Friday 27 September 2024

1857 की क्रांति में दादरी एवं सिकन्दराबाद के निकटवर्ती क्षेत्र

पुस्तक :- 1857 का विप्लव
रचनाकार : विघ्नेश कुमार, मुदित कुमार
प्रकाशन :-1857 पेट्रियोटिकल प्रेजेन्टेशन, पब्लिकेशन डिवीज़न
सूचना एवं प्रसार मंत्रालय, भारत सरकार
10 मई को मेरठ से शुरू हुआ विप्लव शीघ्र ही दादरी एवं सिकन्दराबाद क्षेत्र में फैल गया। दादरी एवं सिकन्दराबाद में गुर्जर क्रांतिकारियों ने सरकारी डाक बग़लों, तार घरों व इमारतों को ध्वस्त करना आरम्भ कर दिया। सरकारी संस्थानों को लूटकर उनमें आग लगा दी गई। इस प्रकार सिकन्दराबाद कस्बे के चारों और लूटपाट व आगज़नी की घटनाएँ घटित होने लगी। 15 मई को क्रांतिकारी सैनिकों की रेजिमेंट ने सिकन्दराबाद में पूर्व दिशा की ओर से प्रवेश करके पुलिस व्यवस्था को पूर्णतः नष्ट कर दिया। जो सैनिक तथा चपरासी उपखंड की सुरक्षा के लिए तैनात थे, वे सभी वहाँ से भाग गए।
दादरी में भी लूटपाट की अत्यधिक घटनाएँ हो रही थी। यद्यपि मि. टर्नबुल वहाँ शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से चले किन्तु रास्ते में बड़पुरा गाँव के निकट क्रांतिकारियों द्वारा उसे रोक दिया गया। 21 मई को दोपहर बुलन्दशहर के जिला मजिस्ट्रेट सैप्टे को दादरी के एक मुखाबिर ने सूचना दी कि 5 बजे शाम गुर्जरों एवं राजपूतों का आक्रमण होने वाला है। 4:30 पर उन्हें दूसरी सूचना मिली की अलीगढ़ से 9वीं पलटन के क्रांतिकारी सैनिक खुर्जा पहुँच गये हैं। इन खबरों को सुनकर मि. सैप्ट ने खजाने को मेरठ भेजने का विचार किया। उसने मि. रौस को गाड़ियों में खजाना रखने के लिए कहा लेकिन खजाने की चाबियाँ उस समय नहीं थी। इसलिए सन्दूकों को तोड़कर खजाने को सरकारी गाड़ियों में लाद दिया गया। इसके बाद टर्नबुल, मैल्विल, लॉयल कुछ घुड़सवारों के साथ आगे बढ़ना ही चाहते थे, परन्तु दादरी के निकटवर्ती क्षेत्र के गुर्जरों एवं राजपूतों के आक्रमण के कारण तथा 9वीं पल्टन के क्रांतिकारी सैनिकों के बुलन्दशहर आ जाने से, वे आगे नही बढ़ सके। इस समय एक क्रांतिकारी संतरी ने उन्हें सावधान करते हुए कहा कि 'सावधान! यदि कोई भी आगे बढ़ा तो गोली मार दी जायेगी।' यद्यपि ब्रितानियों ने क्रांतिकारियों का सामान किया और संघर्ष में कई क्रांतिकारी भी मारे गये लेकिन फिर भी क्रांतिकारियों ने खजाने को लूट लिया। जब लेफ्टिनेन्ट रौस ने अपने सैनिकों को कोषागार बचाने के लिए कहा तो उन्होंने आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया और वे भी क्रांतिकारियों के साथ हो गये। इस समय बुलन्दशहर में तोड़-फोड़ की गयी तथा सभी प्रलेख खत्म कर दिये गये। क्रांतिकारी ग्रामीणों के आने से पहले की क्रांति से प्रभावित जेल प्रहरियों ने जेल का फाटक खोल दिया। जेल से निकले कैदियों ने भी विप्लव में भाग लिया। गुर्जरों एवं अन्य क्रांतिकारियों ने जिला अदालत में भी तोड़-फोड़ की और सभी कागजात जला डाले। क्रांति की इस भयावह स्थिति से आतंकित होकर अपने प्राण बचाने के लिए सभी अंग्रेज अधिकारी बुलन्दशहर छोड़कर 21 मई को सायं 6:30 बजे मेरठ की ओर भाग खड़े हुए। वे भाग कर 10 बजे रात्रि में हापुड़ पहुँचे और 22 मई को प्रातः 9 बजे जान बचाकर मेरठ आ गये। बुलन्दशहर से ब्रिटिश अधिकारियों के पलायन करने के पश्चात् वहाँ से ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और मेरठ से आगरा तक का मार्ग क्रांतिकारियों के नियन्त्रण में आ गया। मेजर रीड के नेतृत्व में सिरमुर बटालियन जो नहर के मार्ग से कुछ दिन पहले बुलन्दशहर आने वाली थी, वह क्रांतिकारियों द्वारा नहर को क्षतिग्रस्त कर देने के कारण बहुत देर एवं कठिनाई से 24 मई को बुलन्दशहर पहुँची। देहरादून से गोरखा पल्टन की खबर सुनकर जिला मजिस्ट्रेट सैप्टे, लेफ्टिनेन्ट रौस, कैप्टन टर्नबुल तथा लॉयल 26 मई को बुलन्दशहर वापिस लौट आये।दादरी में भी लूटपाट की अत्यधिक घटनाएँ हो रही थी। यद्यपि मि. टर्नबुल वहाँ शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से चले किन्तु रास्ते में बड़पुरा गाँव के निकट क्रांतिकारियों द्वारा उसे रोक दिया गया। 21 मई को दोपहर बुलन्दशहर के जिला मजिस्ट्रेट सैप्टे को दादरी के एक मुखाबिर ने सूचना दी कि 5 बजे शाम गुर्जरों एवं राजपूतों का आक्रमण होने वाला है। 4:30 पर उन्हें दूसरी सूचना मिली की अलीगढ़ से 9वीं पलटन के क्रांतिकारी सैनिक खुर्जा पहुँच गये हैं। इन खबरों को सुनकर मि. सैप्ट ने खजाने को मेरठ भेजने का विचार किया। उसने मि. रौस को गाड़ियों में खजाना रखने के लिए कहा लेकिन खजाने की चाबियाँ उस समय नहीं थी। इसलिए सन्दूकों को तोड़कर खजाने को सरकारी गाड़ियों में लाद दिया गया। इसके बाद टर्नबुल, मैल्विल, लॉयल कुछ घुड़सवारों के साथ आगे बढ़ना ही चाहते थे, परन्तु दादरी के निकटवर्ती क्षेत्र के गुर्जरों एवं राजपूतों के आक्रमण के कारण तथा 9वीं पल्टन के क्रांतिकारी सैनिकों के बुलन्दशहर आ जाने से, वे आगे नही बढ़ सके। इस समय एक क्रांतिकारी संतरी ने उन्हें सावधान करते हुए कहा कि 'सावधान! यदि कोई भी आगे बढ़ा तो गोली मार दी जायेगी।' यद्यपि ब्रितानियों ने क्रांतिकारियों का सामान किया और संघर्ष में कई क्रांतिकारी भी मारे गये लेकिन फिर भी क्रांतिकारियों ने खजाने को लूट लिया। जब लेफ्टिनेन्ट रौस ने अपने सैनिकों को कोषागार बचाने के लिए कहा तो उन्होंने आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया और वे भी क्रांतिकारियों के साथ हो गये। इस समय बुलन्दशहर में तोड़-फोड़ की गयी तथा सभी प्रलेख खत्म कर दिये गये। क्रांतिकारी ग्रामीणों के आने से पहले की क्रांति से प्रभावित जेल प्रहरियों ने जेल का फाटक खोल दिया। जेल से निकले कैदियों ने भी विप्लव में भाग लिया। गुर्जरों एवं अन्य क्रांतिकारियों ने जिला अदालत में भी तोड़-फोड़ की और सभी कागजात जला डाले। क्रांति की इस भयावह स्थिति से आतंकित होकर अपने प्राण बचाने के लिए सभी अंग्रेज अधिकारी बुलन्दशहर छोड़कर 21 मई को सायं 6:30 बजे मेरठ की ओर भाग खड़े हुए। वे भाग कर 10 बजे रात्रि में हापुड़ पहुँचे और 22 मई को प्रातः 9 बजे जान बचाकर मेरठ आ गये। बुलन्दशहर से ब्रिटिश अधिकारियों के पलायन करने के पश्चात् वहाँ से ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और मेरठ से आगरा तक का मार्ग क्रांतिकारियों के नियन्त्रण में आ गया। मेजर रीड के नेतृत्व में सिरमुर बटालियन जो नहर के मार्ग से कुछ दिन पहले बुलन्दशहर आने वाली थी, वह क्रांतिकारियों द्वारा नहर को क्षतिग्रस्त कर देने के कारण बहुत देर एवं कठिनाई से 24 मई को बुलन्दशहर पहुँची। देहरादून से गोरखा पल्टन की खबर सुनकर जिला मजिस्ट्रेट सैप्टे, लेफ्टिनेन्ट रौस, कैप्टन टर्नबुल तथा लॉयल 26 मई को बुलन्दशहर वापिस लौट आये।
परन्तु इससे पूर्व 23 मई को महेशा, मनौरा और बेयर गाँव के 4-5 हजार ग्रामीण एकत्रित हुए तथा उन्होंने मिलकर सिकन्दराबाद पर आक्रमण करके खूब लूटमार की। इस लूटमार में करीब 70 लोग मारे गये।

