मनुष्य से अच्छे तो जानवर है .
विदित हो कि अपनी फेस बुक या ब्लोगर आइडी पर अहीरों को निरन्तर गाली या उनके इतिहास की गलत तरीके से ऐडिटिंग करने वाले ..
ये भाटी भाट या चारण बंजारे का एक समुदाय है ।
जादौन - ये बंजारा समुदाय हैऔर भारत में आने से पहले अफगानिस्तान में जादून/ गादूँन पठान थे
भारत में बीकानेर और जैसलमैर में जादौन बंजारे हैं ।
आधुनिक समाज शास्त्री यों ने इन्हें छोटी राठौड़ों समुदाय के अन्तर्गत चिन्हित किया है ।
इन्हीं के समानान्तरण जाडेजा हैं
जाड़ेज़ा - जाम उनार बिन बबिनाह नाम के मुसलिमों के वंशज हैं ये लोग जो ठीक से हिन्दु भी नहीं हैं इनका जाम जाड़ा भी मुसलिमों से सम्बद्ध था ।
और सैनी - ये माली लोग इनकी हैसियत सिर्फ़ पेड़ पौधों को पानी देने की है .
आज ये शूरसेन से सम्बद्ध होने का प्रयास कर रहे हैं।
विदित हो कि कायस्थों में सैनी और शक्सैनी वे लोग थे; जिन्होंने शक और सीथियनों की सैना में नौकरी की ..
अब य भी स्वयं को राजपूत लिखते हैं ।
ये ख़ुद को मालिया राजपूत कहते हैं ; सैना में काम करने कारण ये सैनिक से सैनी उपनाम लगाने लगे .
और अब सैनी स्वयं को शूरसेन से जोड़ रहे है।
विदित हो की सिसौदिया आदि राजपूत इन्हें कम ही स्वीकार करते हैं।
जादौन जन-जाति का यदुवंश से प्रत्यक्ष कोई सम्बन्ध नहीं है ।
अफगानिस्तान के गादौन जादौन पठान जो वनी इज़राएल या यहूदियों की स्वयं को शाखा मानते हैं
उसी के आधार पर ये भी अपने को यदुवंशी मानने की बात करते हैं ।
जबकि समस्त यदुवंशज स्वयं को गोप अथवा यादव ही मानते थे ।
इस आधार पर कल को कोई वसुदेव सैनी भी लिखा सकता है ।
सूरसैनी नाम ये प्राचीनत्तम ग्रन्थों में किसी यदुवंशी का विवरण नहीं है ।
-सूर सैन के किसी वंशज 'ने भी यह विशेषण कभी अपने नाम के पश्चात नहीं लगाया ।
केवल यादव गोप और घोष विशेषण ही रूढ़ रहे
आभीर शब्द तो आर्य्य का ही रूपान्तरण है ।
आर्य्य शब्द का प्रयोग 'न करके भारतीय पुरोहित वर्ग 'ने आभीर शब्द का प्रयोग यादवों या गोपों को ईसा० पूर्व द्वत्तीय सदी के समकालिक किया था ।
जो परवर्ती प्राकृत अपभ्रंश और हिन्दी भाषाओं में आहिर अहीर ,अहर आदि रूपान्तरण में प्रकाशिका हुआ ।
पोस्ट - योगेश राठी जी की क़लम से





No comments:

Post a Comment

History of Rajasthan

  History of Rajsthan book "He was son of king but not from the queen." राजस्थान का इतिहास भाग-1:-गोला का अर्थ दास अथवा गुलाम होता...