1857 की क्रांति के पश्चात् अनेक ग्रामों को क्रांतिकारियों का साथ
देने या क्रांति में संलग्न होने के कारण सरकार ने बागी घोषित कर दिया। उन
गाँवों की जमीन-जायदाद छीन ली गई। इन बागी ग्रामों में सपनावत भी था।
1857 में यहाँ के किसानों ने मुकीमपुरगढ़ी और पितखुवा की तरह भू-राजस्व
गाजियाबाद तहसील में जमा नहीं कराया। मालागढ के नवाब वलीदाद खाँ को भी
सपनावत के ग्रामीणों से अत्यधिक सहयोग मिला था। नवाब वलीदाद खाँ गाजियाबाद
तथा लोनी का निरीक्षण करके सपनावत में भी रूके थे। यहाँ के ग्रामीणों से
इसके नजदीकी सम्बन्ध थे। इसी कारण सपनावत के निवासियों ने क्रांति के समय
नवाब वलीदाद खाँ की सहायता की। इस ग्राम से कुछ दूर बाबूगढ़ में अंग्रेजी
सेना की छावनी थी। गढ़मुक्तेश्वर से बाबूगढ़ आए बरेली ब्रिगेड के
क्रांतिकारी सैनिकों की सहायता के लिए यहाँ के अनेक नौजवान वहाँ पहुँच
गये। बाबूगढ़ में क्रांतिकारियों ने अत्यधिक लूटपाट की और दुकानों में आग
लगा दी। विप्लव की असफलता के पश्चात् सपनावत गाँव को विप्लवकारी
गतिविधियों में भाग लेने के कारण बागी घोषित कर दिया गया।
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