दादरी क्षेत्र के गाँवों में कटहेड़ा गाँव के उमारव सिंह, बिलू गाँ के रूपराम, लाहरा खुगुआरा के सिब्बा एवं नयनसुख, नंगला के झण्डू, छतेहरा के फतेह गुर्जर, महेशा के बेबी सिंह जमींदार, बेयर के हरबोल, तिलबेगपुर के चौधरी पीर बख्श खाँ एवं धौला, किलौना, नंगला समाना व पारफा के ग्रामीणों ने क्रांतिकारी गतिविधियों में महत्वपूर्ण भाग लिया।
कुछ समय बाद में बुलन्दशहर में ब्रितानियों की स्थिति धीरे-धीरे दृढ़ होती गई। उन्होंने सेना के उन अधिकांश सैनिकों को नौकरी से निकाल दिया जिन्होंने क्रांति में गुप्त रूप से या प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया था। उनके स्थान पर निकटवर्ती गाँवों के जाटों को भर्ती किया गया क्योंकि उन्होंने ब्रितानियों के प्रति स्वामी-भक्ति प्रदर्शित की थी।
क्रांति की असफलता के पश्चात् ब्रितानियों ने दादरी परगने में दमनचक्र शरू किया। 26 सितम्बर को ग्रीथेड ने दादरी और आस-पास के गाँवों में आग लगवा दी। इस परगने के रोशन सिंह के पुत्रों एवं भाइयों को सरेआम फाँसी दे दी गयी और उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गयी। कटहेड़ा के उमराव सिंह एवं सेढू सिंह भाटी को जिन्दा जमींन पर लिटा कर हाथी से कुचलवा दिया गया। दादरी के भगत सिंह एव बिसन सिंह को बुलन्दशहर में 'काला आम' (कत्लेआम) चौराहे, बुलन्दशहर पर फाँसी दे गयी। इस स्थान को वर्तमान में 'शहीद चौक' के नाम से जाना जाता है।

dayaram khari gurjar






 दयाराम खारी गुर्जर (1857 की क्रांति) :दयाराम गुर्जर दिल्ली मे चन्द्रावल गांव के रहने वाला थे ।1857 ई0 क्रान्ति में दिल्ली के आसपास के गुर्जर अपनी ऐतिहासिक परम्परा के अनुसार विदेशी हकूमत से टकराने के लिये उतावले हो गये थे । दिल्ली के चारों ओर बसे हुए तंवर, चपराने, कसाने, भाटी, विधुड़ी, अवाने खारी, बासटटे, लोहमोड़, बैसौये तथा डेढ़िये वंशों के गुर्जर संगठित होकर अंग्रेंजी हकूमत को भारत से खदेड़ा । गुर्जरों ने शेरशाहपुरी मार्ग मथुरा रोड़ यमुना नदी के दोनों किनारों के साथ-2अधिकार करके अंग्रेंजी सरकार के डाक, तार तथा संचार साधन काट कर कुछ समय के लिए दिल्ली अंग्रेंजी राज समाप्त कर दिया था। ।दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में गुर्जरों ने दिल्ली के मेटकाफ हाउस को कब्जे में ले लिया । जो अंग्रेंजों का निवास स्थान था, यहा पर सैनिक व सिविलियम उच्च अधिकारी अपने परिवारों सहित रहा करते थे । जैसे ही क्रान्ति की लहर मेरठ से दिल्ली पहुंची, दिल्ली के गुर्जरों में भी वह जंगल की आग की तरफ फैल गई। दिल्ली के मेटकाफ हाउस में जो अंग्रेंज बच्चे और महिलायें उनको जीवनदान देकर गुर्जरों नेअपनी उच्च परम्परा का परिचय दिया था। महिलाओं औरबच्चों को मारना पाप समझ कर उन्होने जीवित छोड़दिया था और मेटकाफ हाउस पर अधिकार कर लिया ।दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में दिल्ली के समीप वजीराबाद जोअंग्रेंजों का गोला बारूद का जखीरा था उस पर अधिकारकर लिया जिसमें लाखो रूकी बन्दूके थी। इसी तरह अंग्रेंजी सेना की 16 गाड़ियां 7जून 1857 को रास्ते में जाती हुई रोक कर उनको अपने कब्जे में लेकर गाडियो मे आग लगा दी । सर विलियम म्योर के इन्टेलिजेन्स रिकार्ड के अनुसार, गुर्जरों ने अंग्रेंजों के अलावा उन लोगों को भी नुकसान पहुंचाया जो अंग्रेजों का साथ दे रहे थे।1857 की क्रान्ति के दमन चक्र के दौरान चन्द्रावल गांवको जला कर खाक कर दिया गया था स्त्री पुरूषोंको बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया था। चन्द्रावल केगुर्जरों मेटकाफ हाउस और वजीराबाद के शस्त्रागार कोलूटने का गंभीर आरोप था । अंग्रेजों को मारने का तोआरोप था ही। दमन चक्र में तो कसरछोड़ी ही नहीं थी रही सही कसर तब पूरी कर दी जब अंग्रेंजकलकता से अपनी राजधानी नई दिल्ली आए । गुर्जरों के 50गांव उजाड़ कर अपने काज चलाने और आराम से रहने के लिए तथा राष्ट्रपति भवन, केन्द्रीय सचिवालय तथा संसद भवन तथा नई दिल्ली जैसे आधुनिक नगर का निर्माण किया गया । राजधानी के समीप होते हुए भी दिल्ली के गुर्जरों केपिछड़े होने के मुख्य कारण अंग्रेजों की बदले की भावना थीजो 1947 तक बनी रही। देश स्वाधीन होने के पश्चात भीरही सही जमीन गुर्जरों को पाकिस्तान से आए हूॅं लोगो केबसाने के लिए भी सबसे पहले और सबसे अधिक गुर्जरों की हीउपजाउ जमीन दिल्ली के आसपास सरकार ने कोड़ियो केभाव अधिग्रहण की थी ।इतना ही नहीं कुछ गांव इस अधिग्रहण से बच गए थे उनकीभूमि भी 1975-76 में दिल्ली की गंदी बस्तियों के लोगोंको बसाने के लिए सरकार ने अधिग्रहण कर ली है। अबदिल्ली के चारों ओर बसने वाले बहोत गुर्जर भूमिहीन हो गएहैं। इन देशभक्त गुर्जरों को भूमिहीन बनाकर अपनी सरकार नेउन्हें कोई विशेष सुविधा प्रदान नहीं की है। इसे न्यंू कहाजाए तो ठीक है कि विकास के नाम पर गुर्जरों का विनाशहुआ ।इंडियन एम्पायर के लेखक मार्टिन्स ने दिल्ली के गुर्जरों के1857 के क्रान्ति में भाग लेने पर लिखा है, मेरठ से जो सवार दिल्लीआए थे, उनकी संख्या भी काफी थी । दिल्ली की साधारण जनता ने यहा तक मजदूरों ने भी इनका साथ दिया पर इस समय दिल्ली के चारों ओर की बस्तियों में फैले गुर्जर विद्रोहियों के साथ हो गए । इसी प्रकार 38वीं बिग्रेड के कमाण्डर ने लिखा है हमारी सबसे अधिक दुर्गति गुर्जरों ने की है। सरजान वैलफोर ने भी लिखा है ’चारों ओर के गुर्जरों के गांव 50 वर्ष तक शांत रहने के पश्चात एकदम बिगड़ गये और मेरठ से गदर होने के चन्द घंटों के भीतर उन्होने तमाम जिलों को अंग्रेजी संपत्ति को राख कर दिया । यदि कोई महत्वपूर्ण अधिकारी उनके गांवों में शरण के लिए गया तो उसे नहीं छोड़ा और खुले आम बगावत कर दी।
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Posted by - Gurjjar Ajayraj Poswal


गुर्जर समाज की 27 पत्र-पत्रिकाएं

नंदलाल गुर्जर. गुर्जर समाज की देशभर से करीब 27 पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। हमने इन सबकी जानकारी एक जगह जुटाने की कोशिश की है। हमारा प्रयास इनके संबंध में पूरी जानकारी सही देने का रहा है, फिर भी यदि कोई कमी रह गई हो तो कृपया हमें सूचित करें। इस जानकारी को हमारे लिए जुटाया है बारहवीं के छात्र नंदलाल गुर्जर ने। भीलवाड़ा जिले की मांडलगढ़ तहसील के गांव थलखुर्द के रहने वाले इस किशोर में समाज के प्रति जानने की जबरदस्त जिज्ञासा है। इसने न केवल समाज की देश भर से प्रकाशित होने वाली समाज की पत्र-पत्रिकाओं का ब्यौरा जुटाया है बल्कि गुर्जर समाज के इतिहासकारों के संबंध में भी अच्छी खासी जानकारी एकत्रित की है।
1. गुर्जर महासभा
संपादक -श्रीरामसरन भाटी, गुर्जर भवन कोटला, पहाडग़ंज, नई दिल्ली
2. गुर्जर निर्देशक
संपादक-जगदीश सिंह गुर्जर, नर्मदा कॉप्लेक्स, ग्वालियर रोड, पोस्ट कत्थमिल, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
3. गुर्जर समाज
संपादक- शिवशंकर गुर्जर, गुर्जर भवन, विजयपथ, तिलक नगर, जयपुर
4. गुर्जर टू डे
संपादक-के.एस पोसवाल, 69/14, आर्य अस्पताल, पानी की टंकी के पास, रामनगर, करनाल, हरियाणा
5. गुर्जर भारती
संपादक-त्रिभुवन सिंह गुर्जर, ग्राम. माडला, पोस्ट लोनी, जिला-गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश
6. गुर्जर दर्शन
सरदार सिंह, पी-9त्रिवेणी टावर, उनियारों का रास्ता, चांदपोल बाजार, जयपुर
7. सामाजिक गुर्जर पत्रिका
संपादक-ओमपाल गुर्जर, मु.पो. कमाला, बागपत, उत्तर प्रदेश
8. गुर्जर गाथा
ब्रह्मपाल सिंह नागर, पटेल भन, कमरा नं.-339 ए, नॉलेज पार्क, फे. 2, ग्रेटर नोएडा, दिल्ली, एनसीआर
9. गुर्जर सेवा
संपादक-एडवोकेट रणवीर सिंह, गली नं. 12, नाका च्रद्रवदनी, ग्वालियर (म.प्र.)
10. वीर गुर्जर पत्रिका
संपादक-प्रदीप गुर्जर, मु.पो.-कमला बागपत (उ.प्र.)250345
11. गुर्जर इंडिया
संपादक-डीआर कसाना, सौमाला, आरटीएम होटल के सामने, कोटपूतली, जयपुर (राजस्थान)-18
12. गुर्जर कारवां
संपादक-तेजप्रतापसिंह, 1, माता मंदिर, तुगलकाबाद गांव, दिल्ली
13. आवाज-ए-गुर्जर
संपादक-मसूद चौधरी, गुर्जर देश चेरिटेबल ट्रस्ट, 48, गुर्जर कॉलोनी, बाईपास, जम्मू
14. जगदीश धाम देववाणी
संपादक-सियाराम वकील, गुर्जर भवन-कैमरी, पो.-कैमरी, तहसील-नादौती, जिला-करौली (राजस्थान) 322216
15. बाबा देवपुरी वाणी
संपादक-सरनाम सिंह तौंगर, वनखंडी रोड, ठाकुर गली, गोपालपुरा, मुरैना (म.प्र.)
16. देव ज्योति दर्शन
संपादक-रामगोपाल गार्ड, गुर्जर गौमती भवन, कालवाड़ रोड, झोटवाड़ा, जयपूर (राजस्थान)
17. गुर्जर पायलट संदेश
संपादक-राम अवतार धाभाई, बड़ा तख्ता, टोंक (राजस्थान)
18. गुर्जर वीर पत्रिका
संपादक-सत्यवीर सिंह गुर्जर, हनुमान विहार कॉलोनी, फेज प्रथम, सराय काजी रोड, पोस्ट-मडिकल, मेरठ (उ.प्र.)
19. गुर्जर जगत
संपादक-जीवनाराम, देव पैलेस, गली नं. -6, पोस्ट-जसवंत गढ़, जिला-नागौर (राजस्थान)
20. गुर्जर देशभक्त
संपादक-सुरेंद्र सिंह भाटी, प्रबंधक अमरसिंह भाटी, खेल संस्थान, ग्राम-खरखौदा, पोस्ट-जामतौली, तहसील-हसनपुर, जिला-जेपीनगर (उ.प्र.) 244441
21. गुर्जर संचार
संपादक-रमेश गुर्जर, 558, बजरंग नगर, इंदौर (म.प्र.)
22. गुर्जर गौरव
संपादक-डॉ. जयसिंह गुर्जर, ग्राम-शिकारपुर, पोस्ट-लंडौरा, जिला-हरिद्वार, उत्तराखंड
23. गुर्जर जागृति
संपादक-भरतराज गुर्जर, देव भवन, न्यू लाइट पब्लिक स्कूल के पीछे, संघपुरा, पुरानी टोंक (राजस्थान)
24. गुर्जर विकास पत्रिका
संपादक-जयप्रकाश सिंह गुर्जर,
25. पायलट दर्शन
राम लखन सिंह कसाना, सीई-377, दीन दयाल नगर, ग्वालियर (म.प्र.)
26. गुर्जर गंगा
संपादक-सतीश चौधरी, शहादा, जिला-नंदुरबार (महाराष्ट्र)
27. सेवा और सलाह
संपादक-सरोज गुर्जर, ई-२९०, रामनगर एक्सटेंशन सोढ़ाला, जयपुर

