Friday 31 March 2017

rao kadam singh nagar

कुरु केसरी राव कदम सिहँ नागर ##
सन सत्तावन की क्रान्ति कोतवाल धनसिहँ गुर्जर के द्वारा आरम्भ करते ही राष्ट्रवादी सैनिक व किसान समुदाय खासकर गुर्जर व मुसलमानो ने क्रान्ति में बढ चढकर हिस्सा लिया। यह क्रान्ति चर्च का घण्टा बजते ही मेरठ की कोतवाली से ठीक पाँच बजे शुरू हो गयी थी। इसके जनक क्रान्तिनायक धनसिहँ कोतवाल थे। वे मेरठ के कोतवाल थे। इस जनक्रान्ति के समय मेरठ के पूर्वी हिस्से यानी मवाना, गढ,किठौर,किला परिक्षितगढ,बहसूमा व हस्तिनापुर में गुर्जरो के नागर वंश का राज्य था। इसके अन्तिम राजा के केवल पुत्रियाँ होने के कारण यह भी अंग्रेजी साम्राज्य का अंग हो गया था। मगर इस वंश के लोगो पर जागीरे बची हुई थी।
वैसे इस वंश व क्रान्तिनायक धनसिहँ गुर्जर पर लेख फिर कभी लिखूँगा क्योंकि आज तो इस क्रान्ति के शुरू होने के महीने बाद जिस व्यक्ति ने मेरठ मण्डल में क्रान्तिकारियो का नेतृत्व किया था उन महान क्रान्तिकारी राव कदम सिहँ गुर्जर के बारे में लिखूँगा ।
राव कदम सिहँ हस्तिनापुर के अन्तिम राजा नैन सिहँ नागर के भाई के पोते थे। क्रान्ति शुरू होते ही मेरठ के पूर्वी हिस्से के लोगो ने अपना राजा घोषित कर दिया व इनके नेतृत्व में अंग्रेजो से लडाई शुरू कर दी। सबसे पहले इन्होने मवाना तहसील पर धावा डालकर उसे अपने कब्जे में लिया व हथियार लूट लिये। मवाना व उसके आसपास के लगभग पाँच हजार किसान जिनमें अधिकांश गुर्जर थे इनके साथ दिन रात सैनिको की तरह रहते थे। इनका गोरो से संघर्ष कई महीनो तक चलता रहा। बिजनौर के नवाब ने भी इनका भरपूर साथ दिया।
ये व इनके सब साथी सिर पर सफेद पगडी पहनते थे जिसे कफन के रूप में पहना जाता था। यह उन वीर क्रान्तिकारियो का आभूषण था।
महीनो तक अंग्रेजो से लडाई चली, कभी यहाँ कभी वहाँ मगर अंग्रेजो की विशाल सेना के सामने क्रान्ति की ज्वाला मंद पडती गयी। इस जनक्रान्ति को केवल कुछ वर्गो का ही साथ मिल पाया।
गंगा पार करके ये बिजनौर नवाब के पास चले गये जहाँ से क्रानितकारी गतिविधियाँ चलती रही।
सन 1858 में अप्रैल महीने में अंग्रेजो ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया व गुपचुप फाँसी दे दी। सभी किताबो में इनके बारे में पढाया जाता है खासकर मेरठ से प्रकाशित पुस्तको में ।
इस संघर्ष में उनका अभिन्न साथी था चौधरी दलेल सिहँ गुर्जर ।
इस क्रान्ति में उनके अन्य भाई चौधरी पृथ्वी सिहँ नागर, चौधरी अतर सिहँ नागर आदि ने भी बढ चढकर हिस्सा लिया था।
मेरठ का वह हिस्सा कुरूदेश की राजधानी था कभी व इनके पूर्वज वहाँ के राजा होने के कारण इन्हें स्थानीय लोग कुरू केशरी कहते हैं ।
बहसूमा,गढी,हस्तिनापुर, परिक्षितगढ,मवाना में इनके दादा राजा नैन सिहँ गुर्जर के बनाये किले व मन्दिर आज भी मौजूद हैं।
वहाँ के लोग प्रयास कर रहे हैं कि हस्तिनापुर में इनका भव्य स्मारक व प्रतिमा लगायी जाये।
मेरठ में भी ऐसा होना चाहिये ।
# शत शत नमन राव कदम सिहँ जी को। #

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