Sunday, 6 October 2024

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 पुराणों के निम्न श्लोक को पढ़ें-

सद्यः क्षत्रियबीजेन राजपुत्रस्य योषिति।
बभूव तीवरश्चैव पतितो जारदोषतः।।
~ब्रह्मवैवर्तपुराणम्/खण्डः १ (ब्रह्मखण्डः)/अध्यायः १०/श्लोकः ९९
भावार्थ:-क्षत्रिय के बीज से राजपुत्र की स्त्री में तीवर उतपन्न हुआ।वह भी व्याभिचार दोष के कारण पतित कहलाया।
यदि क्षत्रिय और राजपूत परस्पर पर्यायवाची शब्द होते तो क्षत्रिय पुरुष और राजपूत स्त्री की संतान राजपूत या क्षत्रिय ही होती न कि तीवर या धीवर!!
इसके अतिरिक्त शब्दकल्पद्रुम में राजपुत्र को वर्णसंकर जाति लिखा है जबकि क्षत्रिय वर्णसंकर नही...
Manohar Laxman varadpande(1987). History of Indian theatre: classical theatre. Abhinav Publication. Page number 290
"The word kshatriya is not synonyms with Rajput."
अर्थात- क्षत्रिय शब्द राजपूत का पर्यायवाची नही है।
कालका रंजन जी ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारताचा इतिहास के हर्षोत्तर उत्तर भारत नामक विषय के प्रष्ठ संख्या ३३४ में राजपूत और वैदिक क्षत्रिय भिन्न भिन्न बतलाये हैं।
वैदिक क्षत्रियों द्वारा पशुपालन करने का उल्लेख धर्म ग्रंथों में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है जबकि राजपूत जाति पशुपालन को अत्यंत घृणित दृष्टि से देखती है और पशुपालन के प्रति संकुचित मानसिकता रखती है...
महाभारत में जरासंध पुत्र सहदेव द्वारा गाय भैंस भेड़ बकरी को युधिष्ठिर को भेंट करने का उल्लेख मिलता है;युधिष्ठिर जो कि एक क्षत्रिय थे पशु पालन करते होंगे तभी कोई भेंट में पशु देगा-
सहदेव उवाच।
इमे रत्नानि भूरिणी गोजाविमहिषादयः।।
हस्तिनोऽश्वाश्च गोविन्द वासांसि विविधानि च।
दीयतां धर्मराजाय यथा वा मन्यते भवान्।।
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