हेरात का युद्ध (The Battle of Herat):

हेरात का युद्ध (The Battle of Herat):

‌ये युद्ध चौथी सदी में हूण सेनापति अखशुनवार और ईरानी बादशाह पेरोज के बीच उत्तर पूर्वी ईरान में हेरात नाम की जगह पर हुआ था। पहले बता दिया जाये कि हूण कोई अकेली जाति/ट्राइब नही थी बल्कि हूण भी दो तीन तरह के थे। यहाँ हम जिन हूणो की बात कर रहे हैं वो वाइट हूण/शवेत हूण या फिर हफ्थाल कहलाते थे जो आज के गुज्जरों/गुर्जरो के पूर्वज थे। ये हूण दिखने में आर्यन प्रजाति के और घुमक्कड़ योद्धा थे।  हूण जाति मध्यएशिया/जॉर्जिया/पश्चिम यूरेशिया/ईरान आदि की कई लड़ाकू प्रजातियों का एक गठबंधन था जिसे हूण ट्राइबल कंफेडरेशन भी कहा जाता है। गुर्जर और गुर्जरो की ही भाईबंद दूसरी कई जॉर्जियन जातियां इस कंफेडरेशन का ही अंग थी। इस कंफेडरेशन में गुज्जर/गुर्जरो के सबसे ज्यादा प्रभावी होने की वजह से सारे ही हूणो को भारत में गुर्जर कहा जाने लगा था। खैर ये हुआ हफ्तालो/हूणो का परिचय अब आते हैं हेरात के युद्ध पर।

सन 457 (AD) में ईरान के सासानी वंश के बादशाद यज़्दगर्द (2nd) की मौत हो गयी थी और उसके दो बेटों होरमुज़्द और पेरोज में सत्ता के लिये खींचातानी शुरू हो गयी थी। पेरोज बड़ा बेटा था इसलिए वो अपना हक जमा रहा था पर गद्दी होरमुज़्द ने हथिया ली थी जो छोटा था और होरमुज़्द तृतीय (3rd) के नाम से बादशाहत कर रहा था। पेरोज उस वक़्त ईरान की उत्तरी सरहद पर हूणो से हो रहे खतरे को निबटाने गया हुआ था उसकी गैरहाज़िरी का ही फायदा उसके छोटे भाई होरमुज़्द ने उठाया था। पेरोज ने हूणो के सरदार अखशुनवार जिसे खुशनवाज भी कहा जाता था और जो उस वक़्त ईरान के उत्तर में खोरासन में हुकूमत कर रहा था से गुज़ारिश कि के होरमुज़्द के खिलाफ उसकी मदद करे। अखशुनवार के लिए ये सुनहरा मौका था। उसने पेरोज से सौदेबाजी की के जीत जाने की सूरत में अफ़ग़ानिस्तान में तालिक़ान (तुखारिस्तान) के इलाके की मांग की जो कि ईरानी हुकूमत के अधीन था और एक बड़ी सालाना रकम की मांग की।

पेरोज ने ये शर्ते क़बूल की और हूणो की एक बड़ी फ़ौज लेकर होरमुज़्द को मज़िनदरन में पराजित कर दिया और 459 AD में ईरान का बादशाद बन बैठा। वायदे के मुताबिक हूण सरदार अखशुनवार को तालिकान का इलाका दे दिया गया और कुछ पेशगी की रकम भी अदा कर दी गयी। अखशुनवार बहुत काबिल और रणनीतिज्ञ सेनापति था जो समय से आगे चलता था उसे पता था कि आने वाले समय में ईरान से बात जरूर बिगड़ेगी इसीलिए उसने पहले से ही तयारी कर ली थी और शायद इन्ही स्ट्रेटेजी की वजह से हूण हमेशा दुसमन पर भारी पड़ते थे। उसने तुखारिस्तान के साथ साथ साथ मज़िन्दरान के एक बड़े हिस्से पर भी कब्ज़ा कर लिया था और पेरोज के छोटे भाई होर्मुज्द को हराकर जो हूण लश्कर वापिस आ रहा था उसे अखशुनवार ने ऐसी जगह तैनात कर दिया था जहाँ से कभी भी ईरान में घुसा जा सकता था इस जगह का नाम गोर्जो/गोर्गन रखा गया। अखसुनवार को ये बात पता लगी तो चिंता हुई और अखशुनवार से मज़िन्दरन का दबा इलाका खाली करने को कहलवाया, लेकिन अखसुनवार नही माना। अखशुनवार के पास ये भी बहाना था कि जीत के बाद पेरोज ने अपने भाई होरमुज़्द को माफ़ कर दिया था जबकि होरमुज़्द हूणो का कट्टर दुसमन बन चूका था क्योंकि हूणो की वजह से ही उसके हाथ से सत्ता निकल गयी थी। इसके अलावा भी अखशुनवार ने पेरोज की कई जगहों पर मदद की जिनमे कुछ का जिक्र किया जा रहा है। अखशुनवार ने 459 AD में गार्डमन (अर्मेनिया) के यहूदियों के खिलाफ कुचाना की जंग में पेरोज की सैन्य मदद की थी क्योंकि पेरोज यहूदियों के खिलाफ था जंग में अनाथ यहूदी बच्चो को पेरोज के आदेश से ईरान लाया गया था जहाँ उन्हें जरास्थुस्त्र (प्राचीन ईरानियों का धर्म) की शिक्षा दी गयी। इसके अलावा इसी साल अखशुनवार ने गुर्जीन में अरदन के सूबेदार वाचे के विद्रोह को भी कुचला था और ईरान की सत्ता दुबारा स्थापित करवाई थी जहाँ पेरोज ने अपने सौतेले भाई गुस्तानासाप को सूबेदार नियुक्त कर दिया था।

‌इन सभी कार्यो के द्वारा जिनमे हूणो ने बहुत बड़ी मदद की थी सासानी राजवंश की उस वक़्त की तिफलिस नदी के किनारे बसी राजधानी टाईफोन सुरक्षित हो पाई थी। अखशुनवार इस मदद के बदले में भी मज़िन्दरान के इलाके पर अपना हक जायज़ बता रहा था। होर्मुज्द के खिलाफ जंग में गुर्जीन (गुर्जिस्तानी अल्बानिया) के मिहिरान परिवार के एक ईरानी सेना के सेनापति रेहाम ने भी पेरोज की बहुत बड़ी मदद की थी। मिहिरान परिवार ईरान के 7 शक्तिशाली परिवारों में से एक परिवार था। मिहिरान को जर्मन में सहरदरान (गवर्नर) के ओहदे पर नियुक्त किया गया था। पेरोज की माता डीआंग ने पेरोज के लिए ईरान के अंदर से सहायता जुटाई थी और अभी भी प्रशासन चलाने में सहायता कर रही थी। 464 AD में ईरान में भारी अकाल पड़ा और भारत से अनाज मंगवाया गया जिसकी कीमत अदा करने पर भारी टैक्स लगाया गया और पेरोज ने अखसुनवार को सालाना रकम देनी भी बंद कर दी। अखशुनवार एक और कारण से भी नाराज़ था वो ये की जीत के बाद अखशुनवार ने पेरोज से एक राजकुमारी की मांग की थी पर पेरोज ने राजकुमारी की जगह एक साधारण ईरानी लड़की को भेज दिया था जो अखशुनवार को नागवार गुजरा। अखशुनवार की हूण सेना ने गोर्गो नाम की जगह को बेस बनाकर ईरानी इलाको में घुसकर लूटमार शुरू कर दी और एलान कर दिया की अदा न की जाने वाली रकम की वसूली इसी ढंग से की जायेगी।
अगली क़िस्त में जारी...

Rajput itihas

पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण-
पं बालकृष्ण गौड लिखते है कि जिसको कहते है रजपूति इतिहास
तेरहवीं सदी से पहले इसकी कही जिक्र तक नही है और कोई एक भी ऐसा शिलालेख दिखादो जिसमे रजपूत शब्द का नाम तक भी लिखा हो। लेकिन गुर्जर शब्द की भरमार है, अनेक शिलालेख तामपत्र है, अपार लेख है, काव्य, साहित्य, भग्न खन्डहरो मे गुर्जर संसकृति के सार गुंजते है ।अत: गुर्जर इतिहास को राजपूत इतिहास बनाने की ढेरो सफल-नाकाम कोशिशे कि गई।
• कर्नल जेम्स टोड कहते है कि राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश अर्थात राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं।
• प्राचीन काल से राजस्थान व गुर्जरात का नाम गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश, गुर्जराष्ट्र) था जो अंग्रेजी शासन मे गुर्जरदेश से बदलकर राजपूताना रखा गया ।
• कविवर बालकृष्ण शर्मा लिखते है :
चौहान पृथ्वीराज तुम क्यो सो गए बेखबर होकर ।
घर के जयचंदो के सर काट लेते सब्र खोकर ॥
माँ भारती के भाल पर ना दासता का दाग होता ।
संतति चौहान, गुर्जर ना छूपते यूँ मायूस होकर ॥

Gurjardesh

गुर्जर देश -  English version is end of the post.

