1857 ki kranti and delhi

11 मई को मेरठ के सिपाही दिल्ली में पहुंचकर क्रांतिकारियोंे से मिल गये। एक अनुमान के अनुसार दो हजार अश्‍वारोही सैनिक दिल्ली पहुँचे। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को मार डाला। मुगल सम्राट बहादुरशाह ने सिपाहियों के अनुरोध पर क्रांति का नेतृत्व संभाला। क्रांतिकारियोंे व गोरे सैनिकों में जमकर संघर्ष हुआ। दिल्ली के क्रांतिकारियोंे का नेतृत्व कुछ दिनों तक मुहम्मद बख्त खां ने किया। दिल्ली पूर्णतया क्रांतिकारियोंे के अधीन हो गई। लेकिन यह स्थिति बहुत दिनों तक कायम नहीं रह सकी। क्रांतिकारियोंे में फ़ूट पड़ गई। नीमच के सैनिकों ने बख्त खां का आदेश मानने से इंकार कर दिया। वेतन बढ़ाने के लिए सैनिक हड़ताल करने लगे। बहादुरशाह वृद्ध हो चले थ। उनमें नेतृत्व संभालने की शक्ति क्षीण हो चली थी । बहादुरशाह ने कहा कि वे गद्दी के भूखे नहीं है लेकिन स्वराज्य की स्थापना करना उनका मुख्य कर्तव्य है।
इधर गर्वनर जनरल लार्ड कैनिंग को दिल्ली की हार से काफ़ी दुःख हुआ। उसने नये सिरे से दिल्ली को वापस लेने की योजना बनाई। उसने पटियाला, पंजाब आदि सिख रियासतों, राजस्थान की राजपूत रियासतों, नेपाल, हैदराबाद और ग्वालियर से सहायता प्राप्त करने की कोशिश की जो उसको मिल गई।
ब्रितानियोंे ने पंजाबी और हिन्दुस्तानी में और हिन्दू तथा मुस्लिम में मतभेद उत्पन्न किया। उन्होंने सारे पंजाब में बादशाह के नाम झूठे फ़रमान जारी किए जिनमें कहा गया था कि लड़ाई में जीत होते ही प्रत्येक सिख का वध कर दिया जाएगा।
इसके बाद सिखों व गोरखों की सहायता से जनरल विलसन ने दिल्ली को मई 1857 में घेर लिया। कठिनाइयों के बावजूद बख्त खां ने कई महीनों तक ब्रितानियोंे से लड़ाई लड़ी। प्रधान सेनापति विलसन को इस संग्राम में पानी पिला दिया। बाद में विलसन को पंजाब औंर काश्मीर से काफ़ी सहायता मिली। भारतीयों की फ़ूट से भी ब्रितानी काफ़ी लाभान्वित हुए। यही नहीं बहादुरशाह के समधी इलाही बख्श ब्रितानियोंे से जा मिलें। उन्होंने बहादुरशाह के सारे भेदों को ब्रितानियोंे को बता दिया। 14 सितंबर ,1857 को ब्रितानी सेना दिल्ली पहुंच गई। घमासान युद्ध हुआ। इलाही बख्श की मदद से बहादुरशाह को गिरफ़्तार कर लिया गया। उसके बेटों को गोली से मार दिया गया और दिल्ली पर पूर्ण अधिकार हो गया। क्रांतिकारी भाग खडे़ हुए। दिल्ली पर अधिकार होने के बाद सरकार ने कत्ले आम का आदेश दिया। लोगों के घर जला दिये गये। सड़कों पर खुलेआम लोगों को मारा गया। दिल्ली के पतन के बाद क्रांतिकारियोंेंे का मनोबल टूटने लगा। वे घबराकर दिल्ली छोड़ गए।

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