गुर्जर जाति ने अनेक स्थानों को अपना नाम दिया| गुर्जर जाति के आधिपत्य के कारण आधुनिक राजस्थान सातवी शताब्दी में गुर्जर देश कहलाता था|

हर्ष वर्धन (606-647 ई.) के दरबारी कवि बाणभट्ट ने हर्ष-चरित नामक ग्रन्थ में हर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन का गुर्जरों के राजा के साथ संघर्ष का ज़िक्र किया हैं| संभवतः उसका संघर्ष गुर्जर देश के गुर्जरों के साथ हुआ था| अतः गुर्जर छठी शताब्दी के अंत तक गुर्जर देश (आधुनिक राजस्थान) में  स्थापित हो चुके था|

हेन सांग ने 641 ई. में सी-यू-की नामक पुस्तक में गुर्जर देश का वर्णन किया हैं| हेन सांग ने मालवा के बाद ओचलि, कच्छ, वलभी, आनंदपुर, सुराष्ट्र और गुर्जर देश का वर्णन किया हैं| गुर्जर देश के विषय में उसने लिखा हैं कि ‘वल्लभी के देश से 1800 ली (300 मील) के करीब उत्तर में जाने पर गुर्जर राज्य में पहुँचते हैं| यह देश करीब 5000 ली (833 मील) के घेरे में हैं| उसकी राजधानी भीनमाल 33 ली (5 मील) के घेरे में हैं| ज़मीन की पैदावार और रीत-भांत सुराष्ट्र वालो से मिलती हुई हैं| आबादी घनी हैं लोग धनाढ्य और संपन्न हैं| वे बहुधा नास्तिक हैं, (अर्थात बौद्ध धर्म को नहीं मानने वाले हैं)| बौद्ध धर्म के अनुयाई थोड़े ही हैं| यहाँ एक संघाराम (बौद्ध मठ) हैं, जिसमे 100 श्रवण (बौद्ध साधु) रहते हैं, जो हीन यान और सर्वास्तिवाद निकाय के मानने वाले हैं| यहाँ कई दहाई देव मंदिर हैं, जिनमे भिन्न संप्रदायों के लोग रहते हैं| राजा क्षत्रिय जाति का हैं| वह बीस वर्ष का हैं| वह बुद्धिमान और साहसी हैं| उसकी बौद्ध धर्म पर दृढ आस्था हैं और वह बुधिमानो का बाद आदर करता हैं|”

भीनमाल के रहने वाले ज्योत्षी ब्रह्मगुप्त ने शक संवत 550  (628 ई.) में अर्थात हेन सांग के वह आने के 13 वर्ष पूर्व ‘ब्रह्मस्फुट’ नामक ग्रन्थ लिखा जिसमे उसने वहाँ के राजा का नाम व्याघ्रमुख और उसके वंश का नाम चप (चपराना, चापोत्कट, चावडा) बताया हैं| हेन सांग के समय भीनमाल का राजा व्याघ्रमुख अथवा उसका पुत्र रहा होगा|

भीनमाल का इतिहास गुर्जरों का नाता कुषाण सम्राट कनिष्क से जोड़ता हैं| प्राचीन भीनमाल नगर में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण काश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। मारवाड़ एवं उत्तरी गुजरात कनिष्क के साम्राज्य का हिस्सा रहे थे। भीनमाल के जगस्वामी मन्दिर के अतिरिक्त कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व ने कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। कहते है कि भिनमाल के वर्तमान निवासी देवड़ा/देवरा लोग एवं श्रीमाली ब्राहमण कनक के साथ ही काश्मीर से आए थे। देवड़ा/देवरा, लोगों का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने जगस्वामी सूर्य मन्दिर बनाया था। राजा कनक से सम्बन्धित होने के कारण उन्हें सम्राट कनिष्क की देवपुत्र उपाधि से जोड़ना गलत नहीं होगा। सातवी शताब्दी में यही भीनमाल नगर गुर्जर देश की राजधानी बना। ए. कनिघंम ने आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट 1864 में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है और उसने माना है कि गुर्जरों के कसाना गौत्र के लोग कुषाणों के वर्तमान प्रतिनिधि है।

गुर्जर देश से गुर्जरों ने पूर्व और दक्षिण की तरफ अपना विस्तार किया| 580 ई के लगभग दद्दा I गुर्जर ने  दक्षिणी गुजरात के भडोच इलाके में एक राज्य की स्थापना कर ली थी| अपने अधिकांश शासन काल के दौरान भडोच के गुर्जर वल्लभी के मैत्रको के सामंत रहे| गुर्जर मालवा होते हुए दक्षिणी गुजरात पहुंचे और भडोच में एक शाखा को वह छोड़ते हुए समुन्द्र के रास्ते वल्लभी पहुंचे| मैत्रको के अतरिक्त चावडा भी छठी शताब्दी में समुन्द्र के रास्ते ही गुजरात पहुंचे थे| गुजरात में चावडा सबसे पहले बेट-सोमनाथ इलाके में आकर बसे|

छठी शताब्दी के अंत तक चालुक्यो ने दक्कन में वातापी राज्य की स्थापना कर ली थी| होर्नले के अनुसार वो हूण-गुर्जर समूह के थे|  मंदसोर के यशोधर्मन और हूणों के बीच मालवा में युद्ध लगभग 530 ई. में हुआ था| होर्नले का मत हैं कि यशोधर्मन से मालवा में पराजित होने के बाद हूणों की एक शाखा नर्मदा के पार दक्कन की तरफ चली गई| जिन्होने चालुक्यो के नेतृत्व वातापी राज्य की स्थापना की| वी. ए. स्मिथ भी चालुक्यो को गुर्जर मानते हैं|

आठवी शताब्दी के आरम्भ में गुर्जर-प्रतिहार उज्जैन के शासक थे| नाग भट I ने उज्जैन में गुर्जरों के इस नवीन राजवंश की नीव रखी थी| संभवत इस समय गुर्जर प्रतिहार भीनमाल के चप वंशीय गुर्जर के सामंत थे|

ये सभी हूण-गुर्जर समूह से संबंधित राज्य एक ढीले-ढाले परिसंघ में बधे हुए थे, जिसके मुखिया भीनमाल के चप वंशीय गुर्जर थे| हालाकि इनके बीच यदा-कदा छोटे-मोटे सत्ता संघर्ष होते रहते थे, किन्तु बाहरी खतरे के समय से सभी एक हो जाते थे| हर्षवर्धन के वल्लभी पर आक्रमण के समय यह परिसंघ सक्रिय हो गया| 634 ई. के लगभग वातापी के चालुक्य पुल्केशी II तथा भडोच के गुर्जर दद्दा II ने हर्षवर्धन को नर्मदा के कछारो में पराजित कर दिया था|

724 ई. में जुनैद के नेतृत्व में पश्चिमी भारत पर हुए अरब आक्रमण ने एक अभूतपूर्व संकट उत्पन्न कर दिया| पुल्केशी जनाश्रय के नवसारी अभिलेख के अनुसार “ताज़िको (अरबो) ने तलवार के बल पर सैन्धव (सिंध), कच्छेल्ल (कच्छ), सौराष्ट्र, चावोटक (चापोत्कट, चप, चावडा), मौर्य (मोरी), गुर्जर आदि के राज्यों को नष्ट कर दिया था| इस संकट के समय भी हूण-गुर्जर समूह के राज्य एक साथ उठ खड़े हुए| इस बार इनका नेतृत्व उज्जैन के गुर्जर-प्रतिहार शासक नाग भट I ने किया| मिहिरभोज के ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने मलेच्छो को पराजित किया| नवसारी के पास वातापी के चालुक्य सामंत पुल्केशी जनाश्रय ने भी अरबो को पराजित किया|

724 ई. में जुनैद के नेतृत्व में हुए अरब आक्रमण के बाद भीनमाल के गुर्जर कमजोर अथवा नष्ट हो गए| अरबो को पराजित कर नागभट I के नेतृत्व में उज्जैन के गुर्जर प्रतिहारो की शक्ति का उदय हुआ| कालांतर में उन्होंने गुर्जर देश पर अधिकार कर लिया| तथा इसी के साथ गुर्जरों की प्रभुसत्ता भीनमाल के चपो के हाथ से निकलकर उज्जैन के गुर्जर-प्रतिहारो के हाथ में आ गई| कालांतर में नाग भट II  के नेतृत्व में उज्जैन के गुर्जर-प्रतिहारो ने कन्नौज को जीतकर उसे अपनी राजधानी बनाया|

सन्दर्भ

1. भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991,
2. रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006
3. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
4. के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968 
5. डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्डX L 1911
6. ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
7. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली,
8. जे.एम. कैम्पबैल, दी गूजर (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड IX भाग 2, बोम्बे, 1899
9.के. सी. ओझा, ओझा निबंध संग्रह, भाग-1 उदयपुर, 1954
10.बी. एन. पुरी. हिस्ट्री ऑफ गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986
11. डी. आर. भण्डारकर, गुर्जर (लेख), जे.बी.बी.आर.एस. खंड 21, 1903
12 परमेश्वरी लाल गुप्त, कोइन्स. नई दिल्ली, 1969
13. आर. सी मजुमदार, प्राचीन भारत
14. रमाशंकर त्रिपाठी, हिस्ट्री ऑफ ऐन्शीएन्ट  इंडिया, दिल्ली, 1987
                                                            (Dr Sushil Bhati)

English Version-

Gurjar country -

Gurjar caste gave many names to many places. Due to the lordship of the Gurjar caste, modern Rajasthan was called the Gurjar country in the seventh century.

Banbhat, a court poet of Harsh Vardhan (606-647 AD), mentioned the struggle with the King of Gujjars of Prabhakar Vardhan, Harsha's father, Harsh-Charit. Probably his struggle was with Gujjars of Gujjar country. Therefore, Gurjar had been established in the Gujjar country (modern Rajasthan) till the end of the sixth century.

Hein Song describes the Gujjar country in 641 CE, in the book C-u-ki. Hein Song has described the land of Ochli, Kachh, Vallahi, Anandpur, Surasura and Gujjar after Malwa. Regarding the Gujjar country, he wrote that, "Going to the north of 1800 l (300 miles) from the country of Vallabhbhai, Gujjar reaches the state. This country is around 5,000 lanes (833 miles). Its capital city is under 33 lais (5 miles). The land yields and the rituals are meeting the good people. The population is dense, people are wealthy and prosperous. They are mostly atheists, (i.e. not going to believe in Buddhism). Followers of Buddhism are few. There is a Sangram (Buddhist monastery) here, in which 100 hearings (Buddhist monks) live, who are considered to be inferior and universalist. There are several tenth deities in which there are people from different sects. Raja is of Kshatriya caste. He is twenty years old. He is intelligent and courageous. He has strong faith in Buddhism and he respects Buddhamano later. "

Jyotsasi Brahmagupta, living in Bhanmal, wrote a book, "Brahmosphat", 13 years before he came to the Sankasvat 550 (628 AD) that means Hey Song, in which he named the king of the name of Jai Maharaj and his descendant named Chap (Chaparana, Kathakkat , Chavda). During the time of Hein Song, the king of Bhinmal would be the king, or his son.

The History of Bhanmal links the Gujjars with the Kushan emperor Kanishka. In the ancient city of Binamal, the famous Jagatswami temple of Sun God was built by King Kanak (King Kanishka) of Kashmir. Marwar and northern Gujarat were part of Kanishka's empire. In addition to the Jagaswami temple of Bhinmal, Kanishka built a lake called 'Karada' there. Seven Kos east from Bhanmal gives credit to Kanishka for installing a town named Kanakawati. It is said that the current residents of Bhinmal had come from Kashmir with Deora / Deora people and Shrimali Brahmin Kanak. Devda / Deora, the name of the people was because they created the Jaguswami Sun temple. Due to the relation with King Kanak, it would not be wrong to associate Emperor Kanishka with the Deity son of God. In the seventh century, the city of Bhinnamal Gujjar became the capital of the country. a. Kannigam has identified the Kushanas in the Archaelogical Survey Report 1864 with the modern Gujjars and he has admitted that the people of Gujjar's kasana Gotra are the present representatives of the Kushanas.

Gujjars expanded east and south from Gujjar country. About Gujjar 580E, I had established a kingdom in the Bardoch area of Southern Gujarat. During most of his reign, the peasants of Gurudwara Vallabhbhai of Bhadoch remained. Gurjar reached Malabia in southern Gujarat and left a branch in Bhadoch and reached Wari Bhavan via Samundra. Apart from Maitreko, Chavda also reached Gujarat through the sea in the sixth century. Chavda in Gujarat first settled in Bet-Somnath area.

By the end of the sixth century, Chalukyo had established Vatapi State in the Deccan. According to Hornle, he belonged to the Hun-Gurjar group. Between the advent of Mandsaur and the Hunas in Malwa, the battle took place around 530 AD. Hornley thinks that after defeating Malwa in Yeshodarman, a branch of the Hanas went towards the Deccan across Narmada. Who established Vatapi state under Chalukuyu V. A. Smith also considers Chalukyo as a Gujjar.

In the beginning of the eighth century, Gujjar-Pratihar was the ruler of Ujjain. Nag Bhat I laid the foundation of this new dynasty of Gujjars in Ujjain. Probably at that time Gurjar Pratihar Bhamanal's chap was the peasant of Ancestral Gujjar.

All these kingdoms related to the Hun-Gujjar group were engaged in a loose-fierce confederacy, whose head was the Ancestral Gujjars of Bhanmal. Although there were occasional small-scale power struggles between them, but from the time of external threat all of them became one. This federation became active during Harshvardhan's attack on Vallabhbhai. About 634 AD, Chalukya Pulkeshya II of Varanasi and Gujjar Dadda II of Bhadoch defeated Harshvardhan in Narmada's Cacharro.

Arab invasion of western India led by Junaid in 724 AD created an unprecedented crisis. According to the Navsari record of Pulkshya Janasarai, "Taziko (Arbo) destroys the states of Sandhav (Sindh), Kachhela (Kutch), Saurashtra, Chavotak (Chapatkot, Chap, Chavda), Maurya (Mori), Gurjar etc. on the sword Was given During this crisis, the kingdoms of Hun-Gurjar group stood up together. This time, they were led by Ujjain's Gujjar-Pratihara ruler Nag Bhat I. According to Mihir Bhoj's Gwalior records, he defeated the merchants. Chalukya Samant Pulkshaya Janashri of Vanti, near Navsari, also defeated Arbo.

After the Arab invasion of Junaid in 724 AD, the Gurjars of Bhanimal were weakened or destroyed. By defeating Arbo, the power of Ujjain's Gujjar Prataharo emerged under the leadership of Nagabhata I. In time, he passed the Gujjar state.

मजलिस जमींदार (लुहारली)

शहीद स्मृति संस्थान के आवाह्नïन पर यहां 1857 की क्रांति की 155 वीं वर्षगांठ 10 मई के पावन अवसर पर पदयात्रा का आयोजन किया जा रहा है। संस्थान की ओर से राव संजय भाटी ने बताया कि प्रात:काल 7.&0 बजे दादरी चौराहे पर राव उमराव सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण कर पदयात्रा कलेक्टे्रट सूरजपुर गौतमबुद्घ नगर जाकर समाप्त होगी। उन्होंने बताया कि मई 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम में इस क्षेत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिससे 1857 की महान क्रांति जिसे अंग्रेजों ने गदर कहा गांव गांव में फेेल गयी थी। यहां के वीर ग्रामीणों ने जालिम अंग्रेजी राज को चुनौती दी थी तथा लगभग एक साल तक गुलामी का निशान ही मिटा दिया था। सन 1874 में बुलंदशहर के डिप्टी कलेक्टर कुंवर लक्षण सिंह ने 1857 की क्रांति को लिपिबद्घ किया वह लिखता है, दादरी रियासत के राव रोशन सिंह, राव उमराव सिंह, राव बिशन सिंह राव भगवंत सिंह आदि ने मिलकर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया था। अत: इस परिवार की सारी चल अचल संपत्ति सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी और राव रोशन सिंह तथा उनके पुत्रों व भाईयों को प्राण दण्ड दे दिया गया। इस जन युद्घ के हिम्मत सिंह (गांव रानौली) झंडू जमींदार, सहाब सिंह (नंगला नैनसुख) हरदेव सिंह, रूपराम (बील) मजलिस जमींदार (लुहारली) फत्ता नंबरदार (चिटहरा) हरदयाल सिंह गहलोत, दीदार सिंह, (नगला समाना) राम सहाय (खगुआ बास) नवल, हिम्मत जमीदार (पैमपुर) कदम गूजर (प्रेमपुर) कल्लू जमींदार (चीती) करीम बख्शखांन (तिलबेगमपुर) जबता खान (मुंडसे) मैदा बस्ती (सांवली) इंद्र सिंह, भोलू गूजर (मसौता) मुल्की गूजर (हृदयपुर) मुगनी गूजर (सैंथली) बंसी जमींदार (नगला चमरू) देवी सिंह जमीदार (मेहसे) दानसहाय (देवटा) बस्ती जमींदार (गिरधर पुर) फूल सिंह गहलोत (पारसेह) अहमान गूजर (बढपुरा) दरियाव सिंह (जुनेदपुर) इंद्र सिंह (अट्टïा) आदि क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सरकार ने रिंग लीडर दर्ज कर मृत्यु दण्ड दिया। भारत की आजादी के लिए प्रथम क्रांति युद्घ में हरदयाल सिंह रौसा, रामदयाल सिंह ,निर्मल सिंह (सरकपुर) तोता सिंह कसाना (महमूदपुर लोनी) बिशन सिंह (बिशनपुरा) सहित 84 क्रांतिकारियों को बुलंदशहर कालाआम पर मृत्यु दण्ड दिया गया वहीं अंग्रेजी सरकार द्वारा सैकड़ों क्रांतिकारियों को काले पानी की सजा दी गयी।
श्री भाटी ने कहा कि संस्थान का मानना है कि 1857 के बलिदानों को आजाद भारत में छह दशकों के बाद भी इतिहासकारों एवम सरकारों द्वारा घोर अपेक्षा का क्रम बदस्तूर जारी है। इन महान बलिदानियों को अपने श्रद्घासुमन व सरकार द्वारा उचित सम्मान दिलाने हेतु शहीद स्मृति संस्थान ने तीसरी बार पदयात्रा का आयोजन किया है।
पदयात्रा में भाग ले रहे हैं चौधरी रघुराज सिंह, सुखवीर सिंह आर्य, अगम सिंह नागर, राव अमित भाटी, डा. सुधीर गौड, नरेन्द्र नागर, एड श्याम सिंह भाटी, पंकज रौसा, अनुज बालियान, डा. रणवीर सिंह, विजेन्द्र नागर, ज्ञानेन्द्र प्रधान, हंसराज चंदीला, डा. आनंद आर्य, अरूण वर्मा, रणवीर नागर प्रधान, रघुराज नागर, सुंदर भाटिया, के पी नागर, दिनेश बंसल, सुनील भाटी, श्री सुभाष भाटी, श्री शिव कुमार, श्री संजय सिंह, गुलाम अहमद (बिसाहडिय़ा) आदि।

राव उमराव सिंह गूर्जर

राव उमराव सिंह गूर्जर
राव उमराव सिंह भाटी दादरी बुलन्दशहर उत्तर प्रदेश के समीप कठैड़ा गांव के निवासी थे।
सन् 1857 ई0 की क्रान्ति में इन्होने अन्य गुर्जरों की तरह बढ़ चढ़ कर भाग लिया था।
राव उमराव सिंह भाटी ने 1857 की क्रान्ति में वही काम किया जो जलती अग्नि में घी का काम करता है।
उन्होनें राजा की उपाधि ब्रिटिश सरकार को लौटा दी और पेंशन छोड़ कर भाटी,कपासिया,खटाणा,नागंड़ी,विधुड़ी,डेढिए आदि गुर्जर खानों के साथ इस क्रान्ति में शरीक होकर इनका नेतृत्व किया।
इन क्रान्तिकारी गुर्जरों ने बुलन्दशहर की जेल तोड़ दी और थाने,कचहरी,डाक बंगले सब जला दिए ।
छावनियों को लूट कर बर्बाद कर दिया और बुलन्दशहर में राज्य व्यवस्था एकदम भंग कर दी ।
तत्कालीन कलैक्टर साप्टे बुलन्दशहर छोड़ कर भाग गया था और मेरठ में जा कर शरण ली।
बाद में उसने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि मेरठ में गदर होते ही गूर्जरों के सारे गांव बागी हो गए।
कठैड़ा गांव के राव उमराव सिंह ने अपने को राजा घोषित कर दिया और दिल्ली से सम्बन्ध स्थापित कर लिए ।
साप्टे ने यह भी लिखा था दादरी के आसपास के गूर्जरों का अफसर उमराव सिंह तो दनकौर के गूर्जरों का अफसर सुरजीत सिंह है।
वास्तव में दादरी क्षेत्र के गुर्जरों ने राव उमराव सिंह को अपना राजा मान लिया था और राव उमराव सिंह ने भी अपने को राजा घोषित कर दिया था।
उसकी राजाज्ञाएं निकलने लगी थी और उसे मालगुजारी भी मिलने लगी थी।
लेकिन अंग्रेंजों ने शीध्र ही स्थिति पर काबू पा लिया और दमनचक्र प्रारंभ कर दिया ।
इन देश भक्त गुर्जरों के गांव जलाकर राख कर दिए गए ।
गुर्जरों की जमीन जायदाद जब्त कर ली गई और वह अंग्रेंजों ने अपने वफादार चहेते मुकबरों का बतौर इनाम जागीर व गांव दिए गए और देशभक्त गुर्जरों पर बगैर मुकदमा चलाए राजद्रोही घोषित करके उनको सरेआम गोली से उड़वा दिया गया अथवा पेड़ों पर फांसी से लटका दिया गया।
बुलन्दशहर का काला आम पर सिकन्दराबाद के पास के गांव लुहारली के दादा मुजलिस भाटी को लटका कर फांसी दे दी गई और इसकी लाश को काला आम के पेड़ के साथ हाथ पैंरों में कील ठोक कर ईसामसीह की तरह टांक दिया गया और कई दिन तक उसकी लाश वहां लटकी रही ।
राव उमराव सिंह को बुलन्दशहर ले जा कर सड़क पर लिटा कर खूनी हाथी से कुचलवा दिया गया।
इसी प्रकार राव सेढू सिंह भाटी कटेहरा निवासी को भी हाथी से ही कुचलवा कर मारा गया।
राव बिशन सिंह कठैड़ा को दादरी में ही फांसी दी गई थी।
दनकौर के पास नागड़ी गूर्जरों में अटटा गांव के इन्द्र सिंह,
जुनेदपुर के दरयाब सिंह,सुरजीत सिंह राजपुर,जुनेदपुर के दरयाव सिंह नत्था सिंह व कान्हा सिंह,असावर के एमन सिंह तथा गुनपुरा के रामबख्श प्रसिद्ध है जिनको 1857 की क्रान्ति में भाग लेने पर फांसी दी गई।
इनकी जमीन व जायदाद जब्त करके अपने अन्य जातियों के चहेते मुकबरों को बतौर इनाम दी गई
गुर्जरों को सजा देने का तरीका भी बड़ा विचित्र था जिसकी मिसाल दुनियां के इतिहास में मिलनी संभव है।
बुलन्दशहर जिले में अंग्रेंजों को गुर्जरों की पहचान उनके वफादारों ने यह बताई कि गुर्जर का उच्चारण चने को चणां और आलू को आल्हू है और वह चौड़ी किनारीदार धोती पहनते है।
उन दिनों चौड़ी किनारी की धोती का प्रचलन गुर्जर जाति में काफी था।
इन देशभक्तों के साथ डबल जुल्म हुआ।
एक तो उन्होने भारत माता की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया दूसरा उनका नाम तक इतिहास में नहीं है।
कैसी अजीब विडम्बना है इतिहास लिखता कोई और बलिदान कोई और देता है।
डिप्टी कलैक्टर कुंवर लक्ष्मण सिंह ने दादरी क्षेत्र के ग्यारह अन्य गुर्जरों को भी फांसी पर लटकाने का उल्लेख किया है।
राव अजीत सिंह के पौत्र विशनसिंह तथा भगवन्त सिंह के अतिरिक्त पांच नागड़ी गूर्जरों को भी प्राण दण्ड दिया गया था।
दनकौर के आस पास गांवों में रहने वाले नागड़ी गुर्जरों ने भी 1857 के विद्रोह में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था उनके पांच सरदारों को फांसी की सजा मिली।
ये है अटटा गांव के इन्द्रसिंह,जुनेदपुर के दरयाब सिंह,राजपुर के सुरजीत सिंह,अटटा के नत्था सिंह और गुनपूरा के रामबख्श।
इन देश भक्तों के प्राण ले लेने पर भी अंग्रेंज हकूमत की बदले की भावना शान्त नहीं हुई थी अंग्रेंजी सेना किसी भी दिशा में आगे बढ़ती और गांवों को आग लगा देती।
तत्कालीन गुप्त दस्तावेज के अनुसार 20 सितम्बर 1858 को कर्नल ग्रीथेड ने दादरी के आस पास के गांवों में आग लगवा दी थी।
दादरी के क्षेत्र को अंग्रेंज सरकार ने सर्वाधिक गड़बड़ वाला इलाका घोषित किया था क्योंकि 10 मई 1857 को मेरठ में हुए गदर की सूचना पाते ही सर्वप्रथम दादरी और उसके आस पास के गुर्जरों ने अंग्रेंज हकूमत को क्षीण करने के लिए अव्यवस्था तथा अराजकता फैला कर अपना प्रभुत्व जमा लिया था।
दमन चक्र के दौरान अंग्रेंजों ने गूर्जरों को इसका सामूहिक व्यक्तित्व तथा सांस्कृतिक दण्ड भी दिया और उनके गांवों के उपेक्षित छोड़ दिया गया।
फलतः विकास के लिए सभी कार्य और योजनाएं तथा मार्ग उनके लिए लगभग एक सदी तक बंद रहे।
गुर्जरों की देशभक्ति को राजद्रोह कहा गया उनको राजकीय सेवाओं से वंछित रखा गया।
अंग्रेंजों ने गुर्जरों के गौरवपूर्ण इतिहास को कलुषित करके इतनी सांस्कृतिक हानि पहुंचाई है जिसकी अभी तक क्षतिपूर्ति नहीं हो पाई है।
भारतदेश की स्वाधीनता के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले देशभक्तों के परिवारों की स्वाधीनता के पश्चात भी सरकार ने खबर सुध नहीं ली है न इन वीर शहीदों का स्मारक ही बनाया है।
जिससे हमारी नयी पीढ़ी के युवा युवतियां इनके बलिदानों से प्ररेणा ले सकें।
गर्व है मुझे मेरे गुर्जर वीरों पर और अपनी वीर जाति पर
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स्वतंत्रता सेनानी भिक्की सिंह लुहारली

स्वतंत्रता सेनानी भिक्की सिंह लुहारली
समाज में बिरले ही होते हैं जो वक़्त की नब्ज़ को पहचानते हैं और जिनकी भविष्य दृष्टि गजब की होती है। नई बस्ती के चौ0 रज्जू सिंह की आत्मा को सन 1942 के एक दिन किसी सामाजिक समारोह में उनके दिमाग ने उन्हें इस लक्ष्य ने झकझोर दिया कि दूसरी बिरादरी में इतने युवक सरकारी और अच्छे -अच्छे पदों पर हैं तो हमारी बिरादरी में क्यों नही हैं? इसी काऱण वे शिक्षा के प्रति उद्वेलित हो उठे। उस समय गाँव खैरपुर निवासी श्री बाबू लाल गुप्ता अयोध्यागंज में एक छोटा सा स्कूल चलाते थे। अयोध्या गंज में श्यौराजपुर के प्रधान सुनहरी सिंह की एक आढत की दुकान थी ,जिस पर यदा कदा गुर्जर बिरादरी के लोग आते जाते थे। चौ0 रज्जू सिंह ने क्षेत्र में शिक्षा के प्रति जाग्रति पैदा करने के लिए प्रयास तेज किये और वर्ष 1942 में श्यौराजपुर वालों की दुकान पर क्षेत्र में शिक्षा के प्रति क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों की एक पंचायत हुई ,जिसमे श्री नम्बरदार रज्जू सिंह नई बस्ती, चौ0 कल्ला बोहरा साकीपुर ,प्रधान सुनहरी सिंह श्यौराजपुर , प्रधान रतीराम दुजाना, चौ0 शादीराम चीती, चौ0 गुलजारी सिंह बिसरख, चौ0 डल्लू सिंह बागपुर, चौ0 बलवंत सिंह सरखपुर,स्वतंत्रता सेनानी भिक्की सिंह लुहारली ,लेफ्टिनेंट धीरज सिंह सलामतपुर, चौ0 लखपत सिंह लढपुरा,मुंशी जमना सहाय हज़रतपुर, चौ0 फ़तेह सिंह बढ़पुरा आदि सम्मिलित थे। पंचायत में श्री बाबू लाल गुप्ता से बात हुई तो उन्होंने कहा था,"स्कूल की स्थापना अवश्य करो - छोटे से स्कूल को सम्भालो,मैं उसमे रहूँ या न रहूँ स्कूल चलाओ। पंचायत के निर्णय के अनुसार 1942 में अयोध्यागंज के बांस की खरपंचो के कमरे बनाकर प्राइमरी स्कूल खोला गया ,जिसके पहले मुख्य अध्यापक श्री बाबू लाल गुप्ता जी थे और संस्था के पहले प्रबंधक चौधरी रज्जू सिंह,ग्राम नई बस्ती को बनाया गया। बिरादरी के इन सरदारो ने दौड़-धुप इस बात क लिए की कि क्षेत्र में उच्च शिक्षा का प्रसार कैसे हो?इस स्कूल को सन 1946 में 'गुर्जर एंग्लो संस्कृत जूनियर हाई स्कूल 'नाम से शासन से मान्यता मिली। इस हाई स्कूल का प्रधानाचार्य श्री बाबू लाल गुप्ता को बनाया गया तथा प्रबंधक नम्बरदार श्री रज्जू सिंह को बनाया गया। यह हाई स्कूल वर्ष 1950 के मध्य तक अयोध्या में ही चलता रहा। 1946 में क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों ने विद्यालय का स्थान निश्चित करने का विचार आरम्भ किया,जिसका विकल्प तिलपता की झीड़ी ,दादूपुर- अटाई की झीड़ी तथा दादरी में मिलिट्री पड़ाव की जमीन प्राप्ति हेतु प्रयास तेज हुए। सन 1949 में चौ0 रज्जू सिंह नम्बरदार नई बस्ती , चौ0 शादीराम जी चीती , चौ0 प्रधान रतीराम दुजाना ,बाबू लेखराज सिंह एडवोकेट बुलन्दशहर ,मा.हरबंश सिंह ,जमालपुर, चौ0 तेज सिंह डेबटा , चौ0 रामचन्द्र विकल नया गाँव ,ठेकेदार रामस्वरूप सिंह सातलका आदि ने बिरादरी के सहयोग से मिलकर मिलिट्री पड़ाव दादरी की इस जमीन पर 2 अक्टूबर को एक सप्ताह तक गांधी जयंती मनाने का निश्चय किया गया और जिसे एक सप्ताह तक मनाया गया। गांधी जयंती में केंद्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री रफ़ी अहमद किदवई को बुलाया गया ,जिन्होंने केंद्रीय रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह से इस अवसर पर पंद्रह एकड़ जमीन स्कूल को देने को कहा और पंद्रह एकड़ जमीन विधालय को मिल गयी। कुछ समय बाद मिलिट्री पड़ाव की साढ़े सैंतीस एकड़ जमीन विद्यालय को और प्राप्त हो गयी। बाबू बनारसी दास , मा. हरबंश,बाबू लेखराज सिंह ,रामचन्द्र विकल,बाबू तेज सिंह जी ने इस गांधी जयंती पर संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश )के प्रधानमंत्री श्री गोविन्द बल्लभ पंत को बुलाकर सन 1949 में उनसे 'गुर्जर एंग्लो संस्कृत हायर सेकेंडरी स्कूल 'की आधारशिला रखने के लिए आमंत्रित किया गया जो बड़ी कठिनाई से विरोध के बावजूद आये और 'गुर्जर एंग्लो संस्कृत विद्यालय' की आधारशिला उनके कर कमलों से रखी गयी।
इसी वर्ष एक जलसे का आयोजन भी किया गया ,जिसमें प्रसिद्ध भजनोपदेशक व अनेक केंद्रीय मंत्री पंजाबराय देशमुख,राजकुमारी अमृतकौर व सरदार बलदेव सिंह के साथ प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू भी आये। नेहरूजी ने यहां से जाकर बुलन्दशहर में कहा था कि 'मैंने दादरी में एक बहुत ही आलीशान कॉलेज को बनते देखा है। ' विद्यालय में इस अवसर पर भजनोपदेशक पृथ्वी सिंह 'बेधड़क ' को आमंत्रित किया गया और जिला बुलन्दशहर के कलेक्टर कप्तान भगवान सिंह को बुलाया गया। उत्सव में चंदा कमेटियाँ गठित की गयी और बड़े जोर शोर से कार्य आरम्भ हो गया। उत्सव में भजनोपदेशक पृथ्वी सिंह बेधड़क बड़े जोश में क्षेत्रीय लोगों की भावनाओं को जागृत करके कहा,"गुर्जरों की दादरी,भूरों की बिरादरी- आ जा मैदान में" जिसका क्षेत्रीय जनता ने बड़े उत्साह से दान देकर उत्सव को सफल बनाया। इसके बाद भूरो देवी,जो गाँव गुलिस्तान की रहने वाली थीं ,ने कहा कि ,'यदि कलेक्टर भगवान सिंह मेरे गाँव में आये , तो मैं कॉलेज के लिए बहुत दान दूँगी । "भूरो देवी के गाँव में कलेक्टर भगवान सिंह को बाबू लेखराज सिंह और क्षेत्र के प्रमुख व्यक्ति हाथी पर बिठा कर ले गये । भूरो देवी ने इन सभी का बड़ा सम्मान किया। उस समय भी भजनोपदेशक पृथ्वी सिंह बेधड़क ने भजन गाकर कहा,'आगरे से भगवान आये,लेकर खान आये,भूरो के गुलिस्तां में। 'भूरो देवी ने बड़ी अच्छी दावत दी और 27 बीघा जमीन दी ,जिसकी उस समय कीमत लगभग चार हज़ार रुपए बनती थी ,कॉलेज को दान में दी। चंदा कमेटियों का जो गठन हुआ, उन्होंने अपना काम आरम्भ कर दिया और गाँव -गाँव जाकर धन एकत्रित किया तथा गाँवों के नाम से कमरे बनवाने का ऐलान किया गया। प्रत्येक परिवार से कम से कम पांच रुपये प्रति परिवार चंदा लिया गया ,जिसमें प्रधान रतीराम दुजाना ,नम्बरदार फौजदार सिंह ठेकेदार -बादलपुर ,छीतर सिंह -वैदपुरा, चौ0 रामस्वरूप -सातलका , चौ0 रुमाल सिंह-मिलक लच्छी , चौ0 महबूब सिंह आदि दादरी की पश्चिम की एक टोली में थे। दूसरी टोली में चौ0 शादीराम ,नम्बरदार रज्जू सिंह, चौ0 जसवंत सिंह, बलवंत सिंह , चौ0 डब्लू सिंह, चौ0 हरलाल सिंह,सिंह आदि - आदि लोग सम्मिलित थे।इन्होने विद्यालय के लिए अपने - अपने क्षेत्र से काफी धन व कमरे बनवाने का ऐलान किया।
रक्षामंत्रालय से प्राप्त पंद्रह एकड़ जमीन पर विद्यालय का आलिशान भवन बनना आरम्भ हो गया तथा कमरे बनवाने वालों ने अपने कमरे बनवाने शुरू कर दिए। इस प्रकार सन 1952 -53 में विद्यालय को इंटरमीडिएट स्तर की मान्यता प्राप्त हो गयी और विद्यालय चौ0 शादीराम की अध्यक्षता व बाबू जी की प्रबंधक वाली कमेटी की देख रेख में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा। हर वर्ष माह दिसंबर में कॉलेज में तीन दिनों तक वार्षिक उत्सव होता था ,जिसमें देश के महान नेता,उपदेशक ,समाजसुधारक,दानदाता ,विद्यालय को खुले दिल से दान देते थे। एक बार की घटना है कि चौधरी रज्जू सिंह के नेतृत्व में विद्यालय के लिए दान प्राप्ति हेतु कुछ मान व्यक्तियों की कमटी चंदा वसूली के लिए ग्राम सादौपुर में गयी ,जहाँ पर चौधरी रज्जू सिंह को यह सूचना दी गयी कि उनके बड़े पुत्र का स्वर्गवास हो गया है ,इस पर नम्बरदार रज्जू सिंह ने दुखी होकर कहा की मेरा छोटा पुत्र रणवीर सिंह भी स्वर्ग सिधार जाए तो मैं अपनी संपूर्ण चल व अचल संपत्ति विद्यालय को दान में दूंगा। इस प्रेरक भावना ने विद्यालय के शुभ चिंतकों और शिक्षा प्रेमियों को बहुत उद्वेलित और प्रोत्साहित किया। विद्यालय उन्नति के शिखर पर बढ़ता चला गया और उत्तर प्रदेश की एक मान्य संस्था के रूप में स्थापित हो गया।
बाबू लेखराज सिंह और उनके सहयोगी प्रबंधक कमेटी के पदाधिकारी एवं सदस्यगणों ने विचार करना आरम्भ कर दिया कि हमारी यह संस्था,'गुर्जर एंग्लो संस्कृत इण्टर कॉलेज 'डिग्री कॉलेज होना चाहिए। इसके लिए हज़ार रुपये फीस एवं आवेदन पत्र विश्वविद्यालय में प्रेषित किया गया,परन्तु उसके लिए सार्थक प्रयास नहीं हो पाया।सन 1965 में जब मेरठ विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और उसके प्रथम उपकुलपति राजा बलवंत सिंह राजपूत कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राम करण सिंह थे,को मेरठ विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया। डिग्री कॉलेज की मान्यता हेतु 1000 रुपये शुल्क व आवेदन पत्र मेरठ विश्वविद्यालय ,मेरठ में प्रेषित किया गया।
डॉ. रामकरण सिंह से बाबू लेखराज सिंह , मा. हरबंश सिंह, चौ0किशनलाल निशंक -लुहारली सिकंदराबाद इण्टर कॉलेज में मिले। उन्होंने आश्वासन दिया कि मैं कल मौके का निरीक्षण करने आ रहा हूँ। वे दूसरे दिन प्रातः 8 बजे दल बल के साथ विद्यालय में उपस्थित हुए। उनके सामने क्षेत्रीय जनता के गणमान्य व्यक्तियों को उपस्थित किया गया ,जिन्होंने विद्यालय को डिग्री कॉलेज बनवाने की उनसे प्रार्थना की और प्रबंधक कमेटी से क्षेत्रीय लोगों से मिलकर बहुत प्रभावित हुए और आश्वासन दिया कि आपका कॉलेज सिकंदराबाद से पहले डिग्री कॉलेज हो जायेगा। उनके इस आश्वासन से उत्साहित होकर प्रबंधक कमेटी जिसमें बाबू लेखराज सिंह,मा.हरबंश -जमालपुर ,चौधरी रघुराज सिंह -अछेजा ,चौधरी तेज सिंह -देवटा , चौ0 रामचन्द्र विकल , चौ0 हरी सिंह -घरबरा , चौ0 हरलाल सिंह -पीपलका ,मुंशी खचेडू सिंह -मकौड़ा ,नेपाली स्वामी सिकंदराबाद , चौ0 मान सिंह -बिसरख , चौ0 जग्गू सिंह -गुरसदपुर , चौ0 लाल सिंह -मुरसदपुर ,किशनलाल निशंक -लुहारली , चौ0 भिखारी सिंह -कैलाशपुर ,कैप्टन शिव कला सिंह -चिटेहरा , चौ0हरद्वारी सिंह -चिटेहरा , चौ0 रणवीर सिंह- नई बस्ती , चौ0 कैलाश सिंह बुलंदशहर , चौ0 अमीचंद -बम्बावड , चौ0 कल्ला सिंह -साकीपुर , चौ0री हरबंश सिंह -घरबरा , चौ0 रघुवीर सिंह नवादा , चौ0 रामफल सिंह राव जी दादरी , राव राजाराम – कठैहरा, राव रणजीत सिंह -डिटटी ,रामनारायण सिंह ,लेफ्टि कर्नल डी.सी.एस.,प्रताप सिंह लालपुर मेरठ , राजपाल सिंह, जगदीश पाल, पुत्रगण ठेकेदार झब्बर सिंह -दुर्गेशपुर मेरठ, मंशाराम -करावल नगर,मंशा सिंह -महावा , चौ0 रामफल सिंह- सिरसा , चौ0 दयाराम ,हरकिशन -तिहाड़ दिल्ली , चौ0 गोविन्द सहाय - लढ़पुरा ,प्रधान लक्खी सिंह -ब्रोन्डी , चौ0 वेदराम नागर -गुलावठी आदि ने गाँव -गाँव जाकर चन्दा इकट्ठा करके कमरे बनवाए और अध्यापकों एवं छात्रों ने मिहिर भोज डिग्री कॉलेज की नींव खुदवानी आरम्भ कर दी जिसके उपलक्ष में यशपाल वैद्य जी ,दादरी ने 100 /-बतासे मंगवाकर बंटवाए। इस प्रकार डिग्री कॉलेज का भवन बनना आरम्भ हो गया जिसकी आधारशिला केंद्रीय शिक्षा मंत्री त्रिगुण सेन के द्वारा 4 दिसंबर 1966 को रखी गयी तथा विद्यालय के भवन बनाने का कार्य प्रारम्भ हो गया।
प्रबंधक कमेटी और विद्यालय शुभचिंतकों के प्रयास से मेरठ विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ रामकरण सिंह से भौतिक विज्ञान ,रसायन विज्ञान, गणित ,अंग्रेजी,हिंदी ,की मान्यता के लिए लखनऊ कुलपति अपनी पुरजोर संस्तुति सहित आवेदन पत्र भेज दिया गया बल्कि इस मान्यता में विद्यालय कमेटी की यह विशेषता रही कि उसने सबसे पहले मान्यता वैज्ञानिक वर्ग में ही प्राप्त की जिसमे बहुत ही व्यय था। कुलपति से मान्यता दिलाने में गवर्नर के सचिव श्री चेतन स्वरुप भटनागर सिकंदराबाद वाले का विशेष योगदान रहा ,परन्तु बाबू लेखराज सिंह व उनके पूर्ण सहयोग से एक आलीशान भवन बनवाया गया और पुस्तकालय और प्रयोगशाला को सामान से सुसज्जित किया गया। इसके बाद जुलाई सन 1968 में चांसलर महोदय की ओर विधिवत वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त हो गयी और विद्यालय में प्रधानाचार्य व प्रवक्ताओं की नियुक्ति करके शिक्षण कार्य आरम्भ कर दिया गया। सन 1972 में बाबू तेज सिंह एवं लेखराज सिंह के अथक प्रयास से साहित्यिक वर्ग में भी डिग्री की मान्यता प्राप्त हो गयी। विद्यालय अपनी गति से प्रबंधक समिति व अन्य व्यक्तियों के सहयोग से उत्तरोत्तर आगे बढ़ता रहा और विद्यालय को क्षेत्रीय सहयोग भी तन -मन - धन से मिलता रहा ,साथ ही मंत्री तेज सिंह के प्रयास एवं सक्रिय सहयोग से सन 1976 में विद्यालय यू.जी.सी. के अनुदान पर आया। इस बीच विद्यालय का समस्त व्यय अध्यापकों एवं प्रधानाचार्य का वेतन आदि प्रबंध तंत्र ने अपने निजी स्रोतों से वहन किया।
बाबू लेखराज सिंह जी की प्रबल इच्छा रही कि लड़कों के साथ - साथ लड़कियों की शिक्षा की भी व्यवस्था होनी चाहिए। ये विचार जब उन्होंने विद्यालय की प्रबंधक कमेटी तथा विद्या प्रेमियों के सामने रखी तो उन्होंने इसका पुरजोर समर्थन किया और उन्होंने तन ,मन ,धन, से सहायता करने का वचन दिया। बाबूजी ने कन्या विद्यालयों की प्रशासनिक योजना व संविधान बनाया तथा उनकी विभाग से मान्यता प्राप्त की। इस क्रम में सबसे पहले मिहिर भोज बालिका इण्टर कॉलेज सन 1992 में आरम्भ किया गया जिसकी आधार शिला चौ0 इकराम सिंह -खानपुर दिल्ली द्वारा रखी गयी। बाबूजी को जो विशेष रूप से सहयोग दिया उनमें चौ0 विद्याराम सफीपुर ,प्रभु सिंह भाटी बढ़पुरा ,कैप्टन शिवकला -चिटहरा , राजपाल सिंह चिटहरा ,महीपाल सिंह कसाना नंगला , चौ0 रघुराज सिंह अच्छेजा , चौ0 रघुवर सिंह नवादा , जग्गू सिंह ,मुर्शदपुर,मा.राजाराम नागर दुजाना ,मा.मूलचंद कसाना जावली , चौ0 वेदराम सिंह गुलावठी , चौ0 मंशाराम करावल नगर दिल्ली , चौ0 कमल सिंह विघूड़ी सातलका प्रधान ,सर्वजीत शास्त्री लुहारली , चौ0 मथन सिंह नई बस्ती , चौ0 रघुराज सिंह -आकिलपुर , चौ0 धर्मपाल सिंह पटवारी -रूपवास ,नरेश भाटी जिला पंचायत अध्यक्ष -रिठोरी , चौ0 महेंद्र प्रताप सिंह मंत्रीपाली मोहबताबाद हरियाणा, चौ0 रणवीर सिंह पाली, चौ0, जिले सिंह बिशनपुर , चौ0 नारायण वीर सिंह गुर्जर कॉलोनी -दादरी , चौ0 चंद्रपाल सिंह अफजलपुर ने भरपूर सहयोग किया,सभी कक्षों का निर्माण कराया। विद्यालय के सहयोग देने वाले समाज के अनेक व्यक्तियों जिनमें चौधरी जसवंत सिंह एक्साइज इंस्पेक्टर मदनपुर दिल्ली ,कृषि मंत्री चौधरी यशपाल सिंह तितरो सहारनपुर ,संसद सदस्य चौधरी अवतार सिंह भड़ाना अनंगपुर , चौ0 सरदार सिंह जौनापुर देहली , चौ0 दीपचंद व त्रिलोकचंद मावी भट्टा वाले बुलंदशहर , चौ0 काले सिंह गंगोल, चौ0 हेमसिंह भड़ाना ऐरा कन्ट्रेक्शन कंपनी देहली (नराहड़ा वाले ),गृहमंत्री के.एल. पोसवाल हरियाणा ,कल्याण सिंह मंत्री पलवल ,राव नरसिंह पाल कौडक कैथल हरियाणा ,ब्रजपाल सिंह व करतार सिंह संबंधी किशनपाल निशंक , चौ0 विद्याराम सफीपुर वालों के संबंधी मोडबंध देहली वाले ,रघुवीर शास्त्री जमालपुर ,सुरेन्द्र सिंह एम. एल. सी. पुत्र श्री वेदराम नागर ,लखीराम नागर पूर्व एम. एल. सी., चौ0 राजेंद्र एवं रविन्द्र सिंह आदि पुत्रगण चौ0 भागमल सिंह , सूबेदार वेद प्रकाश -सादोपुर ,नत्थू सिंह व फ़कीर चंद देवटा व प्रबंध तलवार साहब आदि ने कॉलेज को भरपूर सहयोग दिया।कमरे बनवाए गत वर्ष में मिहिर भोज इण्टर कॉलेज के प्रशासनिक निर्माण मैं श्री रवि गौतम एम. एल. सी. पूर्व कैबिनेट राजस्व मंत्री उत्तर प्रदेश व मलूक नागर ने भरपूर सहयोग दिया तथा बिजेन्द्र सिंह व श्रीपाल आदि पुत्रगण रामचन्द्र प्रमुख दादरी ने एक कक्ष व मुख्य द्वार का निर्माण भी करवाया।
मिहिर भोज बालिका डिग्री कॉलेज गौतम बुद्ध नगर की स्थापना 2 सितम्बर 1994 को दादरी क्षेत्र की आवश्कताओं के मद्देनजर की गयी। इस क्षेत्र में लड़कियों के शिक्षा ग्रहण करने के लिए दूर -दराज तक स्नातक स्तर पर कोई भी कॉलेज नहीं था। क्षेत्र में संभ्रांत ,शिक्षित तथा कर्मठ कार्यकर्ताओं में स्नातक स्तर पर कॉलेज खोलने की तीव्र इच्छा जागृत हुई और उन्होंने युद्ध स्तर पर इसकी सम्पूर्ण तैयारी प्रारम्भ कर दी तथा 2 सितम्बर 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश माननीय मुलायम सिंह यादव मुख्य अतिथि के तौर पर मिहिर भोज कॉलेज के विशाल समारोह में उपस्तिथ हुए। समारोह की अध्यक्षता माननीय राजेश पायलेट तत्कालीन गृहराज्य मंत्री (आंतरिक सुरक्षा)भारत थी। इस अवसर पर माननीय नरेंद्र भाटी ने राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर माननीय मुलायम सिंह जी से ऐन मौके पर मिहिर भोज बालिका डिग्री कॉलेज के निर्माण के लिए दस लाख रुपये स्वीकृत कराये।
बाद में सरदार भाग सिंह ने बाबू लेखराज सिंह ,नारायणवीर सिंह व चौ0 विद्याराम जी की प्रेरणा से अपनी पुत्री प्रतिपाल कौर के नाम से 20 लाख रुपये का दान दिया।
किशनलाल निशंक की धर्मपत्नी श्रीमती चन्द्रवती देवी लुहारली ,प्रधान छिद्दा सिंह मसौदा ,जयचंद चिल्ला ,शेर सिंह घोड़ी वाले नया बॉस नोएडा , प्रकाश सिंह प्रमुख पाभी लौनी ,सरदार परविंदर सिंह ,प्रधान तेगा सिंह दुजाना ,सरदार सिंह मकौड़ा ,प्रधान राजेंद्र सिंह मकौड़ा,कमल सिंह सातलका ,यादराम नेता जी रिठौड़ी ,जुझारू नेता गुर्जर गौरव स्व० श्री महेंद्र सिंह भाटी पूर्व विधायक दादरी जो गुर्जर विद्या सभा कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष रहे और इस पद पर रहते हुए उन्होंने विद्यालय की प्रगति और उन्नति में बहुत सहयोग किया। इसके बाद मिहिर भोज बालिका इण्टर कॉलेज की मान्यता प्राप्त करने में श्री नरेंद्र सिंह भाटी विधायक सिकंदराबाद ,श्री समीर भाटी का पूरा -पूरा योगदान प्राप्त किया। बिजेंद्र सिंह भाटी पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत गौतम बुद्ध नगर से भी विद्यालय के लिए सहयोग प्राप्त किया।
ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण द्वारा सन 2013 -2014 में विद्यालय मुख्य सड़क से लेकर अन्दर के सभी रास्तों पर पूर्व मंत्री श्री नरेन्द्र भाटी के सहयोग से सी0 सी0 रोड का निर्माण कराया गया|इसके बाद इसी वर्ष विद्यालय के 17 कमरों का सौन्दर्यकरण कराया गया ,जिसमे विद्यालय के शिक्षण कक्षों में व वरामदो का पत्थर व टायल लगाकर सौन्दर्यकरण कराने में श्री सतीश नम्बरदार ,श्री अनिल भाटी तिलपता ,कैप्टेन अर्जुन सिंह तिलपता ,श्री ब्रहमपाल पायलट तिलपता ,उप-प्रबन्धक जयवीर सिंह भाटी साकीपुर ,विनोद कुमार पुत्र काले सिंह दुजाना ,श्री विजयपाल नागर अच्छेजा ,प्रधान खेमराज सिंह व मेघराज सिंह खेड़ी भनोता ,श्री महेन्द्र सिंह बैंसला प्रधानाचार्य गुर्जर कॉलोनी ,श्री मनोज खारी व दीपक खारी पुत्र स्व:बाबू ब्रहमसिंह खैरपुर ,मा0 श्री रणवीर सिंह फूलपुर ,श्री महेन्द्र भैया पुत्र श्री फोहन सिंह बरमदपुर का विशेष योगदान रहा |इसके बाद सन 2015 में अल्ट्राटेक सीमेंट कम्पनी के प्रबन्धक श्री दिनेश चौधरी ने 20 ऊषा पँखे दान स्वरूप विद्यालय को भेंट किये |सूबेदार श्री दाताराम भाटी चिठेहरा ने भी 5 पँखे विधालय को भेंट किये 

गुर्जर प्रतिहार

  नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है । राजौरगढ शिलालेख" में वर्णित "गुर्जारा प्रतिहार...